| ऐ गंदी लड़कियों |
| ऐ घूमने फिरने वाली लड़कियों |
| सूर्यास्त के बाद भी |
| तुम्हारे पैरों में चलने फिरने की ताकत रहती है आश्चर्य |
| तुम्हे बनाते समय ईश्वर से कोई भूल हो गई होगी ज़रूर |
| ऐ निर्लज्ज लड़कियों |
| ऐ पढ़ी लिखी लड़कियों |
| सिनेमा देखने के बावजूद |
| तुम्हारी आँखों में देखने की शक्ति बनी रहती है आश्चर्य |
| तुम्हे बनाते समय ईश्वर से कोई भूल हो गई होगी ज़रूर |
| ऐ चाऊमीन खाने वाली लड़कियों |
| ऐ तंग कपडे पहनने वाली लड़कियों |
| ऐ हंसी मजाक करने वाली लड़कियों |
| तुम्हे बनाते समय ईश्वर से कोई भूल हो गई होगी ज़रूर |
Wednesday, 15 November 2017
ऐ लड़कियों
Tuesday, 14 November 2017
दिल्ली की धुंध
| दिल्ली धुंध में है |
| अब तो पता चल रहा है अंधों को भी |
| आँख वाले कहते हैं लेकिन |
| तख्तो ताज की मेहरबानी से |
| बरसों से है |
| धुंध में दिल्ली |
Monday, 13 November 2017
अमरत्व
| वे चाहते हैं |
| इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो जाना |
| जिन राहों पर चलकर |
| वे जाती हैं वहां जहाँ |
| न कोई होगा इतिहास लिखने वाला |
| और न पढने वाला |
Monday, 29 May 2017
विकास का भोंपू
| बज रहा है भोंपू दिन रात |
| विकास विकास विकास विकास |
| बह रहा है चारों ओर विकास |
| लाउड स्पीकरों से निकलकर |
| नया नया बना है |
| गरम होगा शायद |
| बटोर ही नहीं पा रही जनता |
| लपक के नालियों में जा बहता है |
| थोड़ा थोड़ा चाट लेते हैं कुत्ते |
| सुअरों की मौज है |
| ख़ूब भर रहे हैं पेट और घर |
| कोलाहल मचा रहे हैं |
| तालियाँ पीट रहे हैं |
| उत्सव मना रहे हैं जगह जगह |
| ख़ाली पेट आम आदमी |
| जलसे में खड़ा होके खींसे निपोरने को बाध्य है |
| नहीं तो कहीं ग़द्दार न क़रार कर दिया जाए मुल्क का |
Monday, 20 March 2017
बैठक
| सब कुछ ख़त्म हो जाने के बाद |
| बाकी बची यादें |
| गाहे बगाहे |
| बियाबान सन्नाटों में दीवारों से |
| टकराती फिरती रहेंगी |
| किसी के उलझन का सबब |
| किसी के आंसुओं का राज़ |
| किसी की तन्हाइयों की हमसफ़र |
| किसी के परों का हौसला |
| कहाँ तक लेकिन |
| और कब तक |
| उलझन आंसू तनहाई पर और दीवारों के |
| खत्म हो जाने के बाद |
| उन अनाथ यादों के लिये |
| वक्त और कायनात की गिरफ्त में |
| सफ़र करते रहने के दरम्यान |
| आओ मिल बैठें और रोलें |
| ज़रा देर हम तुम |
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