नयन भर देखा
सब नयनो ने
युगों युगों
रूप था कि
वही रहा
बाकी अभी
और और नयनो को
आगे और आगे
फ़िर यह रूप
नश्वर कैसा
क्षर कैसा
निश्चित यही
अव्यक्त का बिम्ब
अक्षर
अनश्वर
Monday, 30 November 2009
Sunday, 29 November 2009
पथ प्रदर्शक
चेहरों मे ही
उलझकर
जीवन की राह
तय करने वालों
नहीं पहचानते
देखकर पीठ
अभी अगर तुम
तो कैसे करोगे
अनुगमन
उसका
वो तो चल रहा होगा
तुमसे आगे
और देखता भी होगा
आगे को ही
उलझकर
जीवन की राह
तय करने वालों
नहीं पहचानते
देखकर पीठ
अभी अगर तुम
तो कैसे करोगे
अनुगमन
उसका
वो तो चल रहा होगा
तुमसे आगे
और देखता भी होगा
आगे को ही
Saturday, 28 November 2009
दीवार पर कैद तीन तितलियाँ
देखो
यहाँ दीवार पर कैद
ये तीन तितलियाँ
अभी उड़ेंगी
खिड़की के रास्ते
आकाश मे
या जहाँ चाहें
कर लेना कैद
उनकी उड़ान
और जब
ऊँचा आकाश
निमन्त्रण दे
खोल लेना पर
चल देना
उस अनजान पथ पर
मत सोचना मन्जिल को
मत ढूंढना पदचिन्ह
परों के निशान नहीं बनते
यहाँ दीवार पर कैद
ये तीन तितलियाँ
अभी उड़ेंगी
खिड़की के रास्ते
आकाश मे
या जहाँ चाहें
कर लेना कैद
उनकी उड़ान
और जब
ऊँचा आकाश
निमन्त्रण दे
खोल लेना पर
चल देना
उस अनजान पथ पर
मत सोचना मन्जिल को
मत ढूंढना पदचिन्ह
परों के निशान नहीं बनते
Thursday, 26 November 2009
स्विस बैंको मे जमा रुपया
इस सवाल पर कि
किसका है वो रुपया
जमा जो स्विस बैंको मे
नेता बोले मेरा नहीं
मंत्री बोले मेरा नहीं
मिल मालिक व्यापारी
अफ़सर सरकारी
मेरा नहीं मेरा नहीं
बोले हर बड़ा आदमी
झूठ नहीं कहते वे
नहीं है वो रुपया उनका
वो रुपया तुम्हारा है
किसानो
मजदूरों
शोषितों
भूखे मरने वालों!
किसका है वो रुपया
जमा जो स्विस बैंको मे
नेता बोले मेरा नहीं
मंत्री बोले मेरा नहीं
मिल मालिक व्यापारी
अफ़सर सरकारी
मेरा नहीं मेरा नहीं
बोले हर बड़ा आदमी
झूठ नहीं कहते वे
नहीं है वो रुपया उनका
वो रुपया तुम्हारा है
किसानो
मजदूरों
शोषितों
भूखे मरने वालों!
Monday, 23 November 2009
कालचक्र
पल प्रतिपल
हर पल
बूँद से सागर
कालचक्र के भीतर
और बाहर
जीवन का कण कण
तन मन प्राण
बनाता मिटाता
उठाता गिराता
यह ज्वार
यह प्लवन
यह दुर्निवार बाढ़
फ़िर भी
यह जीवन अतृप्त
अनादि से अब तक
और और की दौड़
कैसी यह प्यास
कैसा विधाता
हर पल
बूँद से सागर
कालचक्र के भीतर
और बाहर
जीवन का कण कण
तन मन प्राण
बनाता मिटाता
उठाता गिराता
यह ज्वार
यह प्लवन
यह दुर्निवार बाढ़
फ़िर भी
यह जीवन अतृप्त
अनादि से अब तक
और और की दौड़
कैसी यह प्यास
कैसा विधाता
Thursday, 19 November 2009
Tuesday, 17 November 2009
समर्पण
पत्तों के पीछे से झरता
उगता सूरज
चाँद रात फ़ैली चाँदनी निशब्द
झील पर
दूर सागर में डोलती नावें
सुबह की हवाओं की खुशबुयें
