| सवेरों ने अब अंधेरों से सांठगाँठ कर ली है |
| रात के बाद दिन नहीं अब केवल रात ही आती है फिर से |
| दूसरी तरह की रात बदलकर नाम और पहनावा |
| अंधेरों में चलते काम करते जीते हुए लोग |
| बेबस लाचार टकराते रहतें हैं एक दूसरे से |
| सर फोड़ते रहतें दीवारों से |
| बहाते खून |
| खीझते स्वयं और अन्यों से |
| कोसते जीवन और देवों को |
| रोते दुर्भाग्य पर मानकर नियति अपनी |
| और हमारी दुर्दशा पर हंसते |
| अट्टहास करते मजे से जीते |
| सुख से रहते |
| इन्हीं गहन अंधेरों में देख सकने में सक्षम |
| उल्लू और उनके चेले चमगादड़ |
| संसदों में विराजमान ये जीव तो दूर करने से रहे अन्धेरा |
| ताकत हो तो हम ही उगायें कोई सूरज |
| हिम्मत हो तो हम ही जलें दीयों में |
Monday, 31 March 2014
चमगादड़ और दीये
Subscribe to:
Post Comments (Atom)

No comments:
Post a Comment