Wednesday 25 July, 2012

रायसीना पहाड़ी पर उत्सव


विस्तृत खूबसूरत मैदान

कतारबद्ध खड़े संगीने लिए सिपाही

रक्षकों का जखीरा

मोटरों का आलीशान कारवाँ

चौड़े और स्वच्छ राजमार्ग

विशाल और भव्य इमारतें

विभूतियों से सुसज्जित केन्द्रीय कक्ष

परंपरागत और शालीन समारोह

उत्सुक प्रफुल्लित व्यग्र फुर्तीले लोग

मैंने ज़रा गौर से देखा घोड़ों को

उदासीन अनुत्सुक सुस्त

कह रहे थे कि

चलो एक और कवायद खत्म हुई

एक बोला ये सब तो चलता ही रहता है यहाँ

और बाहर वहाँ भी सब ऐसे ही चलता रहता है

घोड़े घोड़े ही रहते हैं

गधे गधे ही रहते हैं

हाँ सूअर जरूर और मोटे होते जा रहे हैं

Tuesday 24 July, 2012

भूख भोजन और राजनीति


नंबरों का खेल है राजनीति

अभी दो नंबर की जगह खाली हुई सरकार में

तो सूना खूब कटा जुद्ध मचा है

बहुत बढ़िया है ये दो नंबर की जगह

एक में तो बहुत लफड़ा है

खाना पीना तक मुहाल है

सर्चलाईट डाले ही रहता है ससुर मीडिया

नीचे वाला चाँपे रहता है नंबर दो की

जनम जन्मांतर तक को तर देता है

खेती परधान है अपना देस

सो भईया नंबर दो पे तो हक बनता है

खेती के परधान जी का ही

और फिर वे जमीन से जुड़े आदमी हैं

जमीन का खाते हैं

और जम के खाते हैं

और उनके ज्यादा खाने के चक्कर में

उन ही के यहाँ के एक सज्जन को

बार बार भूखा रहना पड़ता है

वे खुद भी बहुत दिनों तक नहीं खा पाते

और लाखों लोगों को भी नहीं खाने देते हैं

सार्वजनिक रूप से

आखिर बैलेन्स तो करना ही है किसी को

Monday 23 July, 2012

सत्यमेव जयते

कैसे जानते हैं हम

कि जो लिखा है

वो होकर रहेगा

तभी तो जब

वो हो जाता है

हम कैसे जानते हैं

कि सत्य क्या है

वही तो

जिसकी जय होती है

Friday 20 July, 2012

जिंदगी इक सफर है सुहाना......

