सब कुछ ख़त्म हो जाने के बाद |
बाकी बची यादें |
गाहे बगाहे |
बियाबान सन्नाटों में दीवारों से |
टकराती फिरती रहेंगी |
किसी के उलझन का सबब |
किसी के आंसुओं का राज़ |
किसी की तन्हाइयों की हमसफ़र |
किसी के परों का हौसला |
कहाँ तक लेकिन |
और कब तक |
उलझन आंसू तनहाई पर और दीवारों के |
खत्म हो जाने के बाद |
उन अनाथ यादों के लिये |
वक्त और कायनात की गिरफ्त में |
सफ़र करते रहने के दरम्यान |
आओ मिल बैठें और रोलें |
ज़रा देर हम तुम |
Monday, 20 March 2017
बैठक
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