एक नन्हे बच्चे की खिलखिलाहट बेवजह
अभी अभी रोपे दूर तक फ़ैले धान
पहाड़ी की ढलान पर फ़ैले
सीधे खड़े देवदार
गहरी रात के सन्नाटे
कुछ तेज तेज धड़कने
कुछ गहरी साँसे
जब भी
कभी भी
कहीं भी
जीवन ने दुलराया गुदगुदाया
वो अनुभुति
वो पल
वो जीवन
प्रेम को समर्पित कर आया
उगता सूरज
चाँद रात फ़ैली चाँदनी निशब्द
झील पर
दूर सागर में डोलती नावें
सुबह की हवाओं की खुशबुयें
एक नन्हे बच्चे की खिलखिलाहट बेवजह
अभी अभी रोपे दूर तक फ़ैले धान
पहाड़ी की ढलान पर फ़ैले
सीधे खड़े देवदार
गहरी रात के सन्नाटे
कुछ तेज तेज धड़कने
कुछ गहरी साँसे
जब भी
कभी भी
कहीं भी
जीवन ने दुलराया गुदगुदाया
वो अनुभुति
वो पल
वो जीवन
प्रेम को समर्पित कर आया
Monday, 16 November 2009
Sunday, 15 November 2009
भाग के शादी करने वाली लड़की
उसने भाग के शादी की थी
थोड़ी नाराज़गी के बाद
दोनो घरवाले चुप बैठ रहे
उस मोहल्ले का
जहाँ वह भाग के शादी करने वाली लडकी
अपने पति के साथ रह रही थी
फ़ेरी लगाकर सब्ज़ी बेचने वाला भी
मुस्करा के देखता उसे
बच्चे हुये और जब वे
और बच्चों से खेल खेल मे लड़ते
औरों की मांयें नहीं चाहती कि
उनके बच्चे खेलें उन बच्चों के साथ
जो भाग के शादी करने वाली लडकी के थे
खैर
अब वो बहुत बूढी है
लोग मदद कर देते हैं
शाम पार्क मे बैठकर
इस मदद की चर्चाकर
वाहवाही भी लूटते हैं
कि उस
भाग के शादी करने वाली लड़की
की मदद करना इन्सानियत है
सो हम करें
उसका नाम तो खैर है
लेकिन ज्यादातर लोगों को पता नहीं
ज़रूरत भी नहीं क्योंकि
लोग पसन्द करते हैं
उसका विख्यात सम्बोधन
भाग के शादी करने वाली लड़की
मै सोचता हूँ
कि जब ये मरेगी और
इसका क्रियाकर्म होगा
तो क्या पन्डित श्लोक बाँचने मे
जब उसका नाम लेना होगा
कहेगें
भाग के शादी करने वाली लड़की !
थोड़ी नाराज़गी के बाद
दोनो घरवाले चुप बैठ रहे
उस मोहल्ले का
जहाँ वह भाग के शादी करने वाली लडकी
अपने पति के साथ रह रही थी
फ़ेरी लगाकर सब्ज़ी बेचने वाला भी
मुस्करा के देखता उसे
बच्चे हुये और जब वे
और बच्चों से खेल खेल मे लड़ते
औरों की मांयें नहीं चाहती कि
उनके बच्चे खेलें उन बच्चों के साथ
जो भाग के शादी करने वाली लडकी के थे
खैर
अब वो बहुत बूढी है
लोग मदद कर देते हैं
शाम पार्क मे बैठकर
इस मदद की चर्चाकर
वाहवाही भी लूटते हैं
कि उस
भाग के शादी करने वाली लड़की
की मदद करना इन्सानियत है
सो हम करें
उसका नाम तो खैर है
लेकिन ज्यादातर लोगों को पता नहीं
ज़रूरत भी नहीं क्योंकि
लोग पसन्द करते हैं
उसका विख्यात सम्बोधन
भाग के शादी करने वाली लड़की
मै सोचता हूँ
कि जब ये मरेगी और
इसका क्रियाकर्म होगा
तो क्या पन्डित श्लोक बाँचने मे
जब उसका नाम लेना होगा
कहेगें
भाग के शादी करने वाली लड़की !
