हम जो बन सके करते हैं
वो जो मन करे करते हैं
है रोशन किसी से जहाँ
ऒर कुछ यूँही जलते हैं
कुछ को तेरा दर नसीब
बाकी दर बदर भटकते हैं
मस्जिद मे जा बिगड़े हुये
मैखानों मे आ सुधरते हैं
क्यों जीते हैं खुदा जाने
जो न किसी पे मरते हैं
सुन ऎ दिल धीरे से चल
अभी वो आराम करते हैं
Monday 12 October, 2009
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