चलती रहती है फेसबुक पर जिंदगी

होता रहता है फिल्मों का ज़िक्र

ढूँढ के लाये जाते हैं पुराने गाने

देश विदेश की खबरों की पेश होती हैं चुटकियाँ

आपत्तिजनक तथा अन्य भी कार्टून

बागीचों के चित्र

महफ़िलों का ज़िक्र

बैठकों के दौर

बयान होते हैं छुट्टियों के किस्से

खूबसूरत प्रस्तुतियाँ विचारों की

प्यार तकरार इनकार इजहार

और भी न जाने क्या क्या

फिर एक दिन पैक अप करने की तय कर लेते हैं

राजेश खन्ना

चौंक जाती है फेसबुक पर चलती हुई जिंदगी

थोड़ी गमगीन

थोड़ी यादों से रोमांचित

ठिठकती है ज़रा थम जाती है

जैसे दौड़ते हुए कोई पल भर को रुके

खुल गए अपने जूते के फीते बाँधने को

फिर चल पड़ती है वैसे ही

फ़िल्में गाने चित्र बैठकें मुलाकातें कार्टून

चलती रहती है फेसबुक पर जिंदगी

Thursday 19 July, 2012

देव कुदेव

गली के बहुत भीतर

एक संकरे आँगन के पीछे वाले

कमरे के जर्जर बिस्तर तक

ठण्ड में सिकुड़ती रहती हैं बूढी हड्डियां

सड़ जाती हैं सब्जियाँ गोदाम के सीलन में

झुलस जाता है मजदूर दिन भर खेत में

सूरज को दिखाई नहीं देता

या वो देखते नहीं

Wednesday 18 July, 2012

भारतीय ट्रैफिक का आध्यात्म

सीमित प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का महत्व

हमसे बेहतर कौन समझेगा भला

अब देखो

अपनी और दूसरों की जान जोखिम में डाल

आधा किलोमीटर का पेट्रोल बचाना

पूरे दस किलोमीटर राज मार्ग पर उलटे चलकर

हुशियारी नहीं तो और क्या है

और फिर क्या उलटा और क्या सीधा

वेदों में तो कहीं लिखा है नहीं

सब माया है भईया

गीता में तो लिखा ही है

हतो वा प्राप्यसि स्वर्गं .......

बचे रहे तो फिर कभी बचे हुए पेट्रोल का सुख भोगेंगे

मर गए तो स्वर्ग

जहाँ बिना पेट्रोल के उड़ते हैं विमान

चरैवेति चरैवेति

अर्थात वीर तुम बढे चलो

ये सिद्धांत तो हम भूलते ही नहीं सड़क पर

कौन माई का लाल हमें रोक सकता है

ज़रा सी लाल बत्ती की बिसात ही क्या है

और फिर क्या लाल और क्या हरा

नज़र नज़र का फेर है बस

रंगों में भी क्या भेदभाव

सबै रंग गोपाल के

गीता में तो लिखा ही है

नहीं लिखा हो तो लिख लो

वैसे भी सब कुछ तो लिखा हुआ है

अपनी गीता में

Tuesday 17 July, 2012

सोचालय

बड़ी समस्याएँ हैं इस देश में

जैसे एक है मुक्ताकाश में शौच क्रिया

कुछ करना होगा इसके लिए

योजना बनानी होगी

गूढ़ चिन्तन चाहिए इस पर

और इसके लिए उपयुक्त स्थान

हमेशा से रहा है शौचालय

तो भईया जब समस्या हो विकराल

तो शौचालय नहीं चाहिए क्या

उतना ही भव्य ?

