| तितलियों के पंख नोच डालने की चाहत |
| खिलते गुलाब की पंखुड़ियां तोड़ |
| बिखेर डालने की चाहत |
| किसी हिरन के उछलते दौड़ते नन्हे शावक को |
| मार गिरा देने की चाहत |
| देर शाम पहाड़ों के पीछे छिपते सूरज की खूबसूरत तस्वीर को |
| काले रंग से पोत डालने की चाहत |
| जिन किन्ही दिलों में कभी जन्म लेती है |
| वे लाख माने मर्द खुद को |
| समझें अपने को वीर |
| लेकिन ऐसा है नहीं |
| ताकत है अगर कुछ कर सकने की |
| तो कभी एक तस्वीर में रंग भर के दिखाओ |
| किसी दौड़ते को पंख देकर दिखाओ |
| किसी फूल में खुशबू डालकर दिखाओ |
| कोई बाग़ सजाओ तितलियों के लिए |
| वरना लानत है तुम्हारी ज़िन्दगी पर |
Thursday, 3 January 2013
विध्वंस
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Sir,
ReplyDeleteBahot hi sundar aur sateek.