अग्नि धरती जल वायु और आकाश की
गोद मे पलकर एक नन्हा सा बीज
बना विशाल वृक्ष
उससे जन्मे अनगिनत नन्हे बीज
एक एक बीज को फ़िर सँभाला प्रकृति ने
ऒर फ़िर अनगिनत वृक्ष
ऒर अधिक बीज
ऒर ऒर वृक्ष
हर ओर पास पास ऒर दूर भी
हुआ विस्तार ऒर हो गये बहुत बहुत दूर
एक ही कोख से जन्मे।
इस ओर के एक वृक्ष ने बना ली चौपाल
अपने पास के वृक्षों को फ़ुसलाकर
जाने क्यों!
ऎसा ही किया उस ओर के वृक्षों ने भी
उसी वजह से
जाने क्यों!
फ़िर आई एक भयानक अशान्ति
जहाँ है
ढेर सारी कटुता
ढेर सारी निर्दयता
ढेर सारा वैमनस्य
ढेर सारी घृणा
ऒर फ़िर
सड़कों पर मकानों में
मन्दिर में दुकानों में
नदियों पहाड़ों पर
सागर ऒर किनारों पर
बेवजह बहता हुआ
गर्म लाल
जो देखते हो तुम
वो खून है
उस पहले बीज की आत्मा का
जो चीखती चिल्लाती
अपने को नोचती बदहवास
आकाश से पाताल तक
आदि से अनन्त तक
भागती फ़िरती है
एक शान्त कोने की चाह में
जहाँ हो
ज़रा सी ममता
ज़रा सी दया
ज़रा सी सहिष्णुता
ज़रा सा प्रेम।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment