(१)
ऐसा कि
दीये ही दीये हैं जले हुये
चारों ओर हर रोज़ दिवाली है
ऐसा कि
किसी पाजेब से टकराकर बूँदे
गुनगुनाती हुई आती हैं झमाझम
ऐसा कि
बादलों से उतरी रूई की परियाँ
हर रात सुलाती हैं हौले हौले
ऐसा कि
झिलमिलाते तारों ने पायल बाँध
महफ़िल सजाई है रात भर
बस ऐसा सा प्यार है।
(२)
दर्द बढता है तो
मुस्कराते क्यों हो
मुझे देखकर नज़रें
चुराते क्यों हो
मैं गुनहगार नहीं
फ़िर सताते क्यों हो
क्या मिलता है तुम्हे
मुझे रुलाते क्यों हो
सोचता हूँ इतना
याद आते क्यों हो
युँही कम गम नहीं
और बढाते क्यों हो
प्यार है गुनाह नहीं
इसको छुपाते क्यों हो
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bahut sundar!!
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