वह लड़ी होगी |
वह बड़ी हिम्मत से लड़ी होगी |
जीने की अदम्य लालसा लिए |
मौत से इतने दिन लड़ते सबने देखा उसे |
अपने सम्मान को बचाने ले लिए |
उन दरिंदो से भी यक़ीनन खूब लड़ी होगी वह |
और जाते जाते एक चुनौती दे गई है हम सब को |
इंसानियत का हक़ अदा करने की चुनौती |
वह कह गई है |
हमसे कुछ सीखो तो लड़ाई मत छोड़ना |
जीने की लड़ाई |
सम्मान की लड़ाई |
आजादी से सांस लेने की लड़ाई |
पूरी ताकत भर विरोध में खड़े रहना दरिंदगी के |
हमने तो खूब संघर्ष किया काले चेहरों से |
अब तुम्हे मेरी कसम |
सिर्फ चेहरों तक उलझ के मत रह जाना |
उनके पीछे की पूरी कालिख को देख लेना ठीक से |
एक एक कोने से निकाल खींचना अँधेरी साजिशों को |
और मत बैठना चैन से |
सूरज के निकलने तक |
Monday, 31 December 2012
भारत पुत्री
Tuesday, 18 December 2012
सुदर्शन चक्र
फिर दुस्शासन अपनी पर है |
उसको यक़ीनन दुर्योधन का सहयोग है |
सुरक्षा के जिम्मेदार धूर्त चालबाज शकुनि ने |
शिखंडियों को लगाया है पहरों पर |
कर्तव्य से बढ़कर मर्यादा का बोझ लादे |
दुबके बैठे हैं चुपचाप विदुर द्रोण और भीष्म |
कुछ देखना ही नहीं चाहती |
पुत्र मोह से ग्रसित साम्राज्ञी गांधारी |
ऐसा ही होता है एक अंधे राजा के शासन में |
एक बार जो अत्याचार हो गया स्त्री पर |
वस्त्र दान कोई उपाय नहीं है नारी की व्यथा का |
उस पर हुये अत्याचार सिर्फ और सिर्फ गर्दनें उतारने से कम होंगे |
अफसोस यह |
कि भगवान कृष्ण भी आ जाएँ |
तो वे भी सुदर्शन नहीं चलाते अपना |
द्रौपदियों के नामों की लिस्ट बढ़ती जाती है रोज रोज |
Tuesday, 27 November 2012
भला क्यों
न मानता है न सुनता है |
जो चाहिए सो चाहिए |
बस अपने से मतलब |
ठीक है कि नहीं |
सोचना ही नहीं चाहता |
न सब्र है न करार |
जिद है तो है |
बड़ी मुसीबत है |
एक पल को नहीं बैठने दे है चैन से |
परेशान कर रखा है |
इतनी दुश्मनी अगर है हमसे |
तो फिर रहता क्यों हैं यहाँ सीने में |
Monday, 26 November 2012
Monday, 19 November 2012
चन्दन खबरें बंद भीड़ और टेलीविजन
चन्दन की लकड़ी पर जलने से |
बदन को कम तकलीफ होती है क्या |
आत्मा सच में ज्यादा प्रफुल्लित होती है क्या |
बड़े बड़े लोगों को शोकातुर देखकर |
चिता का बनाव श्रृंगार क्या |
स्वर्ग के द्वार पाल को रिश्वत होती होगी |
बड़ी खबर बन जाने से |
अंत क्या सुखदाई हो जाता होगा |
लोगों का हुजूम क्या यमराज पर |
कोई दबाव बना पाता होगा |
बेहतर कक्ष आरक्षित करने में |
तोपों की सलामी क्या स्वर्गाधीशों के लिए |
अलार्म का काम करता होगा |
भैया वी आई पी अभी आर आई पी हुए हैं |
शीघ्र ही आपके द्वार पर पधारते होंगे |
बंदनवार सजाइये |
अप्सराओं को बुलाइए |
दुन्दुभी बजाइए |
और स्वागत के लिए सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाइए |
ये जितने सी यम पी यम डी यम जी यम पधारें है यहाँ |
सब हँसेगें इन बचकाने सवालों पर अभी अगर इनसे पूछो |
लेकिन इतना तय है |
यहाँ से जाकर ये भी |
लग उन्ही कार्य कलापों में जायेंगे |
जिनसे इन्हें भी मरणोपरांत मिल सके |
चन्दन खबरें बंद भीड़ और टेलीविजन |
Friday, 16 November 2012
देखें तो सही
ऐ जगमगाती रोशनियों |
कभी आओ इधर भी |
युगों से जहाँ पहुंचा नहीं कोई |
उस पार के अँधियारे चाँद की |
कुरूपता का बखान भी कभी हो |
जिन खयालों पर अपराध के ताले लगें हैं |
किस जमीन में वे पनपते हैं आखिर |
चर्चा हो जाए ये भी कि |
काले अक्षरों में सब कुछ सफ़ेद ही होता है क्या |
जो झुठलाया जाकर भी होता तो है ही |
जवान बेवा की कामनाएँ ज्यूँ दफ़न रिवाजों में |
इंसानियत किन्ही अरमानों की |
कब्रगाह बनी घूमती न हो सदियों से |
सच के कुछ मोती न छुपे हों |
गहरी अँधेरी घाटियों में कहीं |
आओ चलके देखें तो सही |
बने बनाए के बिगड जाने की आशंका |
पुरुषार्थ को कोई चुनौती भी अगर है |
फिर भी शायद |
चाँद को एक बारगी ही सही |
पूरी रोशनी में देख लेने की चाह |
उद्वेलित करती है मुझे |
कभी आओ इधर भी |
ऐ जगमगाती रोशनियों |
Thursday, 8 November 2012
४७ पन्ने
एक एक पन्ना ज़िन्दगी |
इतिहास में चुपचाप ले जाकर |
बाँध रखा है वक्त ने जिल्द में |
मिटे मिटे से कुछ हर्फ़ |
जिनमे बाकी है धीमी सी सांस अभी |
धुन्धलाये से पड़े यहाँ वहा कुछ नुक्ते |
याद की लहरों को झोंका देते हुए कई सफे |
एहसासों की गर्मियां और |
बुझती बुझती सी चन्द खुशबुएँ ज़िंदा हैं अभी |
पन्नो के बीच दबे सूखे गुलाब |
कागजों के मुड़े हुए कोने |
एक पशेमंजर बयान करते हैं |
रंगीन खुशनुमा दिलचस्प मुतमईन |
Tuesday, 9 October 2012
रस्सियाँ
चुपचाप खड़ा
वह धैर्य धन गर्दभ
पीछे का बांया पैर
और आगे का दांया
रस्सी से बंधे
चल तो पाता लेकिन घोंघे की चाल
मैंने अपने पैरों की तरफ देखा