Friday, 13 November 2009
Wednesday, 11 November 2009
शतरंज के खिलाड़ी
लोग देखते हैं अक्सर इन दिनो
दो इन्सानो के चीथड़े बिखरे हुये
एक वो जो आया था कमर पे बम बाँध
दूसरा खड़ा हो गया सामने बन्दूक तान
मुझे दिखतें हैं
दो शहीद प्यादे
और
दो नवाब बाज़ी बिछाये
कुत्ते
बरसों हो गये उन्हे
जनता का मांस नोचते
उसका लहू पीते
अब नहीं बचा होगा कुछ भी जनता मे
यकीनन
अब वे चूस रहे होंगे हड्डियां
और अपने ही मसूढों से रिसता लहू
लोग देखते हैं अक्सर इन दिनो
दो इन्सानो के चीथड़े बिखरे हुये
एक वो जो आया था कमर पे बम बाँध
दूसरा खड़ा हो गया सामने बन्दूक तान
मुझे दिखतें हैं
दो शहीद प्यादे
और
दो नवाब बाज़ी बिछाये
कुत्ते
बरसों हो गये उन्हे
जनता का मांस नोचते
उसका लहू पीते
अब नहीं बचा होगा कुछ भी जनता मे
यकीनन
अब वे चूस रहे होंगे हड्डियां
और अपने ही मसूढों से रिसता लहू
Tuesday, 10 November 2009
औरत
किसी ने गले मे जंजीर डाल दी
तो बंध गई खूँटे से मगन
कभी हथकड़ी लगा दी गई
तो कितनी लगन से
बेलती है रोटियाँ
कभी बेड़ियाँ डाल दी गईं
तो नाचने लगी झूम के
वाह रे तेरा गहनो का शौक!
आदमी
नोट से रोटी कमाते हैं
कुछ लोग उसे खाते हैं
पर वे भूखे रह जाते हैं
क्योंकि
कुछ लोग नोट खाते हैं
वे हमारे वोट खाते हैं
और
सब कुछ नोच खाते हैं
वाह रे भूख!
किसी ने गले मे जंजीर डाल दी
तो बंध गई खूँटे से मगन
कभी हथकड़ी लगा दी गई
तो कितनी लगन से
बेलती है रोटियाँ
कभी बेड़ियाँ डाल दी गईं
तो नाचने लगी झूम के
वाह रे तेरा गहनो का शौक!
आदमी
नोट से रोटी कमाते हैं
कुछ लोग उसे खाते हैं
पर वे भूखे रह जाते हैं
क्योंकि
कुछ लोग नोट खाते हैं
वे हमारे वोट खाते हैं
और
सब कुछ नोच खाते हैं
वाह रे भूख!
Monday, 9 November 2009
जन्म दिन
हर दिन जैसा ही
ये भी वही दिन
और एक बरस निकल गया
और करीब और करीब
मौत के कदमो की आहट
साँसो के परदे में चली आती चुपचाप
इच्छायें आशंकाये
न खत्म हों तो न खत्म हों
और फ़िर तुम्हारी मंगलकामनायें
ये चाहना कि सब शुभ हो
फ़िर याद दिलाने को
कि नहीं है शुभ सब कुछ.
हाँ लेकिन ये भी याद दिलाने को
कि मै अकेला नहीं
इस कतार में
तुम भी हो
और भी हैं
सभी हैं
तो फ़िर
ये खुशी की बात है
या और दुख की.
ये भी वही दिन
और एक बरस निकल गया
और करीब और करीब
मौत के कदमो की आहट
साँसो के परदे में चली आती चुपचाप
इच्छायें आशंकाये
न खत्म हों तो न खत्म हों
और फ़िर तुम्हारी मंगलकामनायें
ये चाहना कि सब शुभ हो
फ़िर याद दिलाने को
कि नहीं है शुभ सब कुछ.
हाँ लेकिन ये भी याद दिलाने को
कि मै अकेला नहीं
इस कतार में
तुम भी हो
और भी हैं
सभी हैं
तो फ़िर
ये खुशी की बात है
या और दुख की.
Sunday, 8 November 2009
बैशाखियों को पर बनाने का हुनर आना चाहिये
कैसे ज़िन्दगी करें हर हाल बसर आना चाहिये
माना कि अब नहीं रहा वो जो वक्त अच्छा था
ये भी तो दिन दो दिन मे गुजर जाना चाहिये
न देखो राह मै एक चिराग था जल चुका बस
कोई सूरज तो नहीं जो लौट के आना चाहिये
याद आ जायेगा उन्हे बहाना कोई शबे वस्ल
मौत को भी तो आने का कोई बहाना चाहिये
कैसे ज़िन्दगी करें हर हाल बसर आना चाहिये
माना कि अब नहीं रहा वो जो वक्त अच्छा था
ये भी तो दिन दो दिन मे गुजर जाना चाहिये
न देखो राह मै एक चिराग था जल चुका बस
कोई सूरज तो नहीं जो लौट के आना चाहिये
याद आ जायेगा उन्हे बहाना कोई शबे वस्ल
मौत को भी तो आने का कोई बहाना चाहिये
Saturday, 7 November 2009
खानाबदोश
यादों का बिस्तर
खोल लेते हैं
बिछा देते हैं
तान के सो जाते हैं
और एक दिन
उठते हैं
समेटते हैं बिस्तर
और लेके
चल देते हैं
इसी बीच
जो कुछ भी
गुनगुना लेते हैं
वही जीवन की कविता है.
