सत्ता है शिखंडियों के हाथ |
मामा शकुनि को सौंपी है विदेश नीति |
सेनापति दुर्योधन के पास है गृह मंत्रालय |
विधवा आश्रम नवोदय कन्या विद्यालयों आदि की |
देखरेख के महत कार्य का बीड़ा उठाया है दुष्शासन ने |
सर्वोच्च न्यायालय आधीन है प्रज्ञाचक्षुधारी राजा धृतराष्ट्र के |
आँखों पर पट्टी बांधे साम्राज्ञी गांधारी |
राज निवास में कोड़े फटकारते घूमते |
अपने बाकी अट्ठानवे सुपुत्रों को बाँट रहीं हैं रेवड़ियाँ |
जंगलों में घूम घूम कर एकलव्यों के |
अँगूठे बटोरते गुरुवर द्रोणाचार्य |
बन बैठे हैं अंगुलिमाल |
राष्ट्र से बढ़कर अपनी प्रतिज्ञा के प्रति निष्ठावान |
पितामह पड़े हैं मृत्यु शैया पर |
महात्मा विदुर सेवा निवृत्ति के बाद की |
अपनी राष्ट्राध्यक्ष की नियुक्ति के जोड़ तोड़ में हैं व्यस्त |
वनवास के बाद आजीवन अज्ञातवास पर |
पता नहीं कहाँ गायब हैं पांडव अपनी पत्नियों के साथ |
उन्मादक बसंत ऋतु में |
केतकी पुष्पों की सुगंध से परिपूर्ण वायु |
और कामदेव के तूणीरों की भांति |
मंडराते भ्रमरों के बीच |
जमुना किनारे मनोरम लता कुंजों में |
मुकुट कुंडल वनमालादि से अलंकृत |
तन्वंगी कमनीय अक्षत यौवनाओं के साथ |
विलास क्रीड़ा में लिप्त हैं बेसुध कामोत्सवमग्न |
बंसी बजाते मनभावन विघ्नविनाशक रसिया |
श्री कृष्ण ! |
Wednesday, 28 September 2011
महा न भारत
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