Monday 16 July, 2012

जवान होती लड़कियाँ

जवान होती लड़कियाँ खुश हैं

छुट्टी में स्कूल के बाहर

उड़ रही हैं तितलियाँ

चहचहाट जैसे सांझ बरगद के पेड़ पर चिड़ियों का झुण्ड

दौड़ रहें हैं फूल इधर उधर

इनका कल हो शायद

चिता हवन सेज गजरा

या पालकी मुकुट माला

ज़रा सी देर और झर जायेंगी पंखुरियाँ

उड़ जायेगी खुशबू अनंत में

रंगहीन हो रहेगा बागीचा

उन्हें पता हो न हो अभी

फिलहाल खुश हैं

जवान होती हुई लड़कियाँ

Sunday 15 July, 2012

इबारत

वह कभी हाँ नहीं कहती

असमंजस में था वो युवा

अभी नया है स्त्री की इबारत पढ़ने में

कोई उसे बताए

वो न भी नहीं कहती

Saturday 14 July, 2012

कुर्सी

उसके चारों पैर

आगे बढ़कर असंख्य भुजाओं में फ़ैल गए

पेड़ों की जड़ों जैसे

सब और फैलकर जकड़ लिया है सब कुछ

भीतर का सब कुछ चूसती हुई जड़ें

पायों के जरिये

जीवन रस पहुँचा रहीं हैं

और बड़ी हो रही कुर्सी

और मजबूत पैर

और लंबी जड़ें

और अधिक भोजन

और मजबूत शिकंजे

Friday 13 July, 2012

उसका घर

देह से बाहर भी रहती है वह

कमीज के बटनों में सजती है

दरवाजे की भीतर लगी कुण्डी में रात खिलती है

पानी के ठन्डे गिलास की सिहरन में कांपती है

फेरीवाले की आवाज की लय में डोलती है

अदरक की चाय की भाप में उड़ती हुई

बंध जाती है स्कूल जाते बच्चे के जूते के फीते में

दफ्टर भागते आदमी की व्यग्रता है वो

पीछे से दौड़कर टिफिन पकड़ाती आपाधापी भी वही है

ऐसी ऐसी जगहों पर बिखरी रहती है कि पता भी न चले

लगता है कि कभी भीतर है वो अपने

तब भी कहीं और ही होती है

रात खाने की सब्जियां चुनती

बच्चे को पिकनिक जाने देने के बारे में

पति से करने वाली बात की झिझक में होती है

बिटिया के लिए नई फ्राक की बात उठाने के बाद वाली झिड़की

और उसकी सहम में होती है कभी

पति की उपेक्षा में होती है

सिर्फ लगता है कि भीतर है वो

ज्यादातर तो देह के बाहर ही रहती है वह

Thursday 12 July, 2012

गृहणी

खाना ही तो बनाती है

यहाँ वहाँ से कपडे उठा कर रख देती है

दरवाजे की घंटी सबसे पहले वही सुनती है

रात को भी

साफ़ सफाई ज़रा ये ज़रा वो

ये सब भी कोई काम हैं भला

किसी से करवा लो

नौकर चाकर के से काम हैं ये तो

बीमार तो खैर वो पड़ती ही नहीं है

लेकिन जब कभी ज़रा देर को

वो नहीं होती

तो होता कुछ नहीं है घर में

Wednesday 11 July, 2012

क्या तुम भी

अभी दिन मे इस तरफ़ आधी धरती पर

रात मे उस तरफ़ बाकी आधी

सर्दियों में ज़रा इधर झुककर

गर्मियों मे ज़रा उधर

सुबह से शाम तक मंझाता

कोने कांतर मे झांक झांक

घुस घुस के कन्दराओं में

यहां वहां ऊपर नीचे मँडराता

कभी तेज रोशनी में

कभी बादलों के पीछे से तांक झांक करते

जाने क्या खोजता रहता है रोज रोज

धरती का वो पागल प्रेमी

खाली चक्कर लगा लगा के

सिर्फ देखते रहना भर ही

तुम्हारी भी नियति क्या

मेरे जैसे ही है सूर्यदेव महाराज

Tuesday 10 July, 2012

आस

कुछ लोग अभी भी ये समझते हैं कि

देश आजाद है

जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा

अगले चुनाव के बाद मंहगाई कम होगी

जंतर मंतर पे धरना देनेवाले समाजसेवी हैं

ऐसे कैसे कोई भला फर्जी एनकाउंटर कर देगा

हम जहाँ से दवाई खरीदते हैं वो नकली नहीं हैं

मेरे पिता ईमानदार अफसर हैं

कुछ लोग वाकई ये समझते हैं

और बाकी लोग

जलाते रहते हैं खून अगर हो तो

हम जैसे

Monday 9 July, 2012

न्याय

उसके हाथ लंबे हैं

क़ानून उठेगा

झट से पकड़ लाएगा

डाल देगा जेल में

तब मिलेगी उनको अपनी करनी की सजा

घबराओ मत

न्याय मिलेगा तुमको

अभी उठेगा क़ानून देखना

उसके हाथ लंबे हैं

नहीं नहीं

शक मत करो

ये वो हाथ नहीं हैं

जो आदमियों के होते हैं

और गरम किये जा सकते हैं

ये दिव्य हाथ हैं

सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान निष्पक्ष

Friday 6 July, 2012

गाँधी के बाद गाँधी के बाद गाँधी के बाद गाँधी के बाद ............