खोल लेते हैं
बिछा देते हैं
तान के सो जाते हैं
और एक दिन
उठते हैं
समेटते हैं बिस्तर
और लेके
चल देते हैं
इसी बीच
जो कुछ भी
गुनगुना लेते हैं
वही जीवन की कविता है.
Friday, 6 November 2009
छुप छुप के
बैलगाड़ियों के समय
प्यार छुपा करता था
उस कच्ची दीवार की ओट में
जहाँ बँधते थे बैल
तलैया किनारे
या फ़िर दुपहरी मे
बम्बे के पीछे
अमराई में
या फ़िर साँझ होते
बाहर नीम के साथ वाली
भुसहरी मे
और कभी
मेले ठेले की रेलमपेली मे
चूड़ियों की दुकान पे
बैलगाड़ियों पे चलके
पहुँचे जहाजों तक
छुपने के ठिकाने
आधुनिक हो गये
मगर
प्यार अब भी छुपा करता है
प्यार छुपा करता था
उस कच्ची दीवार की ओट में
जहाँ बँधते थे बैल
तलैया किनारे
या फ़िर दुपहरी मे
बम्बे के पीछे
अमराई में
या फ़िर साँझ होते
बाहर नीम के साथ वाली
भुसहरी मे
और कभी
मेले ठेले की रेलमपेली मे
चूड़ियों की दुकान पे
बैलगाड़ियों पे चलके
पहुँचे जहाजों तक
छुपने के ठिकाने
आधुनिक हो गये
मगर
प्यार अब भी छुपा करता है
Thursday, 5 November 2009
आखिरी उम्मीद
मेरा चैन खो गया था
अपनी जेबों मे तलाशा
अल्मारियों मे देखा
बिस्तर के नीचे
कमरों के कोनो मे
गलियारों मे
और फ़िर
रास्तों बाजारों
नदियों पहाड़ों
मन्दिरों मस्जिदों मे
सारा गाँव इकट्ठा
खूब शोर
एक पागल के चैन मे खलल पड़ा
चिल्लाकर बोला
अपने भीतर क्यों नही देखता है
मैने अनसुना कर दिया
लगा रहा खोज में
लोग चकित ऒर उत्सुक
कहने लगे कि देख भी लो
अपने भीतर एक बार
चिल्लाकर कहा मैने
नहीं कभी नहीं
वहीं तो है एक आखिरी उम्मीद
अगर वहाँ देखा मैने
और
न पाया तो !
अपनी जेबों मे तलाशा
अल्मारियों मे देखा
बिस्तर के नीचे
कमरों के कोनो मे
गलियारों मे
और फ़िर
रास्तों बाजारों
नदियों पहाड़ों
मन्दिरों मस्जिदों मे
सारा गाँव इकट्ठा
खूब शोर
एक पागल के चैन मे खलल पड़ा
चिल्लाकर बोला
अपने भीतर क्यों नही देखता है
मैने अनसुना कर दिया
लगा रहा खोज में
लोग चकित ऒर उत्सुक
कहने लगे कि देख भी लो
अपने भीतर एक बार
चिल्लाकर कहा मैने
नहीं कभी नहीं
वहीं तो है एक आखिरी उम्मीद
अगर वहाँ देखा मैने
और
न पाया तो !