मैंने औरों के पैरों की तरफ देखा
तमाम अदृश्य रस्सियों के मायावी जाल
एक दूसरे से बंधे घिसटते तमाम पाँव
और केंचुए सी रेंगती मनुष्यता
वह धैर्य धन गर्दभ
पीछे का बांया पैर
और आगे का दांया
रस्सी से बंधे
चल तो पाता लेकिन घोंघे की चाल
मैंने अपने पैरों की तरफ देखा
मैंने औरों के पैरों की तरफ देखा
तमाम अदृश्य रस्सियों के मायावी जाल
एक दूसरे से बंधे घिसटते तमाम पाँव
और केंचुए सी रेंगती मनुष्यता
Sunday, 7 October 2012
आमो खास
गुठली भर समझ के फेंक दिए गए
दबे रहे गहरे
उमस सडन अन्धकार और गर्मी से
निकले उगे पैदा हुए
और और
आम आदमी
खास लोगों द्वारा
जो चूसे गए
और फिर
गुठली भर समझ के फेंक दिए गए
दबे रहे गहरे
उमस सडन अन्धकार और गर्मी से
निकले उगे पैदा हुए
और और
आम आदमी
खास लोगों द्वारा
जो चूसे गए
और फिर
गुठली भर समझ के फेंक दिए गए
Friday, 5 October 2012
सपने तो आखिर सपने हैं
शिखरों पर बैठे जमकर
बहकर बनते झरने हैं
बादल कब किसके अपने हैं
सपने तो आखिर सपने हैं
फूल सहेजें लाख मगर
शूल ह्रदय में चुभने हैं
सुख जितना मिलता है
उतने ही दुःख सहने हैं
सपने तो आखिर सपने हैं
एक लहर ऊपर जाती है
वही मगर नीचे आती है
ऊपर नीचे आगे पीछे
नियति नाच नचाती है
भवनों के कंगूरे भी आखिर
धूल धूसरित होने हैं
इन्द्रधनुष के रंगों जैसे
सिर्फ हवा में सजने हैं
सपने तो आखिर सपने हैं
मरुस्थल हैं सागर भी हैं
और यहाँ पर हैं उपवन
कभी हार ही हाथ लगेगी
कभी जीत से आलिंगन
पल भर को गिरने से पहले
आँख में मोती सजने हैं
रोज टूटते रोज बिखरते
रोज मगर फिर बुनने हैं
सपने तो आखिर सपने हैं
Friday, 28 September 2012
कुट गए डार्विन भईया
जब स्वर्ग पहुँचे डार्विन भाई |
बंदरों ने कर दी उनकी पिटाई |
बोले आदमी को ऊँचा बताते हो |
उन्हें हमारा विकास बताते हो |
वो तो बहुत ही गया बीता है |
भाई भाई का खून पीता है |
औरतों से ही जनम पाता है |
कोख को उनकी कब्र बनाता है |
किताबों में नारी का गुणगान करता है |
हकीकत में घोर अपमान करता है |
प्रेम के गीत गाता है |
जीवन घृणा से बिताता है |
दुनिया में हर कोई किसी का दुश्मन है |
इंसानियत विकास नहीं हमारा पतन है |
Thursday, 20 September 2012
फुहारें
जगह दे देती है सड़क |
पानी को बारिश में |
बैठ जाती है यहाँ वहाँ |
उखड़े पत्थर बजरी |
छोटे छोटे ताल तलैया |
जलभराव और चलना मुश्किल गाड़ियों का |
लगा जैसे कह रही है सड़क |
ज़रा ठहरो भी |
ये हर वक्त की भागम भाग क्यों |
गाड़ियों को रहने दो भीतर |
पुराने अखबार निकालो |
नावें बनाई जायें |
भूल गए हो तो सीख लो बच्चों से |
बरामदे में बैठो |
फुहारों के साथ मजा लो पकौड़ियों का |
चाय पियो तसल्ली से |
साथ हो प्रिय तो पहलू नशीं रहो कुछ देर |
न हो साथ तो तसव्वुरे जानाँ की फुरसत निकालो |
बूँदों के संग नाचो गुनगुनाओ |
तनिक भीग भी लो |
या यूँही बिता दोगे जिंदगी |
सूखी सूखी सी |
Thursday, 13 September 2012
फिर सही
|
Wednesday, 12 September 2012
जीरो लॉस
चारा खाना तो पुरानी बात हो गई |
फिर इन्होने स्पेक्ट्रम खाया |
अभी अभी खनिज लोहा |
पचा भी नहीं था |
इनने कोयला खाना शुरू कर दिया |
ये मेनू तो बड़ी बड़ी दावतों का है |
छोटी छोटी और चीजें तो खैर |
ये खाते ही रहे बीच बीच में |
तोपें ताबूत गोले बारूद |
बालू बजरी हवाई जहाज |
पुल जमीनें सड़कें खाद |
रुपया तो बीच बीच में |
बिटविन द मील्स |
बिफोर द मील्स |
आफ्टर द मील्स |
और हाजमा इनका गज़ब का है दोस्तों |
सब पचा डालते हैं |
निकालते कुछ भी नहीं |
जीरो लॉस |
Tuesday, 11 September 2012
थोड़ा कोयला देना सरकार
कुछ इंसान अभी अभी निकले हैं |
पन्द्रह दिन तक पानी में रह के |
जड़ा गए होंगे बेचारे |
हड्डियाँ ज़रा सेंक लें |
तनिक आग जलाई जाए |
आपसे बस इतनी है दरकार |
थोड़ा कोयला देना सरकार |
उधर नीचे कुछ मदरासी बंधु |
रूस और जापान के हादसों से डरे |
अपनी सेहत और जान की चिंता में |
खा रहें गोली |
डाक्टर वाली नहीं |
पुलिस वाली |
अरे बिजली ही तो देनी है ना उनको |
तो कुछ और करिये उपचार |
थोड़ा कोयला देना सरकार |
एक कनपुरिया सज्जन |
दिसा मैदान को निकले होंगे |
अँधेरे में दिखाई नहीं दिया होगा |
ऐसी जगह फारिग हो गए |
कि बुरा मान गए साहब लोग |
हालांकि जगह तो ठीक ही चुनी थी |
सो बंद हैं ससुराल में |
लिखने का शौक है सुना उनको |
अब कागज़ कलम कहाँ वहाँ |
रंगने पोतने को है दीवार |
थोड़ा कोयला देना सरकार |
Friday, 7 September 2012
खूबसूरत अँधेरे
जाते जाते सांझ ने |
आसमान के ऊपर से खींच दी चादर |
कुछ गहरे बादल |
व्यस्त हो गए तारों से खेलने में |
कभी कोई टूटता सितारा |
खींच चाँदी की लकीर गुम हो जाता |
बेहद कमजोर हँसुली सा खूबसूरत चाँद |
नीचे इधर उधर टिमटिमाती रोशनियाँ |
घने अँधेरों में उकेरा गया एक |
बेहद हसीन मंजर |
बस ज़रा सी देर में |
सुबह फाड़ डालेगी अँधेरे का ये कैनवास |
और तमाम चिरागों के क़त्ल का लहू |
अपने दामन में समेटे |
बेशर्मों की तरह |
मंडराता चमकता फिरेगा |
बदमाश सूरज |
Monday, 3 September 2012
सभ्यता
मुझे बताया गया है कि |
एक आदमी हूँ मैं |
और ब्राह्मण हिन्दू |
तमाम और उप विभाजन |
भाई पिता बेटा मित्र सह कर्मचारी |
और ये भी कि |
मैं हूँ चतुर बेईमान शरीफ क्रोधी |
अनगिनत लकीरों से भेदा गया है मुझे |
असंख्य टुकड़े समेटे |
अपने जैसे असंख्य टुकड़े समेटे |
अन्य असंख्य लोगों से मिलना |
उफ़ |
मै कभी अपना ये वाला टुकड़ा आगे कर देता हूँ |
वे अपना वो वाला |
कहीं कभी और |
मेरा दूसरा कोई टुकड़ा |
उनके किसी और ही टुकड़े से मेल खाता है |
कभी नहीं भी मिल पाता |
मै या फिर वो |
या तो पेश नहीं कर पाते उचित टुकड़े उस वक्त |
या चाहते नहीं किसी वजह से |
अनगिनत लोग अनगिनत टुकड़े |
और अनगिनत संयोग |
उचित समय उचित स्थान पर |
उचित टुकड़ा खोजना निकालना पेश करना |
टुकड़ों के टुकड़ों से इस मिलने को |
कहा जाता है सभ्यता |
बहुत पेचीदा खेल है ये |
ज़रा चूके और गए |
और हाँ |
सत्य इस खेल में |
कहीं नहीं आता बीच में |
Friday, 31 August 2012
लाशें
कभी कभी
मौत भी होती है चर्चा में
यहाँ वहाँ फुसफुसाहटें
दबी जुबानों में बातें
चैतन्य हो जाते हैं
नीरस लोग भी
तेज हो जाता है
सूचनाओं का आवागमन
रंगीन हो उठता है
कल्पनाओं का जगत
चेहरों पर उदासियाँ
मनों में उमंगें और उत्सुकताएँ
होने लगते हैं तर्क कुतर्क
उपदेश नैतिकताओं के
पुराने समय की खूबियाँ
आज की भ्रष्टतायें
सब खड़े किये जाते हैं कटघरे में
ज़माना विदेश शिक्षा परिवार
सदाचार शिष्टाचार व्यवहार
फ़िल्में पैसा और प्यार
ज्वलंत अनगिनत सवाल
खामोश जवाब
यहाँ वहाँ बिखरी पड़ी होती है लाश
थानों अदालतों अख़बारों टेलीविजनों कॉफी हाउसों में
वे लाशें अक्सर औरतों की होती हैं
मौत भी होती है चर्चा में
यहाँ वहाँ फुसफुसाहटें
दबी जुबानों में बातें
चैतन्य हो जाते हैं
नीरस लोग भी
तेज हो जाता है
सूचनाओं का आवागमन
रंगीन हो उठता है
कल्पनाओं का जगत
चेहरों पर उदासियाँ
मनों में उमंगें और उत्सुकताएँ
होने लगते हैं तर्क कुतर्क
उपदेश नैतिकताओं के
पुराने समय की खूबियाँ
आज की भ्रष्टतायें
सब खड़े किये जाते हैं कटघरे में
ज़माना विदेश शिक्षा परिवार
सदाचार शिष्टाचार व्यवहार
फ़िल्में पैसा और प्यार
ज्वलंत अनगिनत सवाल
खामोश जवाब
यहाँ वहाँ बिखरी पड़ी होती है लाश
थानों अदालतों अख़बारों टेलीविजनों कॉफी हाउसों में
वे लाशें अक्सर औरतों की होती हैं
Thursday, 30 August 2012
किताबें और ठेकेदार
हम तुमसे कहेंगे
जाओ और क़त्ल कर दो उन्हें
जीने लायक नहीं हैं वे लोग
फिर थोड़े समझदार तो तुम भी हो
जवान औरतें मरने से पहले
तुम्हे ज़रा सा सुख दे जायें
तो खुदा ज़न्नत ही नसीब करे उन्हें शायद
हम तुमसे कहेंगे
आग लगा दो उन खलिहानों में
तोड़ डालो सब सामान उन घरों के
और जब वो सब नष्ट ही हो रहा होगा
कोई हर्ज नहीं अगर
तुम ले लो अपनी ज़रूरत का उसमे से
ये आदेश ईश्वर के हैं
ऐसा हम जानते हैं
ऐसा लिखा है देखो इस किताब में
और उसने खुद ये लिखकर हमें भेजा है
तुमसे ये सब करवाने
जिससे तुम भी उसके चहेते बन सको
हम तुमसे कहेंगे
और करोगे तुम
क्योंकि तुम भयभीत हो
कहीं ईश्वर की अवमानना न हो जाए
क्योंकि तुम ज़रूरत मंद हो
शायद इस तरह मिले जो तुम चाहते हो
क्योंकि तुम खुद नहीं जानते
क्या लिखा है इस पवित्र पुस्तक में
पढ़ नहीं सकते न तुम
कभी सीख जाओ पढ़ना अगर
आ जाना इस तरफ
हमारी तरफ
काम बहुत है ईश्वर का
लोगों की कमी है इधर भी
जाओ और क़त्ल कर दो उन्हें
जीने लायक नहीं हैं वे लोग
फिर थोड़े समझदार तो तुम भी हो
जवान औरतें मरने से पहले
तुम्हे ज़रा सा सुख दे जायें
तो खुदा ज़न्नत ही नसीब करे उन्हें शायद
हम तुमसे कहेंगे
आग लगा दो उन खलिहानों में
तोड़ डालो सब सामान उन घरों के
और जब वो सब नष्ट ही हो रहा होगा
कोई हर्ज नहीं अगर
तुम ले लो अपनी ज़रूरत का उसमे से
ये आदेश ईश्वर के हैं
ऐसा हम जानते हैं
ऐसा लिखा है देखो इस किताब में
और उसने खुद ये लिखकर हमें भेजा है
तुमसे ये सब करवाने
जिससे तुम भी उसके चहेते बन सको
हम तुमसे कहेंगे
और करोगे तुम
क्योंकि तुम भयभीत हो
कहीं ईश्वर की अवमानना न हो जाए
क्योंकि तुम ज़रूरत मंद हो
शायद इस तरह मिले जो तुम चाहते हो
क्योंकि तुम खुद नहीं जानते
क्या लिखा है इस पवित्र पुस्तक में
पढ़ नहीं सकते न तुम
कभी सीख जाओ पढ़ना अगर
आ जाना इस तरफ
हमारी तरफ
काम बहुत है ईश्वर का
लोगों की कमी है इधर भी
Tuesday, 28 August 2012
होगी शांति चारों ओर
होंगे कामयाब होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन.........
देश प्रेम के कार्यक्रमों में
बच्चों के जलसों में
विरोध प्रदर्शनों में
अनवरत गाया जा रहा है ये गीत
सन तिरासी से
बना नहीं था उससे पहले
वरना गा रहे होते हम अजल से
गा रहें हैं आज
और गाते रहेंगे आगे भी
बहुत ठीक से पता नहीं
क्या चाहते रहे इसे गाने वाले
लेकिन कामयाब होते तो दिखे नहीं आज तक
हाँ लेकिन मंच पर प्रेरणा श्रोत बने बैठे वे सज्जन
जो देखते सुनते रहे सबको गाते
वे जरूर होते गए कामयाब
और ऊँची कुर्सी
और बड़ा बंगला
और बड़ी तिजोरियां
और बड़े हरम
और मोटी चमड़ी
और मोटा पेट
हम होंगे कामयाब एक दिन.........
देश प्रेम के कार्यक्रमों में
बच्चों के जलसों में
विरोध प्रदर्शनों में
अनवरत गाया जा रहा है ये गीत
सन तिरासी से
बना नहीं था उससे पहले
वरना गा रहे होते हम अजल से
गा रहें हैं आज
और गाते रहेंगे आगे भी
बहुत ठीक से पता नहीं
क्या चाहते रहे इसे गाने वाले
लेकिन कामयाब होते तो दिखे नहीं आज तक
हाँ लेकिन मंच पर प्रेरणा श्रोत बने बैठे वे सज्जन
जो देखते सुनते रहे सबको गाते
वे जरूर होते गए कामयाब
और ऊँची कुर्सी
और बड़ा बंगला
और बड़ी तिजोरियां
और बड़े हरम
और मोटी चमड़ी
और मोटा पेट
Monday, 27 August 2012
......प्रविशन्ति सुप्तस्य सिंघस्य मुखे मृगा: ......
कतई आश्चर्य नहीं होता मुझे जब
जूतम पैजार होती है असेम्बलियों और संसद में
कोई मन्त्री सभापति को निर्देश देता है
और पद की गरिमा की दुहाई भी
चोरी डकैती अपहरण ह्त्या बलात्कारों में लिप्त
अपने पवित्र होने का दावा करते रहते हैं
अपराध के सबसे बड़े अड्डे हैं जो भवन
उनकी आलोचना ज़रा बर्दास्त नहीं उन्हें
संविधान में से सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे ढूँढ लेते हैं
न मिले तो बदल देते हैं सब मिल के
उनकी किताब है उनकी कलम
लाल बत्तियों में सवार बड़े बड़े गुंडे
जो तांडव करते घूमते हैं
शर्मा जायें उसे देखकर नरकाधीश यमराज भी
अनगिनत रुपयों की मचाते रहते हैं लूट
बंदूकें जो हैं उनके पास
इंसान की जानों पर सौदे बाजी
वोट बैंक की खातिर बेहूदे कानून
सत्ता का खुले आम दुरूपयोग
कुछ भी करते हैं मन मानी
कुछ भी कह देते हैं जवाब में मन मानी
तुम उखाड़ क्या लोगे उनका
लेकिन अचरज तब होता है जब
भूखों मरने को मजबूर
आत्महत्या करने को प्रेरित
बच्चे बेच डालने की नौबत में जीते हुए
दंगे में रोज खोते प्रियजन की याद में रोते
नौकरियों के अभाव में कुंठित नौजवान
इज्जतें लुटवाती औरतें कन्याएं
नरक से बदतर जिंदगी जीने को मजबूर
ये असंख्य जीव
जो इंसान कहलाते हैं
हाथ जोड़कर रिरियाते घिघियाते हुए
नेता नाम के दरिंदों के बुलावे पर
चल पड़ते हैं उनकी बकवास सुनने
और भी अचरज तब होता है मुझे जब
ये जान समझ कर कि
कुछ भी नहीं हुआ सुधार उनकी दशा में
कितनी तो बार कर चुके मतदान
कितनो को तो बिठा चुके अपनी खोपड़ियों पर
कितनो के तो हाथ में थमा चुके तलवारें
जो काट सकें तुम्हारी और तुम्हारों की ही गरदने
फिर फिर चल पड़ते हैं ठप्पा लगाने
अपने कसाइयों को चुनने
जैसे बट रहीं हों रेवडियाँ
बड़ा आश्चर्य होता है सचमुच
भेड़ों बकरियों हिरणों को
हाथ जोड़ प्रसन्न मुख जय जय कार करते
स्वेच्छा से सिंहो के मुखों में प्रवेश करते देखकर
बहुत आश्चर्य होता है
जूतम पैजार होती है असेम्बलियों और संसद में
कोई मन्त्री सभापति को निर्देश देता है
और पद की गरिमा की दुहाई भी
चोरी डकैती अपहरण ह्त्या बलात्कारों में लिप्त
अपने पवित्र होने का दावा करते रहते हैं
अपराध के सबसे बड़े अड्डे हैं जो भवन
उनकी आलोचना ज़रा बर्दास्त नहीं उन्हें
संविधान में से सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे ढूँढ लेते हैं
न मिले तो बदल देते हैं सब मिल के
उनकी किताब है उनकी कलम
लाल बत्तियों में सवार बड़े बड़े गुंडे
जो तांडव करते घूमते हैं
शर्मा जायें उसे देखकर नरकाधीश यमराज भी
अनगिनत रुपयों की मचाते रहते हैं लूट
बंदूकें जो हैं उनके पास
इंसान की जानों पर सौदे बाजी
वोट बैंक की खातिर बेहूदे कानून
सत्ता का खुले आम दुरूपयोग
कुछ भी करते हैं मन मानी
कुछ भी कह देते हैं जवाब में मन मानी
तुम उखाड़ क्या लोगे उनका
लेकिन अचरज तब होता है जब
भूखों मरने को मजबूर
आत्महत्या करने को प्रेरित
बच्चे बेच डालने की नौबत में जीते हुए
दंगे में रोज खोते प्रियजन की याद में रोते
नौकरियों के अभाव में कुंठित नौजवान
इज्जतें लुटवाती औरतें कन्याएं
नरक से बदतर जिंदगी जीने को मजबूर
ये असंख्य जीव
जो इंसान कहलाते हैं
हाथ जोड़कर रिरियाते घिघियाते हुए
नेता नाम के दरिंदों के बुलावे पर
चल पड़ते हैं उनकी बकवास सुनने
और भी अचरज तब होता है मुझे जब
