न हुए न सही पूरे
फ़िर नए ख्वाब बुनें
हम कहें तो कैसे कहें
वो सुनें तो क्यों सुनें
बहुत हो गई मसीहाई
अब हम आदमी बनें
मिले तो जिंदा यहाँ
सिर्फ़ दो चार जने
चली कि कटी जुबाँ
क्या कोई बात बने
वो इधर देख्नने लगे
अब हम दिन गिनें
Thursday, 23 October 2008
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