माना कि ज़िन्दगी का हासिल मौत है
ऐसा भी क्या कि अभी से मर जाइये
न कुछ और बन पड़े तो रोइये ज़ार ज़ार
घुट घुट के बेकार क्यों कलेजा जलाइये
सर तो जायेगा अभी नहीं तो फ़िर कभी
कुर्बान जाइये किसी पे क्यों बोझा उठाइये
क्या हुआ दिल टूटा काँच की ही चीज़ थी
किरचों पर इन्द्रधनुष फ़िर नया सजाइये
फ़िर होश मे आने को हैं चाहने वाले तेरे
उठिये सँवरिये निकाब रुख से हटाइये
बात अगर मान जायें वो मेरी एक बार
यही कि एक बार बात मेरी मान जाइये
कुछ नहीं मिलता है आसान राहों पर
मुश्किलें न हों अगर तो लौट जाइये
Monday 21 September, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment