| और भी घना होगा अन्धेरा तो क्या |
| कभी तो कटेगी ये बियाबान रात |
| निकलेगा कभी तो यहाँ भी सूरज |
| कभी तो बस्तियों मे उजाला होगा |
| और भी कुछ होगा कफ़न के सिवा |
| पहनने को ज़िंदा लाशों के तन पर |
| अनगिनत मासूम इंसानों के बच्चे |
| रह गए आज सिर्फ कंकाल बन कर |
| कहीं घूरों पे कुत्तों से टुकड़ों की झडपें |
| अस्पतालों के बाहर दवाई को तड़पें |
| खाने को केवल जिन्हें गम हैं अभी |
| उनके भी हलकों में निवाला होगा |
| कभी तो बस्तियों मे उजाला होगा |
Friday, 17 May 2013
कभी तो
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एक उम्मीद...जो होगी पूरी..
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