| चलो लग जाओ सब फिर से अपने अपने काम में |
| रात देर से घर लौटने वाली गरीब घर की कामकाजी लड़कियों |
| वापस लौट आओ सपनों से |
| और फिर तैयार रहो किसी दुपाये जानवर के आघात से |
| अब भी कुछ बदला नहीं है |
| रोज ईंटा ढोकर गुड़ रोटी खाने वालों |
| सोच समझ के बीमार पड़ना |
| या देख समझ के आना किसी ट्रक के नीचे |
| अब भी किसी ढंग के अस्पताल में कोई जगह नहीं है तुम्हारे लिए |
| लगा दो छोटे लड़के को फिर किसी पंचर बनाने की दूकान पे |
| और छोड़ दो ये ख़याल कि अफसर बनेगा वो |
| ढंग के स्कूल अभी भी नहीं हैं उसके लिए |
| मनरेगा में फावड़े चलाओ कुछ दिन तो पेट भरेगा |
| न हो ठीक से फसल सूखे में तो खा लेना जहर |
| कौन बड़ा मंहगा मिलता है |
| बिटिया को रौंद दे कोई दरिंदा तो दुआ करना कि वो मर ही जाए |
| या तो शर्म से या फिर सरकारी अस्पतालों की मेहरबानी से |
| कुछ नहीं बदला है अभी भी तुम्हारे लिए |
| मेला लगा था चार दिन का |
| परजा तंतर का रंगीन मेला |
| सजी थीं बड़ी बड़ी दुकाने |
| खड़े थे हरकारे जगह जगह |
| हाथ जोड़े सजाये रहे दुकाने |
| सब हो चुका व्यापार |
| हो चुकी कमाई जो जो करने निकले थे |
| ख़तम हो गया सब तमाशा अब लौट आओ |
| रंग बिरंगे सपने देख लिए बहुत तुमने |
| अब तो मर ही रहो जो स्बर्ग देखना हो तो |
| और कोई चारा न है और न था कभी |
| मन तो नहीं करता है इसके आगे सोचने का |
| लेकिन दिल है कि मानता नहीं ये कहने से |
| कि और न कभी होगा |
Monday, 12 May 2014
रंग बिरंगी
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