Monday, 31 December 2012

भारत पुत्री

वह लड़ी होगी 
वह बड़ी हिम्मत से लड़ी होगी
जीने की अदम्य लालसा लिए 
मौत से इतने दिन लड़ते सबने देखा उसे 
अपने सम्मान को बचाने ले लिए 
उन दरिंदो से भी यक़ीनन खूब लड़ी होगी वह 
और जाते जाते एक चुनौती दे गई है हम सब को 
इंसानियत का हक़ अदा करने की चुनौती 
वह कह गई है 
हमसे कुछ सीखो तो लड़ाई मत छोड़ना 
जीने की लड़ाई 
सम्मान की लड़ाई 
आजादी से सांस लेने की लड़ाई 
पूरी ताकत भर विरोध में खड़े रहना दरिंदगी के 
हमने तो खूब संघर्ष किया काले चेहरों से 
अब तुम्हे मेरी कसम 
सिर्फ चेहरों तक उलझ के मत रह जाना 
उनके पीछे की पूरी कालिख को देख लेना ठीक से 
एक एक कोने से निकाल खींचना अँधेरी साजिशों को 
और मत बैठना चैन से 
सूरज के निकलने तक 

Tuesday, 18 December 2012

सुदर्शन चक्र

फिर दुस्शासन अपनी पर है 
उसको यक़ीनन दुर्योधन का सहयोग है 
सुरक्षा के जिम्मेदार धूर्त चालबाज शकुनि ने 
शिखंडियों को लगाया है पहरों पर 
कर्तव्य से बढ़कर मर्यादा का बोझ लादे 
दुबके बैठे हैं चुपचाप विदुर द्रोण और भीष्म 
कुछ देखना ही नहीं चाहती 
पुत्र मोह से ग्रसित साम्राज्ञी गांधारी
ऐसा ही होता है एक अंधे राजा के शासन में 
एक बार जो अत्याचार हो गया स्त्री पर 
वस्त्र दान कोई उपाय नहीं है नारी की व्यथा का 
उस पर हुये अत्याचार सिर्फ और सिर्फ गर्दनें उतारने से कम होंगे 
अफसोस यह 
कि भगवान कृष्ण भी आ जाएँ 
तो वे भी सुदर्शन नहीं चलाते अपना 
द्रौपदियों के नामों की लिस्ट बढ़ती जाती है रोज रोज 

Tuesday, 27 November 2012

भला क्यों

न मानता है न सुनता है 
जो चाहिए सो चाहिए 
बस अपने से मतलब 
ठीक है कि नहीं 
सोचना ही नहीं चाहता 
न सब्र है न करार 
जिद है तो है 
बड़ी मुसीबत है 
एक पल को नहीं बैठने दे है चैन से 
परेशान कर रखा है 
इतनी दुश्मनी अगर है हमसे 
तो फिर रहता क्यों हैं यहाँ सीने में 

Monday, 26 November 2012

नरदौड़

जलसा बड़ा था 
होने वाली थी नरदौड़ 
हर ओर ध्यान से देखा 
स्टेडियम में 
नहीं आया था देखने 
एक भी घोड़ा 
  

Monday, 19 November 2012

चन्दन खबरें बंद भीड़ और टेलीविजन

चन्दन की लकड़ी पर जलने से 
बदन को कम तकलीफ होती है क्या 
आत्मा सच में ज्यादा प्रफुल्लित होती है क्या 
बड़े बड़े लोगों को शोकातुर देखकर 
चिता का बनाव श्रृंगार क्या 
स्वर्ग के द्वार पाल को रिश्वत होती होगी 
बड़ी खबर बन जाने से 
अंत क्या सुखदाई हो जाता होगा 
लोगों का हुजूम क्या यमराज पर 
कोई दबाव बना पाता होगा 
बेहतर कक्ष आरक्षित करने में 
तोपों की सलामी क्या स्वर्गाधीशों के लिए 
अलार्म का काम करता होगा 
भैया वी आई पी अभी आर आई पी हुए हैं 
शीघ्र ही आपके द्वार पर पधारते होंगे 
बंदनवार सजाइये 
अप्सराओं को बुलाइए 
दुन्दुभी बजाइए 
और स्वागत के लिए सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाइए 
ये जितने सी यम पी यम डी यम जी यम पधारें है यहाँ 
सब हँसेगें इन बचकाने सवालों पर अभी अगर इनसे पूछो 
लेकिन इतना तय है 
यहाँ से जाकर ये भी 
लग उन्ही कार्य कलापों में जायेंगे 
जिनसे इन्हें भी मरणोपरांत मिल सके 
चन्दन खबरें बंद भीड़ और टेलीविजन 

