| कुछ बीत गया कुछ बिता दिया |
| कुछ भूल गया कुछ भुला दिया |
| कुछ उम्मीदों से रिश्ते थे |
| कुछ रिश्तों से उम्मीदें थीं |
| कोई बना रहा अनचाहा सा |
| कोई चाहत के भी पार गया |
| कुछ खूब निभा कुछ निभा दिया |
| कुछ बीत गया कुछ बिता दिया |
| कुछ जीवन था कुछ सपना था |
| जो समय कटा सब अपना था |
| इस दुनिया के कुरुक्षेत्र में |
| इधर भी अपने थे और उधर भी |
| कभी जीत गया कभी जिता दिया |
| कुछ बीत गया कुछ बिता दिया |
| यादें धड़कन क़िस्से क़समें |
| कुछ तूफ़ानी कुछ शांत झील |
| कभी पार गया कभी डूबा भी |
| इस काल चक्र के दलदल में |
| फ़ंसा कभी कभी फ़ंसा दिया |
| कुछ बीत गया कुछ बिता दिया |
| सूरज ने जलाया ज़रा ज़रा |
| बारिश ने गलाया धीरे धीरे |
| हवा सुखाती चुपचाप रही |
| हम समझे थे जीवन जिसको |
| टुकड़ों टुकड़ों में चला गया |
| कुछ भूल गया कुछ भुला दिया |
Friday, 3 January 2020
बीती बिताई
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 3 जनवरी 2020 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
सादर
वाहः खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
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