Wednesday 3 December, 2008

ठहराव

मैने आँसू बहाये हैं
ज़ोर से भी रोया हूँ
दुनिया देखी है और
अपने मे खोया हूँ

मैं बादल बुलाता हूँ
बिजली चमकाता हूँ
आवाज़ करती बूँदो से
ख़ुद ही डर जाता हूँ

अरमान लुटाता हूँ
सपने सजाता हूँ
बुलबुले तोड़कर मैं
वीरता दिखाता हूँ

लोग आदर करते हैं
मै प्रेरणा बाँटता हूँ
दुनिया के ठहाकों मे
अपने दर्द छाँटता हूँ

दिन के उजाले मे
रोज बदल जाता हूँ
लोग उठा देते हैं
उँचा उठ जाता हूँ

सूरज को विदा कर
चेहरा बदल लेता हूँ
रात के अँधेरे मे
पुतला नजर आता हूँ

खुद को जानने मे
उम्र गुज़ार देता हूँ
मौत से ज़िन्दगी
फ़िर उधार लेता हूँ

तुमने कहा बदल गया
मै वो अब नहीं हूँ
नहीं दोस्त कुछ भी हूँ
मै अब भी वही हूँ

(१९८३ में कलमबद्ध)

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