न मानता है न सुनता है |
जो चाहिए सो चाहिए |
बस अपने से मतलब |
ठीक है कि नहीं |
सोचना ही नहीं चाहता |
न सब्र है न करार |
जिद है तो है |
बड़ी मुसीबत है |
एक पल को नहीं बैठने दे है चैन से |
परेशान कर रखा है |
इतनी दुश्मनी अगर है हमसे |
तो फिर रहता क्यों हैं यहाँ सीने में |
Tuesday, 27 November 2012
भला क्यों
Monday, 26 November 2012
Monday, 19 November 2012
चन्दन खबरें बंद भीड़ और टेलीविजन
चन्दन की लकड़ी पर जलने से |
बदन को कम तकलीफ होती है क्या |
आत्मा सच में ज्यादा प्रफुल्लित होती है क्या |
बड़े बड़े लोगों को शोकातुर देखकर |
चिता का बनाव श्रृंगार क्या |
स्वर्ग के द्वार पाल को रिश्वत होती होगी |
बड़ी खबर बन जाने से |
अंत क्या सुखदाई हो जाता होगा |
लोगों का हुजूम क्या यमराज पर |
कोई दबाव बना पाता होगा |
बेहतर कक्ष आरक्षित करने में |
तोपों की सलामी क्या स्वर्गाधीशों के लिए |
अलार्म का काम करता होगा |
भैया वी आई पी अभी आर आई पी हुए हैं |
शीघ्र ही आपके द्वार पर पधारते होंगे |
बंदनवार सजाइये |
अप्सराओं को बुलाइए |
दुन्दुभी बजाइए |
और स्वागत के लिए सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाइए |
ये जितने सी यम पी यम डी यम जी यम पधारें है यहाँ |
सब हँसेगें इन बचकाने सवालों पर अभी अगर इनसे पूछो |
लेकिन इतना तय है |
यहाँ से जाकर ये भी |
लग उन्ही कार्य कलापों में जायेंगे |
जिनसे इन्हें भी मरणोपरांत मिल सके |
चन्दन खबरें बंद भीड़ और टेलीविजन |
Friday, 16 November 2012
देखें तो सही
ऐ जगमगाती रोशनियों |
कभी आओ इधर भी |
युगों से जहाँ पहुंचा नहीं कोई |
उस पार के अँधियारे चाँद की |
कुरूपता का बखान भी कभी हो |
जिन खयालों पर अपराध के ताले लगें हैं |
किस जमीन में वे पनपते हैं आखिर |
चर्चा हो जाए ये भी कि |
काले अक्षरों में सब कुछ सफ़ेद ही होता है क्या |
जो झुठलाया जाकर भी होता तो है ही |
जवान बेवा की कामनाएँ ज्यूँ दफ़न रिवाजों में |
इंसानियत किन्ही अरमानों की |
कब्रगाह बनी घूमती न हो सदियों से |
सच के कुछ मोती न छुपे हों |
गहरी अँधेरी घाटियों में कहीं |
आओ चलके देखें तो सही |
बने बनाए के बिगड जाने की आशंका |
पुरुषार्थ को कोई चुनौती भी अगर है |
फिर भी शायद |
चाँद को एक बारगी ही सही |
पूरी रोशनी में देख लेने की चाह |
उद्वेलित करती है मुझे |
कभी आओ इधर भी |
ऐ जगमगाती रोशनियों |
Thursday, 8 November 2012
४७ पन्ने
एक एक पन्ना ज़िन्दगी |
इतिहास में चुपचाप ले जाकर |
बाँध रखा है वक्त ने जिल्द में |
मिटे मिटे से कुछ हर्फ़ |
जिनमे बाकी है धीमी सी सांस अभी |
धुन्धलाये से पड़े यहाँ वहा कुछ नुक्ते |
याद की लहरों को झोंका देते हुए कई सफे |
एहसासों की गर्मियां और |
बुझती बुझती सी चन्द खुशबुएँ ज़िंदा हैं अभी |
पन्नो के बीच दबे सूखे गुलाब |
कागजों के मुड़े हुए कोने |
एक पशेमंजर बयान करते हैं |
रंगीन खुशनुमा दिलचस्प मुतमईन |
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