Saturday 13 February, 2010

उसने हाँ कहा होगा

और तो खैर क्या गिला शिकवा अँधेरे से
मलाल ये ज़रूर है कि देख न सके हम
जाने किस अन्दाज़ में उसने हाँ कहा होगा

छलकते हुये पियालों को शर्म आ गई होगी
थरथराते लबों पर तबस्सुम छा गई होगी
परदा नहीं था और वो परदा कर रहा होगा
जाने किस अन्दाज़ में उसने हाँ कहा होगा

रेशमी आरिजों पर रंगे हिना छा गया होगा
वो शोख पत्थर का सनम पिघल रहा होगा
कली सा वो बदन चटक कर गुल बना होगा
जाने किस अन्दाज़ में उसने हाँ कहा होगा

मलाल ये ज़रूर है कि देख न सके हम
और तो खैर क्या गिला शिकवा अँधेरे से

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