इधर मत खड़े हो |
वो मत देखो |
देखो वो मत खा लेना |
ना ना उसको तो पीना ही मत |
तुम्हे नहीं करने देंगे ऐसा |
हम हैं ठेकेदार धरम के |
और संस्कृति के रखवाले हैं हम |
कैसे गिरने दे सकते हैं तुमको |
नैतिकता का सारा भार है कन्धों पर हमारे |
और हम ही हैं जगत गुरु |
साक्षात ऋषि मुनियों की सन्तान |
न धमकाएं हम तो नरक बन जाए ये समाज |
हमारे बिना रसातल में समा जाए ये धरती |
अरे सुनो |
ओ आधुनिक कहलाने वालों भ्रस्टों |
ओ पश्चिमी असभ्यता ओढ़े दुराचारी लोगों सुनो |
ये चीखपुकार सुनकर एक आधुनिक भ्रष्ट राहगीर ने |
उस सुनसान रास्ते किनारे एक गड्ढे में झाँका |
जहां से ये आवाजें आ रहीं थीं |
एक मरियल जर्जर बूढा शरीर नीचे पड़ा रिरियाया |
बाबू जी कुछ पैसे दे दो |
कुछ खाया नहीं कई दिनों से |
Thursday, 3 July 2014
संस्कृति के रखवाले
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment