हो कोई साथ तो भी
न हो कोई साथ तो भी
पड़ती ही हैं
सलवटें बिस्तर पर
Monday 30 May, 2011
Monday 23 May, 2011
वो दूसरा छोर
सपनो के बंद सुनहरे द्वार
किरणो से ले आशा उधार
तपती रेत पर नन्हीं बूंदे
कहाँ ठिकाना अपना ढूंढें
क्या अपने और क्या बेगाने
सब ने मारे भर भर ताने
भर के छलनी भर के सूप
चुपचाप खिसकती जाती धूप
वो गई आशाओं की पोटली
ये साँझ भी खोखली निकली
जाने कौन सी नादानी में
सूरज डूब मरा पानी में
छोड़ो बीती आगे की सुध लो
रात गहरा रही अब सो लो
किरणो से ले आशा उधार
तपती रेत पर नन्हीं बूंदे
कहाँ ठिकाना अपना ढूंढें
क्या अपने और क्या बेगाने
सब ने मारे भर भर ताने
भर के छलनी भर के सूप
चुपचाप खिसकती जाती धूप
वो गई आशाओं की पोटली
ये साँझ भी खोखली निकली
जाने कौन सी नादानी में
सूरज डूब मरा पानी में
छोड़ो बीती आगे की सुध लो
रात गहरा रही अब सो लो
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