Wednesday 28 September, 2011

महा न भारत

सत्ता है शिखंडियों के हाथ 
मामा शकुनि को सौंपी है विदेश नीति
सेनापति दुर्योधन के पास है गृह मंत्रालय 
विधवा आश्रम नवोदय कन्या विद्यालयों आदि की 
देखरेख के महत कार्य का बीड़ा उठाया है दुष्शासन ने 
सर्वोच्च न्यायालय आधीन है प्रज्ञाचक्षुधारी राजा धृतराष्ट्र के 
आँखों पर पट्टी बांधे साम्राज्ञी गांधारी 
राज निवास में कोड़े फटकारते घूमते 
अपने बाकी अट्ठानवे सुपुत्रों को बाँट रहीं हैं रेवड़ियाँ 
जंगलों में घूम घूम कर एकलव्यों के  
अँगूठे बटोरते गुरुवर द्रोणाचार्य 
बन बैठे हैं अंगुलिमाल 
राष्ट्र से बढ़कर अपनी प्रतिज्ञा के प्रति निष्ठावान 
पितामह पड़े हैं मृत्यु शैया पर 
महात्मा विदुर सेवा निवृत्ति के बाद की 
अपनी राष्ट्राध्यक्ष की नियुक्ति के जोड़ तोड़ में हैं व्यस्त 
वनवास के बाद आजीवन अज्ञातवास पर
पता नहीं कहाँ गायब हैं पांडव अपनी पत्नियों के साथ 
उन्मादक बसंत ऋतु में 
केतकी पुष्पों की सुगंध से परिपूर्ण वायु  
और कामदेव के तूणीरों की भांति  
मंडराते भ्रमरों के बीच 
जमुना किनारे मनोरम लता कुंजों में 
मुकुट कुंडल वनमालादि से अलंकृत 
तन्वंगी कमनीय अक्षत यौवनाओं के साथ 
विलास क्रीड़ा में लिप्त हैं बेसुध कामोत्सवमग्न 
बंसी बजाते मनभावन विघ्नविनाशक रसिया 
श्री कृष्ण !

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