अभी तुम थे अभी नही हो
तुम जो कहते थे
सुबह हर रात की होती है
हर वीराने को घर होना है
तुम जिससे की
जिन्दा थी हसरतें
रोशनी का पता मिलता था
बैरंग से किसी एक ख़त को
जैसे एक मकाँ मिलता था
हवायें फ़ुसलाकर न जाने कहाँ कहाँ
तैयार रहती थीं भटकाने को
हर एक खयालात ने ठानी थी
छोड़ जाने को आशियाने को
तुम जो कि
किस्से सुनाते थे सूरजों के
कि गहराई हुई रात कटे
उम्मीदें जमा होने लगी थीं
आहट सी सुनी थी सुबह की
जीने के लिये फ़िर एक बार
दिल ने कहा था कि आओ चलें
उठके दो कदम और फ़िर देखा फ़िर के
सोचा था कि तुम मिलोगे मेरे पीछे
मुस्कराते हुये और कहोगे कि चलो दौड़ें
तुम जो कहते थे कि मरती नहीं है ज़िन्दगी
कहाँ हो तुम !
अभी तुम थे अभी नही हो
दिल है कि मानता ही नहीं
ऒर ये लगता है
अभी भी तुम हो
और यहीं कहीं हो!
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किसी के याद में मेरे मन में कुछ ऐसे ही ख्याल आते है
ReplyDeleteजिन्हें आपने शब्दों में उतार दिया है
अति सुंदर,दिल को छु लिया |
tumse jis se, zinda thi hasratein...roshni ka pata milta tha....
ReplyDeletekitna kuch simat jata hai ek inssan ke wajood mein... wo ho ya na ho !
Beautiful!
ReplyDeletekitni door ki soch hai aapki mishraji
ReplyDeletethoda dhyan se dekho.
ReplyDelete-
nalini