भिखारी का कोई दीन धरम नहीं होता |
मंदिर मस्जिद गिरजा गुरुद्वारा या मदिरालय |
कहीं भी मांग लेता है |
उसकी कोई जात बिरादरी भी नहीं होती |
हिन्दू मुस्लिम इसाई या फिर अधर्मी |
किसी से भी मांग लेता है |
बाकी और लोग |
जो अपने को भिखारी नहीं समझते |
एक ही जगह जाते हैं मांगने |
हर बार जब भी कुछ चाहिए |
मिले न मिले |
मंदिर तो मंदिर मस्जिद तो मस्जिद |
और कुछ नहीं भी जाते कहीं मांगने |
जहाँ बैठे वहीं मांग की जप चलती रहती रहती है |
इस मामले में हम सब ज्यादातर लोग |
बहुत संकुचित भिखारी नहीं हैं क्या ? |
Saturday, 22 October 2016
छोटे बड़े भिखारी
Monday, 18 July 2016
ख़ूनी किताबें
किताबें हैं आजकल |
बम बनाना सीख सकते हैं लोग |
जिन्हें पढ़कर |
लोग हैं जो समझा सकते हैं |
पढ़कर उन्हीं किताबों से |
खुद अगर न समझो तो |
कैसे और कहाँ उन बमों से |
सबसे ज़्यादा खून मासूमों का बहे |
ऐसी तरकीबें भी बताते है ये लोग |
ग़ज़ब तो ये है |
कि क्यों किया जाना चाहिए ऐसा |
यह भी बता देते हैं ये लोग |
एक किताब पढ़कर |
Friday, 5 February 2016
दशहरा
चमचमाती बिजलियां |
बेतहाशा शोर |
बड़े बड़े लोहे के रथों पर सवार |
हथियार बंद लोगों का हुजूम |
भारी तमाशबीन भीड़ को चीर |
जगह जगह घूमकर |
कागजों के पुतले जलाते |
अट्टहास करते रहे |
बहुत सारे रावण |
साल दर साल |
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