कोई गुजरना भी नहीं चाहता
कचरा पेटी के पास से
गुजारा भी नहीं किसी का
उसके बगैर
मजबूरी है
पसन्द किसको है
न रखा जा सकता है
बहुत दूर
और न ही पास
काश चल सकता होता
इसके बिना
तो ज्यादा अच्छा होता
एक इन्सानी ज़िन्दगी
का भी हो सकता है
यही हाल
किन्ही उदास क्षणो मे
खुद को पाता हूँ
एक कचरा पेटी
जरूरत सबकी
चाहत किसी की नहीं
Wednesday, 12 May 2010
Saturday, 8 May 2010
महानता
जैविक क्रम मे उच्चतम
होने से हम महान हैं
ये और बात है कि
हम मार डालते हैं
एक दूसरे को ही
अक्सर भरे पेट भी
हम महान हैं क्योंकि
विस्तारित कर लिये हैं हमने
अपने अंग
नाखूनो को छुरों तलवारों मे बदल कर
पैरों को गाड़ियों जहाजों मे बदल कर
आँखों को खुर्दबीनो दूरबीनो मे बदल कर
दूर तक है अब हमारी पहुँच
ये और बात है कि
इनका इस्तेमाल हम
प्रकृति के विरुद्ध संघर्ष कर
लगे हुये हैं आत्मघात मे ही
हम महान हैं क्योंकि
हम कहते हैं ऐसा
ये और बात है कि
दिखाई नहीं देता
कुछ भी हमारे कृत्य में ऐसा
होने से हम महान हैं
ये और बात है कि
हम मार डालते हैं
एक दूसरे को ही
अक्सर भरे पेट भी
हम महान हैं क्योंकि
विस्तारित कर लिये हैं हमने
अपने अंग
नाखूनो को छुरों तलवारों मे बदल कर
पैरों को गाड़ियों जहाजों मे बदल कर
आँखों को खुर्दबीनो दूरबीनो मे बदल कर
दूर तक है अब हमारी पहुँच
ये और बात है कि
इनका इस्तेमाल हम
प्रकृति के विरुद्ध संघर्ष कर
लगे हुये हैं आत्मघात मे ही
हम महान हैं क्योंकि
हम कहते हैं ऐसा
ये और बात है कि
दिखाई नहीं देता
कुछ भी हमारे कृत्य में ऐसा
Wednesday, 5 May 2010
नाम
पहले पूछता था कोई
कि कौन हो तुम
झट से बता दिया करता था नाम
समय के चलते
जुड़ता गया बहुत कुछ
नाम के साथ
कभी तमगे
कभी कालिख
बोझ बढ़ता गया
खो गया नाम कहीं भीड़ मे
फ़िर कौन के जवाब मे
देने लगा मै
जमा किये गये
कभी तमगे
कभी कालिख
एक एक करके
और फ़िर जब चुक गया सब कुछ जमा
तो पाया कि मेरा नाम
कहीं गुम है
कि कौन हो तुम
झट से बता दिया करता था नाम
समय के चलते
जुड़ता गया बहुत कुछ
नाम के साथ
कभी तमगे
कभी कालिख
बोझ बढ़ता गया
खो गया नाम कहीं भीड़ मे
फ़िर कौन के जवाब मे
देने लगा मै
जमा किये गये
कभी तमगे
कभी कालिख
एक एक करके
और फ़िर जब चुक गया सब कुछ जमा
तो पाया कि मेरा नाम
कहीं गुम है
Tuesday, 4 May 2010
हमारे बीच
कितना कुछ रहा हमारे बीच
कभी अपने
कभी अपनो की सलाहें
और फ़िर पराये
सुझाव जो मांगे नहीं हमने
वो किस्से वो चर्चे
हँस हँस के सुनाये गये जो
वहाँ भी जहाँ
कोई लेना देना नहीं रहा हमारा
उलझने जो पैदा हुईं अपनी
कभी खुद से तो कभी औरों से
मौसमो की बेमानियाँ
रोज़ की परेशानियाँ
छोटे बड़े गम
खामोश मनमुटाव
लाग लगाव बेमतलब के
आंसू और अफ़सोस
इतना कुछ रहा हमारे बीच
बहुत कुछ रहा हमारे बीच
क्यों थी हमारे बीच
इतनी जगह !
कभी अपने
कभी अपनो की सलाहें
और फ़िर पराये
सुझाव जो मांगे नहीं हमने
वो किस्से वो चर्चे
हँस हँस के सुनाये गये जो
वहाँ भी जहाँ
कोई लेना देना नहीं रहा हमारा
उलझने जो पैदा हुईं अपनी
कभी खुद से तो कभी औरों से
मौसमो की बेमानियाँ
रोज़ की परेशानियाँ
छोटे बड़े गम
खामोश मनमुटाव
लाग लगाव बेमतलब के
आंसू और अफ़सोस
इतना कुछ रहा हमारे बीच
बहुत कुछ रहा हमारे बीच
क्यों थी हमारे बीच
इतनी जगह !
Monday, 3 May 2010
तुम्हारा दखल
जब तुम चलती हो
तो कतई नहीं लगता
फ़ूलों की कोई डाली लचकी हो
न तुम्हारी आँखें हिरनी सी लगीं मुझे
और मैने फ़ूल भी झरते नहीं देखे
जब तुम हँसती हो
सुना नहीं मैने
कि अच्छा गाया ही हो तुमने कभी
या लिखा हो कोई गीत
तुम्हारी अदायें भी ऐसी कोई शोख नहीं
और तुम कुछ इस तरह दाखिल हो मेरी ज़िन्दगी में
कि कुछ अच्छा नहीं लगता तुम्हारे बिना
न फ़ूलों की डाल के लचकने सी किसी की चाल
न कोई हिरनी सी आँखें
न किसी की हँसी से झरते फ़ूल
न किसी का गाना
न कवितायें
और न ही किसी की शोख अदायें
(२ मई; हमारी वैवाहिक वर्षगाँठ और उसके जन्म दिन पर)
तो कतई नहीं लगता
फ़ूलों की कोई डाली लचकी हो
न तुम्हारी आँखें हिरनी सी लगीं मुझे
और मैने फ़ूल भी झरते नहीं देखे
जब तुम हँसती हो
सुना नहीं मैने
कि अच्छा गाया ही हो तुमने कभी
या लिखा हो कोई गीत
तुम्हारी अदायें भी ऐसी कोई शोख नहीं
और तुम कुछ इस तरह दाखिल हो मेरी ज़िन्दगी में
कि कुछ अच्छा नहीं लगता तुम्हारे बिना
न फ़ूलों की डाल के लचकने सी किसी की चाल
न कोई हिरनी सी आँखें
न किसी की हँसी से झरते फ़ूल
न किसी का गाना
न कवितायें
और न ही किसी की शोख अदायें
(२ मई; हमारी वैवाहिक वर्षगाँठ और उसके जन्म दिन पर)
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