| तुम पर तुम्हारी कोई मर्जी नहीं चलेगी |
| बताय जाएगा तुम्हे किसी और के द्वारा |
| क्या पहनो क्या न पहनो |
| क्या खाओ क्या न खाओ |
| कहाँ जाओ कहाँ न जाओ |
| किससे बोलो किससे बतियाओ |
| हंसी मजाक तुम्हारा काम ही नहीं |
| तुम तो बस हुकुम बजाते रहो |
| मन तो है ही नहीं तुम्हारा आत्मा भी नहीं है |
| न मानो तो सज़ा के लिए शरीर है तुम्हारा |
| कदम कदम पर वही करो जो तुम्हे करने को कहा जाए |
| मन का हो न हो |
| पल पल वैसे ही जियो जैसे कि तुम्हे जीने दिया जाए |
| मन का हो न हो |
| ऐ लड़कियों |
| तुम कुछ भी करने के लिए नहीं हो आजाद |
| क्योंकि वे चाहते हैं ऐसा |
| वही वे जिन्हें करती हो तुम पैदा और पालना |
| और वो भी तुम्हारी मर्जी से नहीं |
| किसे और कब पैदा करो या न करो |
| वे ही तय करेंगे |
| एक दिन कहीं इन सब से होकर बहुत परेशान |
| तुम सब एक साथ कहीं मौत पर अगर चला बैठीं अपनी मर्जी |
| तो? |
Friday, 11 July 2014
ऐ लड़कियों
Thursday, 3 July 2014
संस्कृति के रखवाले
| इधर मत खड़े हो |
| वो मत देखो |
| देखो वो मत खा लेना |
| ना ना उसको तो पीना ही मत |
| तुम्हे नहीं करने देंगे ऐसा |
| हम हैं ठेकेदार धरम के |
| और संस्कृति के रखवाले हैं हम |
| कैसे गिरने दे सकते हैं तुमको |
| नैतिकता का सारा भार है कन्धों पर हमारे |
| और हम ही हैं जगत गुरु |
| साक्षात ऋषि मुनियों की सन्तान |
| न धमकाएं हम तो नरक बन जाए ये समाज |
| हमारे बिना रसातल में समा जाए ये धरती |
| अरे सुनो |
| ओ आधुनिक कहलाने वालों भ्रस्टों |
| ओ पश्चिमी असभ्यता ओढ़े दुराचारी लोगों सुनो |
| ये चीखपुकार सुनकर एक आधुनिक भ्रष्ट राहगीर ने |
| उस सुनसान रास्ते किनारे एक गड्ढे में झाँका |
| जहां से ये आवाजें आ रहीं थीं |
| एक मरियल जर्जर बूढा शरीर नीचे पड़ा रिरियाया |
| बाबू जी कुछ पैसे दे दो |
| कुछ खाया नहीं कई दिनों से |
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