| बहुत बढ़ चला है पेट |
| बैठी है नाले के पीछे की तरफ |
| चाय के खोखे के सामने |
| मिट्टी का एक टुकड़ा कुल्लढ़ का कुतरते |
| लगा कि जैसे |
| अभ्यास करा रही हो उसे |
| जिसे जनेगी अभी |
| माटी खाने का |
| माटी में जीने का |
| और यूँही माटी हो जाने का |
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अनुभूति सत्य है, अभिव्यक्ति मिथ्या.
ओह ..गहन बात
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