मैने आँसू बहाये हैं
ज़ोर से भी रोया हूँ
दुनिया देखी है और
अपने मे खोया हूँ
मैं बादल बुलाता हूँ
बिजली चमकाता हूँ
आवाज़ करती बूँदो से
ख़ुद ही डर जाता हूँ
अरमान लुटाता हूँ
सपने सजाता हूँ
बुलबुले तोड़कर मैं
वीरता दिखाता हूँ
लोग आदर करते हैं
मै प्रेरणा बाँटता हूँ
दुनिया के ठहाकों मे
अपने दर्द छाँटता हूँ
दिन के उजाले मे
रोज बदल जाता हूँ
लोग उठा देते हैं
उँचा उठ जाता हूँ
सूरज को विदा कर
चेहरा बदल लेता हूँ
रात के अँधेरे मे
पुतला नजर आता हूँ
खुद को जानने मे
उम्र गुज़ार देता हूँ
मौत से ज़िन्दगी
फ़िर उधार लेता हूँ
तुमने कहा बदल गया
मै वो अब नहीं हूँ
नहीं दोस्त कुछ भी हूँ
मै अब भी वही हूँ
(१९८३ में कलमबद्ध)
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बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
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