Friday, 16 November 2012

देखें तो सही

ऐ जगमगाती रोशनियों 
कभी आओ इधर भी 
युगों से जहाँ पहुंचा नहीं कोई 
उस पार के अँधियारे चाँद की 
कुरूपता का बखान भी कभी हो 
जिन खयालों पर अपराध के ताले लगें हैं 
किस जमीन में वे पनपते हैं आखिर 
चर्चा हो जाए ये भी कि 
काले अक्षरों में सब कुछ सफ़ेद ही होता है क्या 
जो झुठलाया जाकर भी होता तो है ही 
जवान बेवा की कामनाएँ ज्यूँ दफ़न रिवाजों में 
इंसानियत किन्ही अरमानों की 
कब्रगाह बनी घूमती न हो सदियों से 
सच के कुछ मोती न छुपे हों 
गहरी अँधेरी घाटियों में कहीं 
आओ चलके देखें तो सही 
बने बनाए के बिगड जाने की आशंका 
पुरुषार्थ को कोई चुनौती भी अगर है 
फिर भी शायद 
चाँद को एक बारगी ही सही 
पूरी रोशनी में देख लेने की चाह 
उद्वेलित करती है मुझे 
कभी आओ इधर भी 
ऐ जगमगाती रोशनियों 

Thursday, 8 November 2012

४७ पन्ने

एक एक पन्ना ज़िन्दगी 
इतिहास में चुपचाप ले जाकर 
बाँध रखा है वक्त ने जिल्द में  
मिटे मिटे से कुछ हर्फ़ 
जिनमे बाकी है धीमी सी सांस अभी 
धुन्धलाये से पड़े यहाँ वहा कुछ नुक्ते 
याद की लहरों को झोंका देते हुए कई सफे 
एहसासों की गर्मियां और 
बुझती बुझती सी चन्द खुशबुएँ ज़िंदा हैं अभी 
पन्नो के बीच दबे सूखे गुलाब 
कागजों के मुड़े हुए कोने 
एक पशेमंजर बयान करते हैं 
रंगीन खुशनुमा दिलचस्प मुतमईन

Tuesday, 9 October 2012

रस्सियाँ

चुपचाप खड़ा

वह धैर्य धन गर्दभ

पीछे का बांया पैर

और आगे का दांया

रस्सी से बंधे

चल तो पाता लेकिन घोंघे की चाल

मैंने अपने पैरों की तरफ देखा

मैंने औरों के पैरों की तरफ देखा

तमाम अदृश्य रस्सियों के मायावी जाल

एक दूसरे से बंधे घिसटते तमाम पाँव

और केंचुए सी रेंगती मनुष्यता

Sunday, 7 October 2012

आमो खास

गुठली भर समझ के फेंक दिए गए

दबे रहे गहरे

उमस सडन अन्धकार और गर्मी से

निकले उगे पैदा हुए

और और

आम आदमी

खास लोगों द्वारा

जो चूसे गए

और फिर

गुठली भर समझ के फेंक दिए गए

Friday, 5 October 2012

सपने तो आखिर सपने हैं

शिखरों पर बैठे जमकर

बहकर बनते झरने हैं

बादल कब किसके अपने हैं

सपने तो आखिर सपने हैं

फूल सहेजें लाख मगर

शूल ह्रदय में चुभने हैं

सुख जितना मिलता है

उतने ही दुःख सहने हैं

सपने तो आखिर सपने हैं



एक लहर ऊपर जाती है

वही मगर नीचे आती है

ऊपर नीचे आगे पीछे

नियति नाच नचाती है

भवनों के कंगूरे भी आखिर

धूल धूसरित होने हैं

इन्द्रधनुष के रंगों जैसे

सिर्फ हवा में सजने हैं

सपने तो आखिर सपने हैं



मरुस्थल हैं सागर भी हैं

और यहाँ पर हैं उपवन

कभी हार ही हाथ लगेगी

कभी जीत से आलिंगन

पल भर को गिरने से पहले

आँख में मोती सजने हैं

रोज टूटते रोज बिखरते

रोज मगर फिर बुनने हैं

सपने तो आखिर सपने हैं

Friday, 28 September 2012

कुट गए डार्विन भईया

 
जब स्वर्ग पहुँचे डार्विन भाई 
बंदरों ने कर दी उनकी पिटाई 
बोले आदमी को ऊँचा बताते हो 
उन्हें हमारा विकास बताते हो 
वो तो बहुत ही गया बीता है 
भाई भाई का खून पीता है 
औरतों से ही जनम पाता है 
कोख को उनकी कब्र बनाता है 
किताबों में नारी का गुणगान करता है 
हकीकत में घोर अपमान करता है 
प्रेम के गीत गाता है 
जीवन घृणा से बिताता है 
दुनिया में हर कोई किसी का दुश्मन है 
इंसानियत विकास नहीं हमारा पतन है 

Thursday, 20 September 2012

फुहारें

जगह दे देती है सड़क
पानी को बारिश में 
बैठ जाती है यहाँ वहाँ 
उखड़े पत्थर बजरी 
छोटे छोटे ताल तलैया 
जलभराव और चलना मुश्किल गाड़ियों का 
लगा जैसे कह रही है सड़क 
ज़रा ठहरो भी 
ये हर वक्त की भागम भाग क्यों 
गाड़ियों को रहने दो भीतर 
पुराने अखबार निकालो 
नावें बनाई जायें 
भूल गए हो तो सीख लो बच्चों से 
बरामदे में बैठो 
फुहारों के साथ मजा लो पकौड़ियों का 
चाय पियो तसल्ली से 
साथ हो प्रिय तो पहलू नशीं रहो कुछ देर 
न हो साथ तो तसव्वुरे जानाँ की फुरसत निकालो 
बूँदों के संग नाचो गुनगुनाओ 
तनिक भीग भी लो
या यूँही बिता दोगे जिंदगी 
सूखी सूखी सी 

Thursday, 13 September 2012

फिर सही

रोज सुबह आँख खोलते ही 
आसमान की चुनौती 
उत्साहित करती है 
उसकी विस्तृत नीरवता पुकारती है 
आगे आगे भागते  
पीछे मुड़कर मुस्कराते हुए 
हाथ के इशारे से साथ बुलाते 
किसी बचपन के दोस्त सा 
एक शुभ्र बादल का टुकड़ा 
कहता है चले आओ 
डैने खोलता हूँ 
पर तोलता हूँ 
निकलना है अनंत की यात्रा पर 
पेट में कुछ तो दाना चाहिए 
खोज में निकलता हूँ 
बीत जाता है दिन उसी में 
लौटने लगते हैं परिन्दे  
गहराने लगती है रात 
डैने समेट लेता हूँ 
आँखों में नींद के साथ साथ 
उतरने लगता है 
सुबह उठकर 
एक और प्रयत्न का स्वप्न 

Wednesday, 12 September 2012

जीरो लॉस

 
चारा खाना तो पुरानी बात हो गई 
फिर इन्होने स्पेक्ट्रम खाया 
अभी अभी खनिज लोहा 
पचा भी नहीं था 
इनने कोयला खाना शुरू कर दिया 
ये मेनू तो बड़ी बड़ी दावतों का है 
छोटी छोटी और चीजें तो खैर 
ये खाते ही रहे बीच बीच में 
तोपें ताबूत गोले बारूद 
बालू बजरी हवाई जहाज 
पुल जमीनें सड़कें खाद 
रुपया तो बीच बीच में 
बिटविन द मील्स 
बिफोर द मील्स 
आफ्टर द मील्स 
और हाजमा इनका गज़ब का है दोस्तों 
सब पचा डालते हैं 
निकालते कुछ भी नहीं 
जीरो लॉस 

Tuesday, 11 September 2012

थोड़ा कोयला देना सरकार

कुछ इंसान अभी अभी निकले हैं 
पन्द्रह दिन तक पानी में रह के 
जड़ा गए होंगे बेचारे 
हड्डियाँ ज़रा सेंक लें 
तनिक आग जलाई जाए 
आपसे बस इतनी है दरकार 
थोड़ा कोयला देना सरकार 
उधर नीचे कुछ मदरासी बंधु 
रूस और जापान के हादसों से डरे 
अपनी सेहत और जान की चिंता में 
खा रहें गोली 
डाक्टर वाली नहीं 
पुलिस वाली 
अरे बिजली ही तो देनी है ना उनको 
तो कुछ और करिये उपचार 
थोड़ा कोयला देना सरकार 
एक कनपुरिया सज्जन 
दिसा मैदान को निकले होंगे 
अँधेरे में दिखाई नहीं दिया होगा 
ऐसी जगह फारिग हो गए 
कि बुरा मान गए साहब लोग 
हालांकि जगह तो ठीक ही चुनी थी 
सो बंद हैं ससुराल में 
लिखने का शौक है सुना उनको 
अब कागज़ कलम कहाँ वहाँ 
रंगने पोतने को है दीवार 
थोड़ा कोयला देना सरकार 

Friday, 7 September 2012

खूबसूरत अँधेरे

जाते जाते सांझ ने 
आसमान के ऊपर से खींच दी चादर 
कुछ गहरे बादल 
व्यस्त हो गए तारों से खेलने में 
कभी कोई टूटता सितारा 
खींच चाँदी की लकीर गुम हो जाता 
बेहद कमजोर हँसुली सा खूबसूरत चाँद  
नीचे इधर उधर टिमटिमाती रोशनियाँ 
घने अँधेरों में उकेरा गया एक  
बेहद हसीन मंजर 
बस ज़रा सी देर में 
सुबह फाड़ डालेगी अँधेरे का ये कैनवास 
और तमाम चिरागों के क़त्ल का लहू 
अपने दामन में समेटे 
बेशर्मों की तरह 
मंडराता चमकता फिरेगा 
बदमाश सूरज 

