मर्द बच्चे भी आखिर क्या चीज हैं |
ज़रा सोचो |
हाथों में दफ्तर का बैग |
या बाज़ार से सामन लाने का थैला लिये हुये |
निकलती हैं जब देवियाँ सड़क पर |
अपनी शालीनता के वाहन पर सवार |
कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ते मर्द बच्चे |
छेड़खानी करने से |
चीखती चिल्लाती सर पटकती रहती हैं घरों में |
शराब कबाब ज़रा कम कीजिये |
ज़रा पुण्य धरम कर लीजिए |
नहीं सुनाई पड़ता |
जब तक कि वो |
एक हाथ में तलवार |
और दूसरी में लहू से भरा खप्पर लिए |
सवार ही न हो जाये शेर पर |
Thursday, 29 September 2011
नवरात्रि व्रत कथा
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