यूहीं कुंदन नहीं बनोगे
कड़ी आंच मे तपना होगा
उसकी आस छोड़नी होगी
तब जाकर कोई अपना होगा
सिर्फ सब्र से फल न मिलेगा
कुछ लगकर के करना होगा
मंज़िल हरदम दूर रहेगी
ख़ुद उठकर के चलना होगा
सूरज गया अँधेरा देकर
किसी दिए को जलना होगा
सपने सच तो हो जायेंगे
काम मगर कुछ करना होगा
स्वर्ग नही मिलता धरती पर
उसके लिए तो मरना होगा
तुम समझे वह अपना होगा
जागी आँख का सपना होगा
गिरकर भी जो बड़ा हो गया
देख के आओ झरना होगा
गलत राह पर नही किसी से
ख़ुद से मगर तो डरना होगा
जीवन खुशियों से भर जाएगा
प्रेम सभी से करना होगा
Friday 24 August, 2007
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