| देखो अभी वो जो दफनाया गया है |
| या फ़िर वो जिसे जलाया गया है |
| और वे भी जो विसर्जित हुये हैं बहते पानी में |
| उन सबका सामाजिक अंतिम संस्कार भले ही किया गया हो अभी |
| भले ही चलते फिरते उठते बैठते सांस लेते रहें हों अब तक वे सभी |
| मौत लेकिन उन सभी की |
| घटित हो गई होगी बहुत पहले |
| या शायद पैदा ही वे हुये होंगे मुर्दा |
| क्योंकि किया तो उनने कुछ भी नहीं कभी |
| जब चुन के चुन के गर्भों को बनाया गया |
| अजन्मी कन्यायों का कब्रिस्तान |
| अटके नहीं कभी निवाले उनके हलक में |
| घूरों पे जब बच्चे इंसानों के खंगालते ढूँढते रहे खाना |
| सूअरों और कुत्तों के साथ |
| कभी देखा तो गया नहीं उनका खून गर्माते |
| ठन्डे हो रहे मासूम बच्चे नकली इन्जेक्सनो से जब |
| रौंद दी गई आबरू जब किशोरियों की किसी बड़ी कुर्सी तले |
| एक ज़रा सी आह तक तो सुनी गई नहीं उनके मुँह से |
| हमेशा के लिए चुप करा दिया गया सुकरातों को जब कभी |
| या जड़ गिए गए ताले कलमों पर |
| राते गए गहरे सन्नाटे में कभी जीभर रोये तक न वे |
| कुछ न कर पाने की लाचारी पर |
| न |
| जीना तो इस तरह होता नहीं इंसानों का |
| अगर ऐसा ही परिभाषित है जीवन किताबों में |
| तो लगा दो आग उनमे और अनपढ़ बने रहो |
| अगर ये विकास की कीमत है और मजबूरी सभ्यता की |
| तो रहने दो विकास और असभ्य बने रहो |
Wednesday, 21 December 2011
सभा में बैठने की अयोग्यता
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