| अब उसके अपने पंख नहीं रहे |
| अब नींद भी उसकी अपनी कहाँ रही |
| जागी आँख से स्वप्न देखने की सहूलियत नहीं है उसे |
| भविष्य को सोचने के लिए समय चाहिए |
| जो कभी रहा ही नहीं उसके पास |
| जो बीत गया सो बीत गया |
| और ऐसा भी कुछ नहीं उसमें |
| जो सोचने योग्य हो |
| अभी जो है वही है |
| और कैसा है वह |
| सोचने से भी डर लगता है उसे |
| प्रकृति एवं नियति की उससे अपेक्षा है |
| नई मनुष्यता के जन्म की |
| जिसके पास हों |
| स्वप्न जो वो देख नहीं पाती |
| उड़ान जो वो भर नहीं पाती |
| इतिहास जहां वो जाना नहीं चाहती |
| भविष्य जिसकी वो योजना नहीं कर सकती |
Wednesday, 26 March 2014
जननी
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