| बहुत बढ़ चला है पेट |
| बैठी है नाले के पीछे की तरफ |
| चाय के खोखे के सामने |
| मिट्टी का एक टुकड़ा कुल्लढ़ का कुतरते |
| लगा कि जैसे |
| अभ्यास करा रही हो उसे |
| जिसे जनेगी अभी |
| माटी खाने का |
| माटी में जीने का |
| और यूँही माटी हो जाने का |
Monday, 31 October 2011
पेट से
Friday, 28 October 2011
दिवाली
| गहरा गई थी साँझ |
| आधा चुल्लू कड़वा तेल लिए |
| उसने सोचा जरूर होगा |
| नून के साथ रोटी में लगा के |
| बच्चे खा लेंगे ठीक से |
| लेकिन फ़िर त्यौहार की रात |
| अन्धेरा भी नहीं ठीक |
| कोई गमी तो है नहीं घर में |
| उहापोह तो रहा मन में |
| हाथ मगर बेलते रहे बाती |
| और आखिर बार ही दिये |
| उसने भी दिये अपने चौबारे |
| कौन रोज रोज आती है दिवाली |
Wednesday, 5 October 2011
मेरे बगैर
| सुना है जबसे मेरे बगैर वो रह नहीं सकते |
| तबसे शहर के लोग हमसे खुश नहीं रहते |
| जो मेरी एक झलक पाने को भी तरसते थे |
| आंहें भरते थे कसम खाते थे और तडपते थे |
| दीवाना समझते हैं हँसते है और चले जाते हैं |
| अब वे लोग मेरे पास दो घड़ी भी नहीं रहते |
| सुना है जबसे मेरे बगैर वो रह नहीं सकते |
| पहले पहल तो मेरा दिल जार जार रोता था |
| सबकी बेदिली से दामन तार तार होता था |
| जी में हो तो रो लेते हैं कभी चुप बैठ रहते हैं |
| अपने इस हाल पर अब हम कुछ नहीं कहते |
| सुना है जबसे मेरे बगैर वो रह नहीं सकते |
| ज़रा ठेस पे दिल कांच का टूट जाये तो क्या |
| न अगर रोये तो कोई आखिर करे भी क्या |
| लोगों को ये गुमान है कि वे सख्त दिल हैं |
| आँसुओं को अफ़सोस है कि बह नहीं सकते |
| सुना है जबसे मेरे बगैर वो रह नहीं सकते |
| किसी को कोई भला किस तरह भुलाता है |
| अपने ही दिल से आखिर कैसे दूर जाता है |
| ये तो जिस पे गुज़रती है वही समझ पाता है |
| हम अगर चाहें भी तो खुद कह नहीं सकते |
| सुना है जबसे मेरे बगैर वो रह नहीं सकते |
Sunday, 2 October 2011
सारा
| देखो तो सब कुछ हमी हैं यहाँ |
| नहीं तो कुछ भी नहीं हैं यहाँ |
| चाँद तारों से सीधी मुलाकात है |
| उजालों की सूरज से सौगात है |
| मै राजी नहीं हूँ छोटी बात पर |
| दावा है सारी कायनात पर |
| ले सको तो दुनिया तैयार है |
| ज़िंदगी इससे कम पे बेकार है |
| उर्दू के दड़बे में रहना नहीं |
| एक मंदिर में सिमटना नहीं |
| टुकड़ों में हमको बटना नहीं |
| अपना तो ये पूरा संसार है |
| ले सको तो दुनिया तैयार है |
| क्यों हम भारत चीन के हों |
| क्यों नए या प्राचीन के हों |
| सब समयों और जगहों से |
| जीवन धर्म करम से पार है |
| ले सको तो दुनिया तैयार है |
| रहन सहन और खान पान |
| कितना विविध कैसा महान |
| ये सब कुछ जो भी है मेरा है |
| अपना ही सारा परिवार है |
| ले सको तो दुनिया तैयार है |
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