ये जान समझ कर कि
कुछ भी नहीं हुआ सुधार उनकी दशा में
कितनी तो बार कर चुके मतदान
कितनो को तो बिठा चुके अपनी खोपड़ियों पर
कितनो के तो हाथ में थमा चुके तलवारें
जो काट सकें तुम्हारी और तुम्हारों की ही गरदने
फिर फिर चल पड़ते हैं ठप्पा लगाने
अपने कसाइयों को चुनने
जैसे बट रहीं हों रेवडियाँ
बड़ा आश्चर्य होता है सचमुच
भेड़ों बकरियों हिरणों को
हाथ जोड़ प्रसन्न मुख जय जय कार करते
स्वेच्छा से सिंहो के मुखों में प्रवेश करते देखकर
बहुत आश्चर्य होता है
Sunday, 26 August 2012
उदास चाँद
चाँद आज उदास होगा
कोई जो पड़ोस से आया था सुध लेने पहली बार
इतनी मेहनत मशक्कत से
दांव पर लगा कर जिंदगी
देखने करीब से
खुद उसी से पूछने उसका हाल
किसी तकलीफ में तो नहीं है
बेचारा अकेला रहता है
कोई तो नहीं भला मानुस देखभाल करने को
यहाँ पड़ोस में तो खूब चहल पहल है
वहाँ लड़ने झगड़ने तक को भी कोई नहीं
उसकी तारीफ़ में पढ़ी गई कवितायें
उसकी ख़ूबसूरती में बनाए गए चित्र
उसकी फैलती चांदनी में यहाँ नीचे सजी महफ़िलें
सबसे अनजान तनहा वो
खुश हुआ होगा अपने आँचल में उस प्यारे को पाकर
अब जब वो नहीं रहा
चाँद वाकई बहुत उदास होगा आज
Friday, 24 August 2012
थोड़ा खाओ थोड़ा फेंको
जल रहा है आसाम
उड़ उड़ के चिंगारियां पहुँच रहीं हैं दक्षिण तक
कहीं सूखा तो कहीं बाढ़
चौपट किये है सब खेती
हर पड़ोसी अपना
बोये ही रहता है गांजा किसी न किसी बहाने
मर रहें हैं मराठे किसान
भड़क रहें हैं मजदूर जाटों के देश में
जग जाहिर है नक्सलियों का उपद्रव
काश्मीर का तो बना ही है नासूर चिर स्थाई
झंडा ऊंचा किये कोई न कोई
चक्का जाम ही किये रहता है राजधानी में
और उधर ठलुए सब खोदे डाल रहें हैं जो भी कुछ बचा है
खा पी लुटा डाल रहें हैं सबका माल
थोड़ा खाओ थोड़ा फेंको की तर्ज पर
ठलुओं अपने सब लगुओं भगुओं के साथ भर रहें हैं घर
नहीं समा रहा है तो भर रहें हैं विदेशी बैंको में
बालू लोहा कोयला टूजी सब झोंका जा रहा है
हवस के हवन कुंडों में
ये नरक ये अव्यवस्था ये तांडव ये सुलगती आग ये आक्रोश
ऐसा लगता है कि
एक बड़े विशालकाय बारूद के ढेर पे बैठ कर
आलू भून भून के खा रहें हैं ससुर
चार छे मुरहे लौंडे
Thursday, 23 August 2012
मेरा देश महान
दूध की नदियाँ बहती थी मेरे देश में
सोने की चिडियाँ रहती थी मेरे देश में
पूर्वजों ने अपने किया दुनिया में नाम
आज के नेताओं ने कर डाला बदनाम
उस इज्जत को रिश्वत के घुन खा रहे हैं
हम देश की महानता के गुन गा रहे हैं
यहाँ मुर्दे दिखा रहें हैं मुर्दों को रास्ते
कफ़न बेच डालते हैं रोटी के वास्ते
सरेआम चौराहों पे जिंदगी पिट रही है
इंसानियत होके अधमरी घिसट रही है
चोर उचक्के बेईमान गुलछर्रे उड़ा रहे हैं
हम देश की महानता के गुन गा रहे हैं
बिना नोटों के वोटो को पाओ तो जाने
कुछ भला भी करके दिखाओ तो जाने
रोटी को इज्जत से कमाओ तो जाने
बड़प्पन से शासन चलाओ तो जाने
वे गुंडों और डंडों का जोर आजमा रहे हैं
हम देश की महानता के गुन गा रहे हैं
सोने की चिडियाँ रहती थी मेरे देश में
पूर्वजों ने अपने किया दुनिया में नाम
आज के नेताओं ने कर डाला बदनाम
उस इज्जत को रिश्वत के घुन खा रहे हैं
हम देश की महानता के गुन गा रहे हैं
यहाँ मुर्दे दिखा रहें हैं मुर्दों को रास्ते
कफ़न बेच डालते हैं रोटी के वास्ते
सरेआम चौराहों पे जिंदगी पिट रही है
इंसानियत होके अधमरी घिसट रही है
चोर उचक्के बेईमान गुलछर्रे उड़ा रहे हैं
हम देश की महानता के गुन गा रहे हैं
बिना नोटों के वोटो को पाओ तो जाने
कुछ भला भी करके दिखाओ तो जाने
रोटी को इज्जत से कमाओ तो जाने
बड़प्पन से शासन चलाओ तो जाने
वे गुंडों और डंडों का जोर आजमा रहे हैं
हम देश की महानता के गुन गा रहे हैं
Wednesday, 22 August 2012
पहले उसने
संघर्ष विराम का उल्लघंन किया उन्होंने
पुंछ सेक्टर में सीमा पार से गोलीबारी
जवाब में चली गोली से मारा गया एक घुसपैठिया
हमारी सेनाएं सतर्क चिंता की कोई बात नहीं
चीख रहा था भोंपू कल शाम
उधर से फिर बेवजह गोलियाँ दागी गईं
हमारे जवानों ने मुकाबला किया डटकर
जवाबी कार्रवाई में उनके दो सिपाही हलाक
हमारे जवान चौकस हैं हालात काबू में
उस तरफ के भोंपू ये सब अलाप रहे थे
याद आया जब बच्चे छोटे थे हमारे
एक आता रोता चीखता
पापा उसने मुझे मारा
पीछे से भागता दूसरा आता
नहीं इसने मुझे मारा पहले
उनके हाथों की वे छोटी छोटी लकडियाँ
बड़ी बंदूकें बन गईं हैं अब
और अब सिर्फ खून ही नहीं बहता
जानें भी जाती हैं
पुंछ सेक्टर में सीमा पार से गोलीबारी
जवाब में चली गोली से मारा गया एक घुसपैठिया
हमारी सेनाएं सतर्क चिंता की कोई बात नहीं
