अपनी पूर्णता मे खिला हुआ एक बड़ा सा फ़ूल
खड़ा है मुँह उठाये
आकाश की ओर
अभी जब मुर्झायेगा ये हल्का होगा
और झुक रहेगा धरती की ओर
चेतनाओं पर नहीं लागू होता
गुरुत्वाकर्षण का नियम
Saturday 28 August, 2010
Thursday 26 August, 2010
माया
सामने वाली को देखती है सर उठाये दम्भ से
ऊँची उठी एक लहर
सागर तल पर
विरोध और वैमनस्य का संसार है यह
अभी जल्दी ही नीचे गिर
दोनो को होगा आभास
कि दो नहीं हैं वे
और ये भी कि वे हैं ही नहीं
सागर है
तब भी जब अलग दिखती थीं वे
वे थी नहीं दरअसल
और दो तो कतई नहीं
होता यदि आभास उस वक्त ये उन्हे
तो होता संसार यह
समता और प्रेम का
ऊँची उठी एक लहर
सागर तल पर
विरोध और वैमनस्य का संसार है यह
अभी जल्दी ही नीचे गिर
दोनो को होगा आभास
कि दो नहीं हैं वे
और ये भी कि वे हैं ही नहीं
सागर है
तब भी जब अलग दिखती थीं वे
वे थी नहीं दरअसल
और दो तो कतई नहीं
होता यदि आभास उस वक्त ये उन्हे
तो होता संसार यह
समता और प्रेम का
Tuesday 24 August, 2010
गीता सार: सच्चिदानन्द
वाद के बिना
नहीं देखा हमने विवाद कभी
रात के बिना
नहीं देखा हमने प्रभात कभी
ये तो संगी साथी हैं वस्तुत:
विरोधी हम समझते हैं
सब भ्रम है दृष्टि का हमारी
साथ चलते हैं राग और द्वेष
साथ रहते हैं घृणा और प्रेम
अलग है नहीं प्रकाश से अंधेरा
भूख से तृप्ति
एक हैं स्वर्ग नर्क
सुख दुख एक हैं
संयुक्त है मृत्यु जीवन से
मन करता है चुनाव
और होने नहीं देता प्रतिष्ठित
सत् चित् आनन्द में
नहीं देखा हमने विवाद कभी
रात के बिना
नहीं देखा हमने प्रभात कभी
ये तो संगी साथी हैं वस्तुत:
विरोधी हम समझते हैं
सब भ्रम है दृष्टि का हमारी
साथ चलते हैं राग और द्वेष
साथ रहते हैं घृणा और प्रेम
अलग है नहीं प्रकाश से अंधेरा
भूख से तृप्ति
एक हैं स्वर्ग नर्क
सुख दुख एक हैं
संयुक्त है मृत्यु जीवन से
मन करता है चुनाव
और होने नहीं देता प्रतिष्ठित
सत् चित् आनन्द में
Monday 16 August, 2010
१५ अगस्त २०१०
हो चुके बरसों आज़ादी मिले हुये
और अब तक आज़ाद हैं हम
आज़ाद हैं हम
भूखे रहने को
बाढ़ मे तबाह होने को
बीमारियों मे तड़पने को
अनाज सड़ता देखने को
सूखे की बरबादी झेलने को
मार डालने को खुद को आज़ाद हैं हम
आज़ाद हैं हम
चोरी करने को
लूटने खसोटने को
बलात्कार करने को
मार डालने को निरीहों को
दंगे फ़साद करने करवाने को
सरेआम अपराध करने को आज़ाद हैं हम
हवाओं मे घोलने को जहर आज़ाद हैं हम
सांस लेने को उसी हवा मे आज़ाद हैं हम
नाज़ायज शराब बेचने को आज़ाद हैं हम
उसको पी के मर जाने को आज़ाद हैं हम
वोट देके अपना नेता बनाने को आज़ाद हैं हम
नोट देके उनसे सब करवाने को आज़ाद हैं हम
अमीरों के गुलाम बने रहने को आज़ाद हैं हम
उन्ही के रहमो करम पे जीने को आज़ाद हैं हम
घुट घुट के जीने को
रोज़ रोज़ मरने को
खून के आंसू पीने को
जंजीर मे जकड़े रहने को
नालियों मे सड़ते रहने को
