त्योहारों के इन दिनों |
हलवा पूड़ी खाते गरीब बच्चे |
कितने खुश दिखाई देते हैं |
और खुश दिखाई देते हैं वे भी |
जिनके लिए इन बच्चों का अस्तित्त्व बेहद जरूरी है |
पुण्य कमा कर सीधे स्वर्ग जाने के लिए |
गरीबी और दीनता के ये जलसे |
शायद किसी के अपराध बोध का इलाज भी हों |
लेकिन एक हवा भी है |
हर चीज की तरह ये जलसे |
ये तो सब खैर ठीक है लेकिन |
आश्चर्य ये कि झोपड़ियों का नरक |
कभी ऊंची इमारतों के स्वर्ग से ये नहीं कहता |
थोड़ा हटो और हवा आने दो ! |
और ये ऐलान कि |
सारा पानी तुम्हारा ही नहीं है !! |
और ये सवाल कि |
कहाँ है हमारे हिस्से का सूरज !!! |
Monday, 14 October 2013
एक टुकड़ा सूरज और पूड़ी हलवा
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