Thursday 25 March, 2010

महाभारत की असली कथा

दु:शला का एक वंशज मिला मुझे
कानो सुनी बता रहा था
कि पांडव बड़े दुष्ट थे
एक नम्बर के धूर्त
महा शराबी लंपट दुराचारी
रोज पीटें द्रौपदी को
गरियायें अपनी माँ को
अपने बाप तक को नहीं बख्शा
न काम न काज
जुआड़ी तो खैर वे जग जाहिर थे
प्रजा त्रस्त
बुरा हाल राज्य का
न कहीं न्याय
न खाने को अनाज
सब तरफ़ अधर्म ही अधर्म
पड़ोसी राजा लूटमार पर उतारू
और फ़िर
धर्म के पुनुरुत्थान के लिये
बेचारे परम प्रतापी राजा दुर्योधन को
आ गया तरस निरीह जनता पर
सौ पुण्यात्मा भाई
सारे श्रद्धेय वृद्धजन और गुरू मिल बैठे
विचार किया और छेड़ दिये लड़ाई
खूब लड़े लेकिन जीत न पाये
अरे बड़े कुटिल थे पांडव
और पटा लिये थे कृष्ण महराज को भी
और फ़िर कपटी व्यभिचारी इन्सान से
भला सदाचारी जीते हैं कभी
खैर हमने कहा
कि हम तो पढे हैं कुछ और
इतिहास मे
तो वो कहने लगा
भइया तनिक सोचो
कौरवों के खतम हो जाने बाद
आखिर लिखाया किसने होगा इतिहास

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