Saturday, 20 February 2010

सुख मे करै न कोय

ईश्वर ने पकड़ लिया हमे
एक छुट्टी वाले दिन
लगे शिकायत करने
याद नहीं करते हो आजकल
दिया बाती भी नहीं जलाते मेरे चौबारे
न भजन न कीर्तन न रतजगा
कथा करवा के पंजीरी भी नहीं बाँटते
अरे कभी दो फ़ूल चढा जाया करो
थोड़ा दान दक्षिणा
भन्डारा वगैरह कर लिये कभी
हो आये तीरथ चार धाम
क्या तुम भी
हाँ नही तो
बिल्कुल ही भुला दिये हमें
अब हम क्या कहें
भगवान हैं
बहुत उमर हो गई है
उन्हे कुछ कहे अच्छा नहीं लगता
लेकिन बात दरअस्ल ये है कि
कोई तकलीफ़ ही नहीं है हमे इन दिनो

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