Monday, 3 September 2012

सभ्यता

मुझे बताया गया है कि 
एक आदमी हूँ मैं 
और ब्राह्मण हिन्दू 
तमाम और उप विभाजन 
भाई पिता बेटा मित्र सह कर्मचारी 
और ये भी कि 
मैं हूँ चतुर बेईमान शरीफ क्रोधी 
अनगिनत लकीरों से भेदा गया है मुझे 
असंख्य टुकड़े समेटे 
अपने जैसे असंख्य टुकड़े समेटे 
अन्य असंख्य लोगों से मिलना 
उफ़ 
मै कभी अपना ये वाला टुकड़ा आगे कर देता हूँ 
वे अपना वो वाला 
कहीं कभी और 
मेरा दूसरा कोई टुकड़ा 
उनके किसी और ही टुकड़े से मेल खाता है 
कभी नहीं भी मिल पाता 
मै या फिर वो 
या तो पेश नहीं कर पाते उचित टुकड़े उस वक्त 
या चाहते नहीं किसी वजह से 
अनगिनत लोग अनगिनत टुकड़े 
और अनगिनत संयोग 
उचित समय उचित स्थान पर 
उचित टुकड़ा खोजना निकालना पेश करना 
टुकड़ों के टुकड़ों से इस मिलने को 
कहा जाता है सभ्यता 
बहुत पेचीदा खेल है ये 
ज़रा चूके और गए 
और हाँ 
सत्य इस खेल में 
कहीं नहीं आता बीच में 

Friday, 31 August 2012

लाशें

कभी कभी

मौत भी होती है चर्चा में

यहाँ वहाँ फुसफुसाहटें

दबी जुबानों में बातें

चैतन्य हो जाते हैं

नीरस लोग भी

तेज हो जाता है

सूचनाओं का आवागमन

रंगीन हो उठता है

कल्पनाओं का जगत

चेहरों पर उदासियाँ

मनों में उमंगें और उत्सुकताएँ

होने लगते हैं तर्क कुतर्क

उपदेश नैतिकताओं के

पुराने समय की खूबियाँ

आज की भ्रष्टतायें

सब खड़े किये जाते हैं कटघरे में

ज़माना विदेश शिक्षा परिवार

सदाचार शिष्टाचार व्यवहार

फ़िल्में पैसा और प्यार

ज्वलंत अनगिनत सवाल

खामोश जवाब

यहाँ वहाँ बिखरी पड़ी होती है लाश

थानों अदालतों अख़बारों टेलीविजनों कॉफी हाउसों में

वे लाशें अक्सर औरतों की होती हैं

Thursday, 30 August 2012

किताबें और ठेकेदार

हम तुमसे कहेंगे

जाओ और क़त्ल कर दो उन्हें

जीने लायक नहीं हैं वे लोग

फिर थोड़े समझदार तो तुम भी हो

जवान औरतें मरने से पहले

तुम्हे ज़रा सा सुख दे जायें

तो खुदा ज़न्नत ही नसीब करे उन्हें शायद

हम तुमसे कहेंगे

आग लगा दो उन खलिहानों में

तोड़ डालो सब सामान उन घरों के

और जब वो सब नष्ट ही हो रहा होगा

कोई हर्ज नहीं अगर

तुम ले लो अपनी ज़रूरत का उसमे से

ये आदेश ईश्वर के हैं

ऐसा हम जानते हैं

ऐसा लिखा है देखो इस किताब में

और उसने खुद ये लिखकर हमें भेजा है

तुमसे ये सब करवाने

जिससे तुम भी उसके चहेते बन सको

हम तुमसे कहेंगे

और करोगे तुम

क्योंकि तुम भयभीत हो

कहीं ईश्वर की अवमानना न हो जाए

क्योंकि तुम ज़रूरत मंद हो

शायद इस तरह मिले जो तुम चाहते हो

क्योंकि तुम खुद नहीं जानते

क्या लिखा है इस पवित्र पुस्तक में

पढ़ नहीं सकते न तुम

कभी सीख जाओ पढ़ना अगर

आ जाना इस तरफ

हमारी तरफ

काम बहुत है ईश्वर का

लोगों की कमी है इधर भी

Tuesday, 28 August 2012

होगी शांति चारों ओर

होंगे कामयाब होंगे कामयाब

हम होंगे कामयाब एक दिन.........

देश प्रेम के कार्यक्रमों में

बच्चों के जलसों में

विरोध प्रदर्शनों में

अनवरत गाया जा रहा है ये गीत

सन तिरासी से

बना नहीं था उससे पहले

वरना गा रहे होते हम अजल से

गा रहें हैं आज

और गाते रहेंगे आगे भी

बहुत ठीक से पता नहीं

क्या चाहते रहे इसे गाने वाले

लेकिन कामयाब होते तो दिखे नहीं आज तक

हाँ लेकिन मंच पर प्रेरणा श्रोत बने बैठे वे सज्जन

जो देखते सुनते रहे सबको गाते

वे जरूर होते गए कामयाब

और ऊँची कुर्सी

और बड़ा बंगला

और बड़ी तिजोरियां

और बड़े हरम

और मोटी चमड़ी

और मोटा पेट

Monday, 27 August 2012

......प्रविशन्ति सुप्तस्य सिंघस्य मुखे मृगा: ......

कतई आश्चर्य नहीं होता मुझे जब

जूतम पैजार होती है असेम्बलियों और संसद में

कोई मन्त्री सभापति को निर्देश देता है

और पद की गरिमा की दुहाई भी

चोरी डकैती अपहरण ह्त्या बलात्कारों में लिप्त

अपने पवित्र होने का दावा करते रहते हैं

अपराध के सबसे बड़े अड्डे हैं जो भवन

उनकी आलोचना ज़रा बर्दास्त नहीं उन्हें

संविधान में से सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे ढूँढ लेते हैं

