खुद अपने पैरों से चल कर ही मंजिल मिलती है |
मत बैठ किसी सहारे रहना कदम बढाते रहना |
सबको लेकर चलना ही मानवता कहलाती है |
रह जाये न सोया ही कोई आवाज लगाते रहना |
रोज सवेरे घर घर जाकर सबको दस्तक देता है |
चिड़ियों के गले में रोज वही मीठे स्वर भर देता है |
माना खुद अपने दम पे दुनिया रोशन कर देता है |
एक ज़रा सा बादल लेकिन सूरज को ढक लेता है |
मत बैठ सहारे उसके रहना दिये जलाते रहना |
माना वे नावों को अक्सर मंजिल तक पहुँचाती हैं |
तूफ़ान उठाकर मगर कभी रस्ते से भटकाती हैं |
मर्जी से चलती हैं अपनी मर्जी से रुक जाती हैं |
इसीलिए तो बावरी हवाएं आवारा कहलाती हैं |
मत बैठ भरोसे जाना उनके पतवार चलाते रहना |
पहन के टोपी घूम रहे हैं तिलक लगाये बैठे हैं |
बाँट के भेड़ बकरियों जैसे भीड़ जुटाए बैठे हैं |
मुर्दा राख का खेल रचाते देते आग का नाम |
धर्म के नाम पे धंधा करते ईश्वर को बदनाम |
अंगार बनाए रखना हो तो राख गिराते रहना |
Friday, 16 September 2011
एस धम्मो सनंतनो
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment