Saturday 22 March, 2014

परवश

डाल से टूटा हुआ 
एक सूखा पता 
हवाओं में लहराता हुआ 
इधर उधर डोलता रहा 
हमने देखा !
विवश असहाय 
नियति के पाश से बाध्य  
हमने सोचा !
वो पत्ता भी क्या 
ऐसा ही सोचता है 
स्वयं एवं अन्य के विषय के ?
या अहम् केवल 
सनक हम मनुष्यों के मस्तिष्क की ही है!

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