न मिले तो बदल देते हैं सब मिल के

उनकी किताब है उनकी कलम

लाल बत्तियों में सवार बड़े बड़े गुंडे

जो तांडव करते घूमते हैं

शर्मा जायें उसे देखकर नरकाधीश यमराज भी

अनगिनत रुपयों की मचाते रहते हैं लूट

बंदूकें जो हैं उनके पास

इंसान की जानों पर सौदे बाजी

वोट बैंक की खातिर बेहूदे कानून

सत्ता का खुले आम दुरूपयोग

कुछ भी करते हैं मन मानी

कुछ भी कह देते हैं जवाब में मन मानी

तुम उखाड़ क्या लोगे उनका

लेकिन अचरज तब होता है जब

भूखों मरने को मजबूर

आत्महत्या करने को प्रेरित

बच्चे बेच डालने की नौबत में जीते हुए

दंगे में रोज खोते प्रियजन की याद में रोते

नौकरियों के अभाव में कुंठित नौजवान

इज्जतें लुटवाती औरतें कन्याएं

नरक से बदतर जिंदगी जीने को मजबूर

ये असंख्य जीव

जो इंसान कहलाते हैं

हाथ जोड़कर रिरियाते घिघियाते हुए

नेता नाम के दरिंदों के बुलावे पर

चल पड़ते हैं उनकी बकवास सुनने

और भी अचरज तब होता है मुझे जब

ये जान समझ कर कि

कुछ भी नहीं हुआ सुधार उनकी दशा में

कितनी तो बार कर चुके मतदान

कितनो को तो बिठा चुके अपनी खोपड़ियों पर

कितनो के तो हाथ में थमा चुके तलवारें

जो काट सकें तुम्हारी और तुम्हारों की ही गरदने

फिर फिर चल पड़ते हैं ठप्पा लगाने

अपने कसाइयों को चुनने

जैसे बट रहीं हों रेवडियाँ

बड़ा आश्चर्य होता है सचमुच

भेड़ों बकरियों हिरणों को

हाथ जोड़ प्रसन्न मुख जय जय कार करते

स्वेच्छा से सिंहो के मुखों में प्रवेश करते देखकर

बहुत आश्चर्य होता है

Sunday, 26 August 2012

उदास चाँद


चाँद आज उदास होगा

कोई जो पड़ोस से आया था सुध लेने पहली बार

इतनी मेहनत मशक्कत से

दांव पर लगा कर जिंदगी

देखने करीब से

खुद उसी से पूछने उसका हाल

किसी तकलीफ में तो नहीं है

बेचारा अकेला रहता है

कोई तो नहीं भला मानुस देखभाल करने को

यहाँ पड़ोस में तो खूब चहल पहल है

वहाँ लड़ने झगड़ने तक को भी कोई नहीं

उसकी तारीफ़ में पढ़ी गई कवितायें

उसकी ख़ूबसूरती में बनाए गए चित्र

उसकी फैलती चांदनी में यहाँ नीचे सजी महफ़िलें

सबसे अनजान तनहा वो

खुश हुआ होगा अपने आँचल में उस प्यारे को पाकर

अब जब वो नहीं रहा

चाँद वाकई बहुत उदास होगा आज

Friday, 24 August 2012

थोड़ा खाओ थोड़ा फेंको


जल रहा है आसाम

उड़ उड़ के चिंगारियां पहुँच रहीं हैं दक्षिण तक

कहीं सूखा तो कहीं बाढ़

चौपट किये है सब खेती

हर पड़ोसी अपना

बोये ही रहता है गांजा किसी न किसी बहाने

मर रहें हैं मराठे किसान

भड़क रहें हैं मजदूर जाटों के देश में

जग जाहिर है नक्सलियों का उपद्रव

काश्मीर का तो बना ही है नासूर चिर स्थाई

झंडा ऊंचा किये कोई न कोई

चक्का जाम ही किये रहता है राजधानी में

और उधर ठलुए सब खोदे डाल रहें हैं जो भी कुछ बचा है

खा पी लुटा डाल रहें हैं सबका माल

थोड़ा खाओ थोड़ा फेंको की तर्ज पर

ठलुओं अपने सब लगुओं भगुओं के साथ भर रहें हैं घर

नहीं समा रहा है तो भर रहें हैं विदेशी बैंको में

बालू लोहा कोयला टूजी सब झोंका जा रहा है

हवस के हवन कुंडों में

ये नरक ये अव्यवस्था ये तांडव ये सुलगती आग ये आक्रोश

ऐसा लगता है कि

एक बड़े विशालकाय बारूद के ढेर पे बैठ कर

आलू भून भून के खा रहें हैं ससुर

चार छे मुरहे लौंडे

Thursday, 23 August 2012

मेरा देश महान

दूध की नदियाँ बहती थी मेरे देश में

सोने की चिडियाँ रहती थी मेरे देश में

पूर्वजों ने अपने किया दुनिया में नाम

आज के नेताओं ने कर डाला बदनाम

उस इज्जत को रिश्वत के घुन खा रहे हैं

हम देश की महानता के गुन गा रहे हैं



यहाँ मुर्दे दिखा रहें हैं मुर्दों को रास्ते

कफ़न बेच डालते हैं रोटी के वास्ते

सरेआम चौराहों पे जिंदगी पिट रही है

इंसानियत होके अधमरी घिसट रही है

चोर उचक्के बेईमान गुलछर्रे उड़ा रहे हैं

हम देश की महानता के गुन गा रहे हैं



बिना नोटों के वोटो को पाओ तो जाने

कुछ भला भी करके दिखाओ तो जाने

रोटी को इज्जत से कमाओ तो जाने

बड़प्पन से शासन चलाओ तो जाने

वे गुंडों और डंडों का जोर आजमा रहे हैं

हम देश की महानता के गुन गा रहे हैं

Wednesday, 22 August 2012

पहले उसने

संघर्ष विराम का उल्लघंन किया उन्होंने

पुंछ सेक्टर में सीमा पार से गोलीबारी

जवाब में चली गोली से मारा गया एक घुसपैठिया

हमारी सेनाएं सतर्क चिंता की कोई बात नहीं

चीख रहा था भोंपू कल शाम

उधर से फिर बेवजह गोलियाँ दागी गईं

हमारे जवानों ने मुकाबला किया डटकर

जवाबी कार्रवाई में उनके दो सिपाही हलाक

हमारे जवान चौकस हैं हालात काबू में

उस तरफ के भोंपू ये सब अलाप रहे थे

याद आया जब बच्चे छोटे थे हमारे

एक आता रोता चीखता

पापा उसने मुझे मारा

पीछे से भागता दूसरा आता

नहीं इसने मुझे मारा पहले

उनके हाथों की वे छोटी छोटी लकडियाँ

बड़ी बंदूकें बन गईं हैं अब

और अब सिर्फ खून ही नहीं बहता

जानें भी जाती हैं

Tuesday, 21 August 2012

पीली ज़िंदगियाँ

उन रास्तों से होकर नहीं भी कहीं जाती हैं

कुछ ज़िंदगियाँ

बत्ती के रंग उस चौराहे पर

उनके लिए मायने नहीं रखते औरों जैसे

शोरगुल आपाधापी दौड़ भाग के बीच

सब कुछ शांत और ठहरा हुआ है उनमें

डर लगता है ये कहीं तूफ़ान के पहले की न हो

ये सारे मैले कुचैले एक साथ गड्ड मड्ड

गोड्जीला बनके इधर उधर फेंक फांक दे सब कुछ

बसें ट्रकें कारें साइकिलें उलट पलट कचरा पड़ीं हों ढेर

नहीं नहीं

ऐसा नहीं होता

इनमे वो बात नहीं

ये बस कहने भर को हैं ज़िंदगियाँ

हरी हो गई ड्राइवर

चलो

Friday, 17 August 2012

उत्तर पूर्व ; इतिहास और भूगोल


भूगोल का इतिहास है

इतिहास भी रचता है भूगोल

हमारे पश्चिम में था ईरान

दूर चला गया

पूरब में हमारे बगल में अब बर्मा है

भविष्य भी बदल डालता है भूगोल

शायद हमारे दक्षिण में सागर न रहे

उत्तर में हिमालय दूर जा रहा है धीरे धीरे

उत्तर पूर्व में सप्त कन्यायें भी

वर्तमान भी रच रहा है भूगोल

Thursday, 16 August 2012

ज़रा देर और

खुशबुएँ

लिफाफों में डाल

चुनिन्दा पतों पर

भेजी जाने लगीं

फूलों की

हवाओं से

अनबन हो चली

झोंको से महफूज़

सिहरती ओस की बूँद

नन्ही पत्ती पर

ज़रा देर और

रक्स करेगी

सूरज के निकलने तक

Tuesday, 14 August 2012

आज़ादी

तुम कहाँ हो मेरी जान

कि अब तो आ जाओ

बहुत देर हुई

बच्चे बेहाल हैं भूख से

अस्त व्यस्त पड़ा है सब

झगड़ा फसाद थमने का नाम नहीं ले रहे

कोई नहीं है देखने सुनने वाला

जिसको मिलता है जो भाग लेता है लूट के

इधर उधर से भी घुसे चले आते हैं उपद्रवी

अराजकता फैली है जंगल बना है सब

हाहाकार मचा है सब ओर लगी है आग

तुम होतीं

तो कुछ चैन होता शायद

बिना उत्पात के सो पाते सब

पेट में निवाला मुंह पर रौनकें होती

राह राह चलती जिंदगी

भले मानुष जैसे दिखते लोग

कुछ व्यवस्था होती

तब फिर घर घर लगता

कुछ भी चलेगा नहीं ठीक से तुम्हारे बिना

बहुत देर हुई

कि अब तो आ जाओ

तुम कहाँ हो मेरी जान

Monday, 13 August 2012

संयुक्त प्रगति

हे गरीबों भूखे मरने वालों

हे दरिद्रनारायणों

जन्माष्टमी के पावन पर्व पर

अपने मनमोहन की ओर से

मोबाईल फोन की भेंट स्वीकार करो

ये तुम्हारे बड़े काम आएगी

तुम्हे जब कभी दो चार दिन के बाद

रोटी वगैरह मिल सके खाने को

तुम बता सकते हो दूर अपने दोस्त को

और चौड़ी छाती करके उससे पूछना

कि उसे मिली अब तक कि नहीं

फसल सब जब सूख जाएगी

और तुम्हारा बाप कर्ज में आकंठ डूबा परेशान हो

फाँसी लगाने की तैयारी में होगा

तो ये समाचार अब जल्दी भेज सकोगे तुम

और पूछना अपने मामा से फोन करके

कि वहाँ जो बाढ़ आई है भीषण

कितने बचे उनके बच्चे बह जाने से

और वहाँ ऊपर पेड़ पर सिग्नल ठीक ठाक है कि नहीं

जहाँ वे सब बैठें हैं चढ़ के कई दिनों से

सब समाचार अपने लोगों का पता रखना चाहिए

बुआ की जवान बिटिया से रात झोपड़ी में

फिर जबरदस्ती किया हवलदार

कच्ची पीके अभी जो कांड हुआ

उसमे कौन कौन नहीं रहा तुम्हारे घर का

और उस पार से जो आ के बस गए थे फर्जी

कुछ तुम्हारा भी जबरन कब्जा कर लिए क्या

जानकारी बड़ी चीज है

छोटा भाई पड़ा रहा बुखार में कई दिन

दवाई नहीं मिली मर गया

चाची अभी परसों घर ही में

आठवें बच्चे के टाइम खतम हो गईं

एक कार वाला रौंद दिया रात

सामने फुटपाथ पे सोये थे जितने

नई शादी किये थे बिटिया की

ससुराल वाले मार के भगा दिए

सब मालूम होना चाहिए

तो भईया ये फोन तुम्हारे बड़े काम आने वाली चीज है

देश आगे जा रहा है

तुम काहे पीछे रहो

भूखे हो तो कोई बात नहीं

लेकिन तुम्हारे कान से सटा कोई झुनझुना न हो

तो हमको अच्छा नहीं लगता

हमें तो भाई इन्क्लूसिव ग्रोथ करनी है

Saturday, 11 August 2012

हथियार

गरीबी खड़ी नहीं होती चुनाव में

कमजोर हैं पाँव

गरीबी क्रान्ति नहीं करती

झंडा नहीं उठाती

नारे नहीं लगाती

न हाथों में ताकत है न आवाज में दम

गरीबी एक औजार है

बहुत धार है अभी भी

भेज देती है लोगों को संसद

बदल देती है कुर्सियां

चुनाव क्रान्ति सत्ता संसद वाले

इसीलिए मरने नहीं देते गरीबी को

न केवल वे ज़िंदा रखते हैं इस हथियार को

बनाए रखते हैं तेज और असरदार भी

इस रणक्षेत्र में

जय पराजय कर सिंहासनारूढ़ होते हैं नेता

प्यादे बने कटते रहते हैं गरीब

योद्धा कभी खत्म नहीं होने देते हथियार को

ये उनके अस्तित्व का सवाल जो ठहरा

Friday, 10 August 2012

जय श्री कृष्ण

सुन्दर रेशमी वस्त्रों आभूषणों से सज्जित

होठों पर बाँसुरी बगल में प्रेमिका

नृत्य की मुद्रा चेहरे पर आनंद

मानो कह रहा है

जियो मौज से मस्ती से भरपूर

घी मक्खन खाओ

न बन पड़े तो चुरा के

प्रेम रास रंग गोपियाँ उपवन

सखा उत्सव नदी पेड़ वन

छेड़छाड़ मनुहार दुलार

दैनिक जीवन का हिस्सा बने

आन्नद में जियो आनन्द बाँटो

सर पे आ पड़े तो लड़ भी लो

न मौका हो अनुकूल तो

रणछोड़ दास जी हो जाओ

पूरा जीवन चरित

चीख चीख के साफ़ साफ़

बता रहा है कि परिपूर्ण जी लो

ऐसा भी क्या डर मौत का

कि जी न सको

ऐसे मस्त मौला मनभावन रसिया

उल्लास की प्रतिमूर्ति के समक्ष

हम खड़े हो जाते हैं

मूढ़ करबद्ध याचक

कांपते पाँव

चेहरे पर घनघोर अवसाद

होठों पर घिघियाहट लिए

क्या ये घोर अपमान नहीं है

परमात्मा का ?

Wednesday, 8 August 2012

आशा और आशंका

हवाओं के डर से

नन्हे दिए की लौ

काँपती रही

लेकिन

आग की बड़ी लपटें

बेसब्री से

इंतिजार करती रहीं

झोंकों का

चढ़ के जिसपे

वे बढ़ें

ऊँचे और ऊँचे

Monday, 6 August 2012

शासन तंत्र की समस्या

छोटे लोग

छोटी सोच

छोटे उद्देश्य

छुद्र स्वार्थ

छुद्र विचार

छुद्र आचार

संकुचित ह्रदय

संकुचित ज्ञान

संकुचित धैर्य

बड़ा अहं

बड़ी क्षुधा

बड़ी कुर्सी

Sunday, 5 August 2012

क्रान्ति

अब वक्त आ गया है

बलिदान देने का

उन्होंने ये उद्घोष किया

और आँखे बंद करके

ऊँची कुर्सी का

सपना देखने लगे

अब नहीं तो कब

देश पुकार रहा है जवानों

आवेश में

वे मुट्ठियाँ भींचकर कांपते रहे

और अपने उज्जवल भविष्य की

कामना करने लगे

राम राज्य लाना है

समाज को बढ़ाना है

यही समय है संघर्ष का मित्रों

ऐसा उचारते समय

उन्हें आने वाली

कई पुश्तें तर दिखाई दीं

घोड़े हाथी ऊँट पैदल

शहीद होते रहे

हमेशा की तरह

हर बार

Saturday, 4 August 2012

परिणिति


इन लोगों ने

उन लोगों से

लड़ना चाहा

कुरुक्षेत्र में

उन लोगों ने

इन लोगों को

घसीट लिया

पलाशी में

Friday, 3 August 2012

नया दौर

बैठा रहा

उसके पहलू में

फिर सरककर

आसमान पर

टंग गया चाँद

सुबकती रही रात

देर तक

फिर सर रखकर

उसके काँधे पर सो गई

डेरे उठाकर

लौट गए सितारे

कुछ समय अब

सूरज का

चलेगा दौर

Wednesday, 25 July 2012

रायसीना पहाड़ी पर उत्सव


विस्तृत खूबसूरत मैदान

कतारबद्ध खड़े संगीने लिए सिपाही

रक्षकों का जखीरा

मोटरों का आलीशान कारवाँ

चौड़े और स्वच्छ राजमार्ग

विशाल और भव्य इमारतें

विभूतियों से सुसज्जित केन्द्रीय कक्ष

परंपरागत और शालीन समारोह

उत्सुक प्रफुल्लित व्यग्र फुर्तीले लोग

मैंने ज़रा गौर से देखा घोड़ों को

उदासीन अनुत्सुक सुस्त

कह रहे थे कि

चलो एक और कवायद खत्म हुई

एक बोला ये सब तो चलता ही रहता है यहाँ

और बाहर वहाँ भी सब ऐसे ही चलता रहता है

घोड़े घोड़े ही रहते हैं

गधे गधे ही रहते हैं

हाँ सूअर जरूर और मोटे होते जा रहे हैं