बहुत दिनों तक इस देश में

धूर्त और चालक लोग

गाँधी जी की धोती पकड़ कर

चुनाव की वैतरणी पार कर के

सिंहासन पे चढ़ते रहे

आगे चलके किसी समय जब बहुत खींचतान में

गाँधी जी की धोती के चीथड़े हो गए

एक नेता हुए जिनने घोषणा कर दी कि

मैं खुद गाँधी हूँ

हालांकि न वे शादी के पहले गाँधी थे न बाद

फिर वही गाँधी की धोती चुनाव और सिंहासन

अबके गाँधी की धोती भी जरा बड़ी और मजबूत

और फिर जो दौर चला उनके बाद

उन्ही के घर में गांधियों का

सो अब तक चल ही रहा है

तय ये है अब कि

या तो गाँधी खुद ही रहेंगे सिंहासन पे

या फिर गाँधी के दुमछल्ले

वाह री आजादी

वाह रे प्रजातंत्र

वाह रे देश

वाह रे देशवासी

Thursday 5 July, 2012

हिग्स बोसान

अब देखना

सब पता चल जायेगा

कैसे बना ये सब कुछ

बस ज़रा सी देर में पकड़ के बैठा लेंगे सामने

बनाने वाले को

सब उगलवा लेंगे उससे देखना

कहाँ क्या है पूछेंगे

बताना ही पडेगा

नहीं तो खींचेगे कान

टूजी का रुपया कहाँ है

आदर्श के मकान सच्ची में किसके हैं

खेलों का खेला टाँय टाँय फिस्स कौन किया

और जहाँ ये सब पूछताछ चलेगी

वहीं ऊपर अनाप शनाप रुपया

यहाँ से चुरा चुरा के कौन धरा है बैंको में

नौटंकी तो देखो

जेल भेजो फिर निकाल लो

तू तू मैं मैं करो

भोंपू की तरह रात दिन बजते रहो टीवी पे

इधर कुर्सी छुड़ा लेओ

उधर से घुसेड़ लेओ फिर कहीं चुराने खाने को

बट्टे पे ठोंक दो इल्जाम हर चमारी का

फिर कभी चट्टे की भी आएगी बारी

बनाए रहो नोट गिने रहो वोट

बारी बारी से

कोई खोले मुंह तो घुसेड दो रुपया

कहीं वो भूल चूक से सत्याहारी हो

न खाता हो रुपया

तो डाल देओ डंडा

गज़ब तमाशा चल रहा है

वैसे तो अभी बड़े बड़े वैज्ञानिक लोग

लगें है सी बी आई की तर्ज़ पे पूछताछ में

लेकिन कभी अगर मिला मौका

तो पूछेंगे हम भी गाड पार्टिकल से कि

महाराज

काहे बनाए ये सब

और बनाने की ऐसी खुजली थी तो ऐसा काहे बनाए

भांग खाए रहो का ?

Tuesday 3 July, 2012

बड़े बड़े आदमी

बैठा है सूखे खेत में मुंह उठाये

ताकते टुकुर टुकुर ऊपर

बादल तो नहीं अलबत्ता

नेता जरूर घूम रहें हैं दौरे पर

दूर पूरब में सुना है पानी ही पानी

भर गएँ हैं घर दुवार

उफान पे है दिबांग

विकट समस्या है

गरीब गुरबा बड़ा परेशान

और यहाँ खेती सब हुई जा रही है बेकार

पानी ही नहीं है

बड़े बड़े आदमी हैं दिल्ली में

साहब मंत्री नेता लोग सब

काहे नहीं भर के चुल्लू आसाम से

उर्रा देते हैं महाराष्ट्र और यम पी में

और फिर दुई चार बादल फूंक मार के

उड़ा लावें बम्बई से दिल्ली तक

बड़े लोग हैं और बहुत सारे भी हैं

एक एक अंजुरी भी भी डाल दें

तो सबका काम हो जाए

क्या कहते हो नहीं कर सकते !

क्यों ?

इत्ते बड़े हाथ पैर नहीं है

गरीब गवारों और किसानो की मदद के लिए !

खाली पेट ही बड़ा है बस