औरत
किसी ने गले मे जंजीर डाल दी
तो बंध गई खूँटे से मगन
कभी हथकड़ी लगा दी गई
तो कितनी लगन से
बेलती है रोटियाँ
कभी बेड़ियाँ डाल दी गईं
तो नाचने लगी झूम के
वाह रे तेरा गहनो का शौक!
आदमी
नोट से रोटी कमाते हैं
कुछ लोग उसे खाते हैं
पर वे भूखे रह जाते हैं
क्योंकि
कुछ लोग नोट खाते हैं
वे हमारे वोट खाते हैं
और
सब कुछ नोच खाते हैं
वाह रे भूख!
Tuesday 10 November, 2009
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gahre arth darshatee rachna
ReplyDeleteमहेन्द्र जी,
ReplyDeleteगहनों के सन्दर्भ से परिभाषित औरत और नोटों के मायाचक्र में बिंधा हुआ आदमी बहुत ही करीबी लगे।
बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है।
आपका कवितायन पर आने का शुक्रिया।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत ही सुन्दर रचनाओ के लिये आभार
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