वहम सबको आज़ादी का है मगर |
हर कोई यहाँ सीखचों के उस पार है |
मिली है किसी को उम्र कैद की सजा |
और कोई तो सूली पर खड़ा तैयार है |
घुटने लगा है दम अब इस चमन में |
बासी हो चुकी है हवा बदलनी चाहिए |
बन सकती है जरूर जन्नत ये जमीं |
ये जमीन जन्नत बननी ही चाहिए |
बहुत गहरा चली है ये सियाह रात |
अब बस इक नई सुबह की दरकार है |
वहम सबको आज़ादी का है मगर |
हर कोई यहाँ सीखचों के उस पार है |
ज़िंदगी गीत गाती नाचती फिरती हो |
बस हर तरफ हों जगमगाते उजाले |
जहाँ सांस लेने पर पाबंदियां न हों |
और न हों दिल कि धडकनों पर ताले |
इंसान की सेहत को आज़ादी चाहिए |
इस वक्त तो लेकिन आदमी बीमार है |
वहम सबको आज़ादी का है मगर |
हर कोई यहाँ सीखचों के उस पार है |
आम आदमी की बुरी हालत हो गई है |
और इंसानियत किस तरह लाचार है |
जो कुछ कर सकते हैं उनके लिए तो |
भूख और गरीबी भी महज व्यापार है |
चील कौवों की तरह नोंचते फ़िर रहे |
ऐसी शासन व्यवस्था को धिक्कार है |
वहम सबको आज़ादी का है मगर |
हर कोई यहाँ सीखचों के उस पार है |
Tuesday, 19 July 2011
वहम
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