Thursday 13 November, 2008

अपने अपने सुकून

भूख और नींद की जद्दोजहद में पड़ा
वो छोटा लड़का सोच रहा था,
(उस वक्त जब पास ही उसकी माँ
एक और छोटे बच्चे को
सूखी छाती से लगाये
किसी फ़िक्र मे नहीं थी
शायद समझॊता कर लिया था
जो है जैसा है उससे)
कि देर हुई और बड़ी बहन नहीं आई।
और अगर रात भर नहीं आई
तो सुबह खाने को ज़रूर मिलेगा
थोड़ा सुकून दे गया ये खयाल।
उसे खयाल भी नहीं हो सकता कि
पुलिस आजकल सख़्त है
और रोज़ छापे पड़ रहे हैं।
समाज की सोच सोच के
सेहत ख़राब सी किये हुये,
(जब डाक्टर ने वजन कम करने की
सख़्त हिदायत दे डाली है)
वे परेशान थे कि
अनाचार की बन आई है
हर ओर है भ्रष्टाचार
पुलिस प्रशासन कुछ नहीं करते
चलो इसको मुद्दा बनायें इस बार
थोड़ा सुकून दे गया ये खयाल।

1 comment:

  1. मिश्रा जी नाम के अनूरूप अच्‍छी रचना बधाई हो

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