Friday 7 November, 2008

वह आता है

सूखे पत्तों की तरह
ना कि जमीन के सीने को
जकड़े हुए जड़ों जैसे
मिलो उसे
तो उड़ा लिये जाओ
जब वह आता है
मन्द् हवाओं में।

धूल के नन्हें कणो जैसे
ना कि सिर्फ़ पड़े हुए
भारी पत्थर की तरह
मिलो उसे
तो बहा लिये जाओ
जब वह आता है
बर्खा फ़ुहारों में।

पानी भर हो रहो
तो ले जाये उड़ाकर
जब वो आग में आये
मस्ती में भर रहो
तो सराबोर कर दे
जब वो फ़ाग मे आये।

वो आता है तो यूँ
कि फ़ूलों मे सुवास आये
कि दिन मे रोशनी आये
कि तारों भरी अमावस
कि बाग मे मधुमास आये
या कि यूँ
कोई नन्हा बच्चा
खिलखिला के हँस दे बेवजह।

रात कहीं दूर वीराने में
अपने प्रियतम को
पपीहा आवाज लगाये।

वो आता है
और कभी शोर में
कभी सन्नाटे में
कभी धीरे से
और कभी तेज।

तुम बस तैयार मिलो और
वो पार करा दे।
इसके सिवा कोई चारा नहीं है
और कभी नहीं रहा।

No comments:

Post a Comment