न हुए न सही पूरे
फ़िर नए ख्वाब बुनें
हम कहें तो कैसे कहें
वो सुनें तो क्यों सुनें
बहुत हो गई मसीहाई
अब हम आदमी बनें
मिले तो जिंदा यहाँ
सिर्फ़ दो चार जने
चली कि कटी जुबाँ
क्या कोई बात बने
वो इधर देख्नने लगे
अब हम दिन गिनें
Thursday, 23 October 2008
Friday, 24 August 2007
सीधे रास्ते
यूहीं कुंदन नहीं बनोगे
कड़ी आंच मे तपना होगा
उसकी आस छोड़नी होगी
तब जाकर कोई अपना होगा
सिर्फ सब्र से फल न मिलेगा
कुछ लगकर के करना होगा
मंज़िल हरदम दूर रहेगी
ख़ुद उठकर के चलना होगा
सूरज गया अँधेरा देकर
किसी दिए को जलना होगा
सपने सच तो हो जायेंगे
काम मगर कुछ करना होगा
स्वर्ग नही मिलता धरती पर
उसके लिए तो मरना होगा
तुम समझे वह अपना होगा
जागी आँख का सपना होगा
गिरकर भी जो बड़ा हो गया
देख के आओ झरना होगा
गलत राह पर नही किसी से
ख़ुद से मगर तो डरना होगा
जीवन खुशियों से भर जाएगा
प्रेम सभी से करना होगा
कड़ी आंच मे तपना होगा
उसकी आस छोड़नी होगी
तब जाकर कोई अपना होगा
सिर्फ सब्र से फल न मिलेगा
कुछ लगकर के करना होगा
मंज़िल हरदम दूर रहेगी
ख़ुद उठकर के चलना होगा
सूरज गया अँधेरा देकर
किसी दिए को जलना होगा
सपने सच तो हो जायेंगे
काम मगर कुछ करना होगा
स्वर्ग नही मिलता धरती पर
उसके लिए तो मरना होगा
तुम समझे वह अपना होगा
जागी आँख का सपना होगा
गिरकर भी जो बड़ा हो गया
देख के आओ झरना होगा
गलत राह पर नही किसी से
ख़ुद से मगर तो डरना होगा
जीवन खुशियों से भर जाएगा
प्रेम सभी से करना होगा
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