सरहदों की हिफाज़त करने वालों |
तुम जिन झूठी लकीरों की खातिर |
अपना खून पानी की तरह बहाते हो |
उसके बदले में तुम्हारे बूढ़े बाप को |
पानी की एक बोतल भी नहीं मिलती |
तांबे के जिन टुकड़ों को तमगों जैसे |
बड़े फक्र से तुम छाती पर सजाते हो |
उनको बेचकर तुम्हारे छोटे बच्चे को |
चवन्नी भर चूरन तक नहीं मिलता |
जो तुम्हारी मौत को शहादत कहते हैं |
वे तुम्हारी लाश पर सियासत करते हैं |
वे तुम्हारे नाम पर फहराते तो हैं झंडा |
नज़र में उनकी होता है मगर वो डंडा |
जिसके दम पे वो तुम्हारे भाइयों और |
बहनों का तबीयत से चूसते हैं खून |
पीने को सिर्फ आँसू और खाने को गम |
केवल यही मिलता है उनको दोनों जून |
तुम मजारों पर मेलों का ख़्वाब देखते हो |
तुम्हारी बेवा चंद ठीकरों को तरसती है |
तुम अपने बाकी निशाँ का फक्र करते हो |
ज़िंदा निशानी तुम्हारी दर दर भटकती है |
जिन चंद लोगों के हाथों का खिलौना |
बनके बेकार में गंवाते हो अपनी जान |
उनकी जालसाजियों को ठीक से जानो |
करो तो ज़रा उनके ईमान की पहचान |
कागज़ के नक्शों पर खींच कर लकीरें |
तुमको मोहरे बनाकर बाज़ी बिछाते हैं |
हथियारों के ज़खीरे की दुकाने सजाकर |
वे तुम्हारी मौत का सामान जुटाते हैं |
हम सब पर चढ कर राज करने के लिए |
उन्होंने खींची हैं जो ये लकीरें नकली |
ज़रा देखो तो सही वे कहीं हैं जमीं पर |
जिनके लिए तुम बहाते हो खून असली |
Monday, 18 July 2011
सैनिक से
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