चीख रहा था भोंपू कल शाम
उधर से फिर बेवजह गोलियाँ दागी गईं
हमारे जवानों ने मुकाबला किया डटकर
जवाबी कार्रवाई में उनके दो सिपाही हलाक
हमारे जवान चौकस हैं हालात काबू में
उस तरफ के भोंपू ये सब अलाप रहे थे
याद आया जब बच्चे छोटे थे हमारे
एक आता रोता चीखता
पापा उसने मुझे मारा
पीछे से भागता दूसरा आता
नहीं इसने मुझे मारा पहले
उनके हाथों की वे छोटी छोटी लकडियाँ
बड़ी बंदूकें बन गईं हैं अब
और अब सिर्फ खून ही नहीं बहता
जानें भी जाती हैं
Tuesday, 21 August 2012
पीली ज़िंदगियाँ
उन रास्तों से होकर नहीं भी कहीं जाती हैं
कुछ ज़िंदगियाँ
बत्ती के रंग उस चौराहे पर
उनके लिए मायने नहीं रखते औरों जैसे
शोरगुल आपाधापी दौड़ भाग के बीच
सब कुछ शांत और ठहरा हुआ है उनमें
डर लगता है ये कहीं तूफ़ान के पहले की न हो
ये सारे मैले कुचैले एक साथ गड्ड मड्ड
गोड्जीला बनके इधर उधर फेंक फांक दे सब कुछ
बसें ट्रकें कारें साइकिलें उलट पलट कचरा पड़ीं हों ढेर
नहीं नहीं
ऐसा नहीं होता
इनमे वो बात नहीं
ये बस कहने भर को हैं ज़िंदगियाँ
हरी हो गई ड्राइवर
चलो
कुछ ज़िंदगियाँ
बत्ती के रंग उस चौराहे पर
उनके लिए मायने नहीं रखते औरों जैसे
शोरगुल आपाधापी दौड़ भाग के बीच
सब कुछ शांत और ठहरा हुआ है उनमें
डर लगता है ये कहीं तूफ़ान के पहले की न हो
ये सारे मैले कुचैले एक साथ गड्ड मड्ड
गोड्जीला बनके इधर उधर फेंक फांक दे सब कुछ
बसें ट्रकें कारें साइकिलें उलट पलट कचरा पड़ीं हों ढेर
नहीं नहीं
ऐसा नहीं होता
इनमे वो बात नहीं
ये बस कहने भर को हैं ज़िंदगियाँ
हरी हो गई ड्राइवर
चलो
Friday, 17 August 2012
उत्तर पूर्व ; इतिहास और भूगोल
भूगोल का इतिहास है
इतिहास भी रचता है भूगोल
हमारे पश्चिम में था ईरान
दूर चला गया
पूरब में हमारे बगल में अब बर्मा है
भविष्य भी बदल डालता है भूगोल
शायद हमारे दक्षिण में सागर न रहे
उत्तर में हिमालय दूर जा रहा है धीरे धीरे
उत्तर पूर्व में सप्त कन्यायें भी
वर्तमान भी रच रहा है भूगोल
Thursday, 16 August 2012
ज़रा देर और
खुशबुएँ
लिफाफों में डाल
चुनिन्दा पतों पर
भेजी जाने लगीं
फूलों की
हवाओं से
अनबन हो चली
झोंको से महफूज़
सिहरती ओस की बूँद
नन्ही पत्ती पर
ज़रा देर और
रक्स करेगी
सूरज के निकलने तक
लिफाफों में डाल
चुनिन्दा पतों पर
भेजी जाने लगीं
फूलों की
हवाओं से
अनबन हो चली
झोंको से महफूज़
सिहरती ओस की बूँद
नन्ही पत्ती पर
ज़रा देर और
रक्स करेगी
सूरज के निकलने तक
Tuesday, 14 August 2012
आज़ादी
तुम कहाँ हो मेरी जान
कि अब तो आ जाओ
बहुत देर हुई
बच्चे बेहाल हैं भूख से
अस्त व्यस्त पड़ा है सब
झगड़ा फसाद थमने का नाम नहीं ले रहे
कोई नहीं है देखने सुनने वाला
जिसको मिलता है जो भाग लेता है लूट के
इधर उधर से भी घुसे चले आते हैं उपद्रवी
अराजकता फैली है जंगल बना है सब
हाहाकार मचा है सब ओर लगी है आग
तुम होतीं
तो कुछ चैन होता शायद
बिना उत्पात के सो पाते सब
पेट में निवाला मुंह पर रौनकें होती
राह राह चलती जिंदगी
भले मानुष जैसे दिखते लोग
कुछ व्यवस्था होती
तब फिर घर घर लगता
कुछ भी चलेगा नहीं ठीक से तुम्हारे बिना
बहुत देर हुई
कि अब तो आ जाओ
तुम कहाँ हो मेरी जान
कि अब तो आ जाओ
बहुत देर हुई
बच्चे बेहाल हैं भूख से
अस्त व्यस्त पड़ा है सब
झगड़ा फसाद थमने का नाम नहीं ले रहे
कोई नहीं है देखने सुनने वाला
जिसको मिलता है जो भाग लेता है लूट के
इधर उधर से भी घुसे चले आते हैं उपद्रवी
अराजकता फैली है जंगल बना है सब
हाहाकार मचा है सब ओर लगी है आग
तुम होतीं
तो कुछ चैन होता शायद
बिना उत्पात के सो पाते सब
पेट में निवाला मुंह पर रौनकें होती
राह राह चलती जिंदगी
भले मानुष जैसे दिखते लोग
कुछ व्यवस्था होती
तब फिर घर घर लगता
कुछ भी चलेगा नहीं ठीक से तुम्हारे बिना
बहुत देर हुई
कि अब तो आ जाओ
तुम कहाँ हो मेरी जान
Monday, 13 August 2012
संयुक्त प्रगति
हे गरीबों भूखे मरने वालों
हे दरिद्रनारायणों
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर
अपने मनमोहन की ओर से
मोबाईल फोन की भेंट स्वीकार करो
ये तुम्हारे बड़े काम आएगी
तुम्हे जब कभी दो चार दिन के बाद
रोटी वगैरह मिल सके खाने को
तुम बता सकते हो दूर अपने दोस्त को
और चौड़ी छाती करके उससे पूछना
कि उसे मिली अब तक कि नहीं
फसल सब जब सूख जाएगी
और तुम्हारा बाप कर्ज में आकंठ डूबा परेशान हो
फाँसी लगाने की तैयारी में होगा
तो ये समाचार अब जल्दी भेज सकोगे तुम
और पूछना अपने मामा से फोन करके
कि वहाँ जो बाढ़ आई है भीषण
कितने बचे उनके बच्चे बह जाने से
और वहाँ ऊपर पेड़ पर सिग्नल ठीक ठाक है कि नहीं
जहाँ वे सब बैठें हैं चढ़ के कई दिनों से
सब समाचार अपने लोगों का पता रखना चाहिए
बुआ की जवान बिटिया से रात झोपड़ी में
फिर जबरदस्ती किया हवलदार
कच्ची पीके अभी जो कांड हुआ
उसमे कौन कौन नहीं रहा तुम्हारे घर का
और उस पार से जो आ के बस गए थे फर्जी
कुछ तुम्हारा भी जबरन कब्जा कर लिए क्या
जानकारी बड़ी चीज है
छोटा भाई पड़ा रहा बुखार में कई दिन
दवाई नहीं मिली मर गया
चाची अभी परसों घर ही में
आठवें बच्चे के टाइम खतम हो गईं
एक कार वाला रौंद दिया रात
सामने फुटपाथ पे सोये थे जितने
नई शादी किये थे बिटिया की
ससुराल वाले मार के भगा दिए
सब मालूम होना चाहिए
तो भईया ये फोन तुम्हारे बड़े काम आने वाली चीज है
देश आगे जा रहा है
तुम काहे पीछे रहो
भूखे हो तो कोई बात नहीं
लेकिन तुम्हारे कान से सटा कोई झुनझुना न हो
तो हमको अच्छा नहीं लगता
हमें तो भाई इन्क्लूसिव ग्रोथ करनी है
हे दरिद्रनारायणों
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर
अपने मनमोहन की ओर से
मोबाईल फोन की भेंट स्वीकार करो
ये तुम्हारे बड़े काम आएगी
तुम्हे जब कभी दो चार दिन के बाद
रोटी वगैरह मिल सके खाने को
तुम बता सकते हो दूर अपने दोस्त को
और चौड़ी छाती करके उससे पूछना
कि उसे मिली अब तक कि नहीं
फसल सब जब सूख जाएगी
और तुम्हारा बाप कर्ज में आकंठ डूबा परेशान हो
फाँसी लगाने की तैयारी में होगा
तो ये समाचार अब जल्दी भेज सकोगे तुम
और पूछना अपने मामा से फोन करके
कि वहाँ जो बाढ़ आई है भीषण
कितने बचे उनके बच्चे बह जाने से
और वहाँ ऊपर पेड़ पर सिग्नल ठीक ठाक है कि नहीं
जहाँ वे सब बैठें हैं चढ़ के कई दिनों से
सब समाचार अपने लोगों का पता रखना चाहिए
बुआ की जवान बिटिया से रात झोपड़ी में
फिर जबरदस्ती किया हवलदार
कच्ची पीके अभी जो कांड हुआ
उसमे कौन कौन नहीं रहा तुम्हारे घर का
और उस पार से जो आ के बस गए थे फर्जी
कुछ तुम्हारा भी जबरन कब्जा कर लिए क्या
जानकारी बड़ी चीज है
छोटा भाई पड़ा रहा बुखार में कई दिन
दवाई नहीं मिली मर गया
चाची अभी परसों घर ही में
आठवें बच्चे के टाइम खतम हो गईं
एक कार वाला रौंद दिया रात
सामने फुटपाथ पे सोये थे जितने
नई शादी किये थे बिटिया की
ससुराल वाले मार के भगा दिए
सब मालूम होना चाहिए
तो भईया ये फोन तुम्हारे बड़े काम आने वाली चीज है
देश आगे जा रहा है
तुम काहे पीछे रहो
भूखे हो तो कोई बात नहीं
लेकिन तुम्हारे कान से सटा कोई झुनझुना न हो
तो हमको अच्छा नहीं लगता
हमें तो भाई इन्क्लूसिव ग्रोथ करनी है
Saturday, 11 August 2012
हथियार
गरीबी खड़ी नहीं होती चुनाव में
कमजोर हैं पाँव
गरीबी क्रान्ति नहीं करती
झंडा नहीं उठाती
नारे नहीं लगाती
न हाथों में ताकत है न आवाज में दम
गरीबी एक औजार है
बहुत धार है अभी भी
भेज देती है लोगों को संसद
बदल देती है कुर्सियां
चुनाव क्रान्ति सत्ता संसद वाले
इसीलिए मरने नहीं देते गरीबी को
न केवल वे ज़िंदा रखते हैं इस हथियार को
बनाए रखते हैं तेज और असरदार भी
इस रणक्षेत्र में
जय पराजय कर सिंहासनारूढ़ होते हैं नेता
प्यादे बने कटते रहते हैं गरीब
योद्धा कभी खत्म नहीं होने देते हथियार को
ये उनके अस्तित्व का सवाल जो ठहरा
कमजोर हैं पाँव
गरीबी क्रान्ति नहीं करती
झंडा नहीं उठाती
नारे नहीं लगाती
न हाथों में ताकत है न आवाज में दम
गरीबी एक औजार है
बहुत धार है अभी भी
भेज देती है लोगों को संसद
बदल देती है कुर्सियां
चुनाव क्रान्ति सत्ता संसद वाले
इसीलिए मरने नहीं देते गरीबी को
न केवल वे ज़िंदा रखते हैं इस हथियार को
बनाए रखते हैं तेज और असरदार भी
इस रणक्षेत्र में
जय पराजय कर सिंहासनारूढ़ होते हैं नेता
प्यादे बने कटते रहते हैं गरीब
योद्धा कभी खत्म नहीं होने देते हथियार को
ये उनके अस्तित्व का सवाल जो ठहरा
Friday, 10 August 2012
जय श्री कृष्ण
सुन्दर रेशमी वस्त्रों आभूषणों से सज्जित
होठों पर बाँसुरी बगल में प्रेमिका
नृत्य की मुद्रा चेहरे पर आनंद
मानो कह रहा है
जियो मौज से मस्ती से भरपूर
घी मक्खन खाओ
न बन पड़े तो चुरा के
प्रेम रास रंग गोपियाँ उपवन
सखा उत्सव नदी पेड़ वन
छेड़छाड़ मनुहार दुलार
दैनिक जीवन का हिस्सा बने
आन्नद में जियो आनन्द बाँटो
सर पे आ पड़े तो लड़ भी लो
न मौका हो अनुकूल तो
रणछोड़ दास जी हो जाओ
पूरा जीवन चरित
चीख चीख के साफ़ साफ़
बता रहा है कि परिपूर्ण जी लो
ऐसा भी क्या डर मौत का
कि जी न सको
ऐसे मस्त मौला मनभावन रसिया
उल्लास की प्रतिमूर्ति के समक्ष
हम खड़े हो जाते हैं
मूढ़ करबद्ध याचक
कांपते पाँव
चेहरे पर घनघोर अवसाद
होठों पर घिघियाहट लिए
क्या ये घोर अपमान नहीं है
परमात्मा का ?
होठों पर बाँसुरी बगल में प्रेमिका
नृत्य की मुद्रा चेहरे पर आनंद
मानो कह रहा है
जियो मौज से मस्ती से भरपूर
घी मक्खन खाओ
न बन पड़े तो चुरा के
प्रेम रास रंग गोपियाँ उपवन
सखा उत्सव नदी पेड़ वन
छेड़छाड़ मनुहार दुलार
दैनिक जीवन का हिस्सा बने
आन्नद में जियो आनन्द बाँटो
सर पे आ पड़े तो लड़ भी लो
न मौका हो अनुकूल तो
रणछोड़ दास जी हो जाओ
पूरा जीवन चरित
चीख चीख के साफ़ साफ़
बता रहा है कि परिपूर्ण जी लो
ऐसा भी क्या डर मौत का
कि जी न सको
ऐसे मस्त मौला मनभावन रसिया
उल्लास की प्रतिमूर्ति के समक्ष
हम खड़े हो जाते हैं
मूढ़ करबद्ध याचक
कांपते पाँव
चेहरे पर घनघोर अवसाद
होठों पर घिघियाहट लिए
क्या ये घोर अपमान नहीं है
परमात्मा का ?
Wednesday, 8 August 2012
आशा और आशंका
हवाओं के डर से
नन्हे दिए की लौ
काँपती रही
लेकिन
आग की बड़ी लपटें
बेसब्री से
इंतिजार करती रहीं
झोंकों का
चढ़ के जिसपे
वे बढ़ें
ऊँचे और ऊँचे
नन्हे दिए की लौ
काँपती रही
लेकिन
आग की बड़ी लपटें
बेसब्री से
इंतिजार करती रहीं
झोंकों का
चढ़ के जिसपे
वे बढ़ें
ऊँचे और ऊँचे
Monday, 6 August 2012
शासन तंत्र की समस्या
छोटे लोग
छोटी सोच
छोटे उद्देश्य
छुद्र स्वार्थ
छुद्र विचार
छुद्र आचार
संकुचित ह्रदय
संकुचित ज्ञान
संकुचित धैर्य
बड़ा अहं
बड़ी क्षुधा
बड़ी कुर्सी
छोटी सोच
छोटे उद्देश्य
छुद्र स्वार्थ
छुद्र विचार
छुद्र आचार
संकुचित ह्रदय
संकुचित ज्ञान
संकुचित धैर्य
बड़ा अहं
बड़ी क्षुधा
बड़ी कुर्सी
Sunday, 5 August 2012
क्रान्ति
अब वक्त आ गया है
बलिदान देने का
उन्होंने ये उद्घोष किया
और आँखे बंद करके
ऊँची कुर्सी का
सपना देखने लगे
अब नहीं तो कब
देश पुकार रहा है जवानों
आवेश में
वे मुट्ठियाँ भींचकर कांपते रहे
और अपने उज्जवल भविष्य की
कामना करने लगे
राम राज्य लाना है
समाज को बढ़ाना है
यही समय है संघर्ष का मित्रों
ऐसा उचारते समय
उन्हें आने वाली
कई पुश्तें तर दिखाई दीं
घोड़े हाथी ऊँट पैदल
शहीद होते रहे
हमेशा की तरह
हर बार
बलिदान देने का
उन्होंने ये उद्घोष किया
और आँखे बंद करके
ऊँची कुर्सी का
सपना देखने लगे
अब नहीं तो कब
देश पुकार रहा है जवानों
आवेश में
वे मुट्ठियाँ भींचकर कांपते रहे
और अपने उज्जवल भविष्य की
कामना करने लगे
राम राज्य लाना है
समाज को बढ़ाना है
यही समय है संघर्ष का मित्रों
ऐसा उचारते समय
उन्हें आने वाली
कई पुश्तें तर दिखाई दीं
घोड़े हाथी ऊँट पैदल
शहीद होते रहे
हमेशा की तरह
हर बार
Saturday, 4 August 2012
परिणिति
इन लोगों ने
उन लोगों से
लड़ना चाहा
कुरुक्षेत्र में
उन लोगों ने
इन लोगों को
घसीट लिया
पलाशी में
Friday, 3 August 2012
नया दौर
बैठा रहा
उसके पहलू में
फिर सरककर
आसमान पर
टंग गया चाँद
सुबकती रही रात
देर तक
फिर सर रखकर
उसके काँधे पर सो गई
डेरे उठाकर
लौट गए सितारे
कुछ समय अब
सूरज का
चलेगा दौर
उसके पहलू में
फिर सरककर
आसमान पर
टंग गया चाँद
सुबकती रही रात
देर तक
फिर सर रखकर
उसके काँधे पर सो गई
डेरे उठाकर
लौट गए सितारे
कुछ समय अब
सूरज का
चलेगा दौर
Wednesday, 25 July 2012
रायसीना पहाड़ी पर उत्सव
विस्तृत खूबसूरत मैदान
कतारबद्ध खड़े संगीने लिए सिपाही
रक्षकों का जखीरा
मोटरों का आलीशान कारवाँ
चौड़े और स्वच्छ राजमार्ग
विशाल और भव्य इमारतें
विभूतियों से सुसज्जित केन्द्रीय कक्ष
परंपरागत और शालीन समारोह
उत्सुक प्रफुल्लित व्यग्र फुर्तीले लोग
मैंने ज़रा गौर से देखा घोड़ों को
उदासीन अनुत्सुक सुस्त
कह रहे थे कि
चलो एक और कवायद खत्म हुई
एक बोला ये सब तो चलता ही रहता है यहाँ
और बाहर वहाँ भी सब ऐसे ही चलता रहता है
घोड़े घोड़े ही रहते हैं
गधे गधे ही रहते हैं
हाँ सूअर जरूर और मोटे होते जा रहे हैं
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