Thursday, 11 February 2010

परिक्रमा

चाँद धरती के लगा रहा है चक्कर
एक आकर्षण से बँधा
घूम रही है धरती
सूरज से बँधी
सूरज परिक्रमा में रत है
एक और महासूर्य के
सब कुछ इस पूरे ब्रह्माण्ड में
है किसी न किसी के आकर्षण में बँधा
और लगा रहा है उसके चक्कर अनवरत
खिंचाव
लगाव
प्रेम
चक्कर
तुम
तुम्हारा कालेज
रिक्शा
मेरी साइकिल
मैं
इस ब्रह्माण्ड से बाहर नहीं हैं

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