Wednesday, 4 November 2009
ख़याल
एक सर्द रात
सुरमई चादर तले
छुपते छुपाते
हौले से सरकता
पूनम का चाँद है
या कोई
एक लचकती डाल
फ़ूलों की
बलखाती लहराती
सौ सौ फ़ितने जगाती
मौजे दरिया है
या कोई
एक आँगन के कोने मे
बेआवाज खामोश
कई कई रंग मे
कभी जलती कभी बुझती
पिघलती शम्मा है
या कोई
एक तूफ़ान सा
यहाँ सीने मे
सुबहो शाम
करवटें बदलता
धड़कता दिल है
या कोई
मेरा ख़याल है कि
ये तेरा ख़याल है
सुरमई चादर तले
छुपते छुपाते
हौले से सरकता
पूनम का चाँद है
या कोई
एक लचकती डाल
फ़ूलों की
बलखाती लहराती
सौ सौ फ़ितने जगाती
मौजे दरिया है
या कोई
एक आँगन के कोने मे
बेआवाज खामोश
कई कई रंग मे
कभी जलती कभी बुझती
पिघलती शम्मा है
या कोई
एक तूफ़ान सा
यहाँ सीने मे
सुबहो शाम
करवटें बदलता
धड़कता दिल है
या कोई
मेरा ख़याल है कि
ये तेरा ख़याल है
Tuesday, 3 November 2009
प्रार्थना
मुहब्बत में कोई मंजिल कभी गवारा न हो
ये वो दरिया निकले जिसका किनारा न हो
अकेले आये थे अकेले चले भी जायेंगे मगर
इस जमीं पर तेरे बिन अपना गुजारा न हो
कभी तकरार भी होगी हममे और प्यार भी
न बचे आखिर शख्स कोई जो हमारा न हो
बेशक ज़िन्दगी गुज़रे यहाँ की रंगीनियों मे
भूल जायें तुझे एक पल को खुदारा न हो
नज़र का फ़ेर है बुरा जो कुछ दिखे यहाँ
नही कुछ भी जो खुद तुमने सँवारा न हो
ये वो दरिया निकले जिसका किनारा न हो
अकेले आये थे अकेले चले भी जायेंगे मगर
इस जमीं पर तेरे बिन अपना गुजारा न हो
कभी तकरार भी होगी हममे और प्यार भी
न बचे आखिर शख्स कोई जो हमारा न हो
बेशक ज़िन्दगी गुज़रे यहाँ की रंगीनियों मे
भूल जायें तुझे एक पल को खुदारा न हो
नज़र का फ़ेर है बुरा जो कुछ दिखे यहाँ
नही कुछ भी जो खुद तुमने सँवारा न हो
Monday, 2 November 2009
गुलाब बनाम गेहूँ
लाल रंग मे डूबकर
मै दॊड़ा कि
कोई चित्र बन जाऊँ
लाठी लिये
लोगों की भीड़
मेरे सामने हर सड़क पर
चीखती हुई कि
ये नहीं हो सकता
मैने ढेर सारे
हरे कपड़ों को
हवा मे लहराना
शुरू ही किया था कि
टिड्डों के झुन्ड के झुन्ड
ऒर फ़िर सब सफ़ाचट
बहुत बड़ॆ डब्बे में
पीले फ़ूलों की महक
बन्द करके ले गया
दूर जंगल के पास
खुशबुओं के पेड़ लगाने
जंगली सुवरों ने सब
तोड़ फ़ोड़ डाला
सफ़ेद ऒर काले का भी
ऐसा ही बुरा हाल हुआ
खुद को जलाके राख किया
कि चलो सलेटी से ही कुछ काम बने
मगर नहीं
तब फ़िर
पानी बरसाया
सूरज को लाया
ऒर बनाया आसमान मे
एक सतरंगी इन्द्रधनुष
अब सब ठीक था
आज की इस दुनिया मे
जो खुश ऒर व्यस्त है
एक खाली पर्दे पर
आती जाती तस्वीरों
को देखने में
नहीं चाहिये किसी को
सचमुच के रंग
मै दॊड़ा कि
कोई चित्र बन जाऊँ
लाठी लिये
लोगों की भीड़
मेरे सामने हर सड़क पर
चीखती हुई कि
ये नहीं हो सकता
मैने ढेर सारे
हरे कपड़ों को
हवा मे लहराना
शुरू ही किया था कि
टिड्डों के झुन्ड के झुन्ड
ऒर फ़िर सब सफ़ाचट
बहुत बड़ॆ डब्बे में
पीले फ़ूलों की महक
बन्द करके ले गया
दूर जंगल के पास
खुशबुओं के पेड़ लगाने
जंगली सुवरों ने सब
तोड़ फ़ोड़ डाला
सफ़ेद ऒर काले का भी
ऐसा ही बुरा हाल हुआ
खुद को जलाके राख किया
कि चलो सलेटी से ही कुछ काम बने
मगर नहीं
तब फ़िर
पानी बरसाया
सूरज को लाया
ऒर बनाया आसमान मे
एक सतरंगी इन्द्रधनुष
अब सब ठीक था
आज की इस दुनिया मे
जो खुश ऒर व्यस्त है
एक खाली पर्दे पर
आती जाती तस्वीरों
को देखने में
नहीं चाहिये किसी को
सचमुच के रंग
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