हर जोर ज़ुल्म को सहने को
थे आज़ाद पहले भी
और अब तक आज़ाद हैं हम
हो चुके बरसों आज़ादी मिले हुये
और अब तक आज़ाद हैं हम
आज़ाद हैं हम
भूखे रहने को
बाढ़ मे तबाह होने को
बीमारियों मे तड़पने को
अनाज सड़ता देखने को
सूखे की बरबादी झेलने को
मार डालने को खुद को आज़ाद हैं हम
आज़ाद हैं हम
चोरी करने को
लूटने खसोटने को
बलात्कार करने को
मार डालने को निरीहों को
दंगे फ़साद करने करवाने को
सरेआम अपराध करने को आज़ाद हैं हम
हवाओं मे घोलने को जहर आज़ाद हैं हम
सांस लेने को उसी हवा मे आज़ाद हैं हम
नाज़ायज शराब बेचने को आज़ाद हैं हम
उसको पी के मर जाने को आज़ाद हैं हम
वोट देके अपना नेता बनाने को आज़ाद हैं हम
नोट देके उनसे सब करवाने को आज़ाद हैं हम
अमीरों के गुलाम बने रहने को आज़ाद हैं हम
उन्ही के रहमो करम पे जीने को आज़ाद हैं हम
घुट घुट के जीने को
रोज़ रोज़ मरने को
खून के आंसू पीने को
जंजीर मे जकड़े रहने को
नालियों मे सड़ते रहने को
हर जोर ज़ुल्म को सहने को
थे आज़ाद पहले भी
और अब तक आज़ाद हैं हम
हो चुके बरसों आज़ादी मिले हुये
Tuesday 3 August, 2010
सूचना का अधिकार
खतरनाक रहा हमेशा
सच का धन्धा
जीसस को सूली
सुकरात को जहर
मंसूर को फ़ाँसी
गैलीलियो को नज़र कैद
ये सब
ईनाम ठहरे सच बोलने के
न जाने क्या क्या दिखाया सच ने और भी
जैसे
बुद्ध को पत्थर और गालियाँ
महावीर के कानों में कीलें
ये तो पुरानी बातें ठहरीं
अभी हाल ही में भी
मार दिये गये इसी चक्कर में
दुबे सरीखे भाई लोग
और अब आजकल तो
उतार दिये जाते हैं मौत के घाट
सच सुनने वाले भी
सूचना का अधिकार तो है आपको
मगर कीमत उसकी लीजिये जान
सच का धन्धा
जीसस को सूली
सुकरात को जहर
मंसूर को फ़ाँसी
गैलीलियो को नज़र कैद
ये सब
ईनाम ठहरे सच बोलने के
न जाने क्या क्या दिखाया सच ने और भी
जैसे
बुद्ध को पत्थर और गालियाँ
महावीर के कानों में कीलें
ये तो पुरानी बातें ठहरीं
अभी हाल ही में भी
मार दिये गये इसी चक्कर में
दुबे सरीखे भाई लोग
और अब आजकल तो
उतार दिये जाते हैं मौत के घाट
सच सुनने वाले भी
सूचना का अधिकार तो है आपको
मगर कीमत उसकी लीजिये जान
Monday 2 August, 2010
कॉमनवेल्थ गेम्स २०१०
खेल होने को हैं
खेल हो रहा है तैयारियों के नाम पर
खेल बन गई है निरीह जनता
खेल हो रहा है हमारी
खून पसीने की कमाई पर
खेल ही खेल मे और भर लेंगे कुछ लोग
पहले से ही भरी तिजोरियाँ
मीडिया ने भी खूब मचा रखा है खेल
बारिश तुली हुई है
खेल खराब करने को
और कुछ गाँधीवादियों की प्रार्थनायें भी
क्या गजब का चल रहा है खेल
एक भी टीम में दिखता नहीं मेल
कुछ हैं जो बिना खेले
और पहले से ही लगें हैं बटोरने में ईनाम
जो नहीं पा रहें हैं कुछ
लगें हैं बिगाड़ने में खेल
इतनी भी क्या आफ़त है भाई
खेल ही तो हैं आखिर
खेल हो रहा है तैयारियों के नाम पर
खेल बन गई है निरीह जनता
खेल हो रहा है हमारी
खून पसीने की कमाई पर
खेल ही खेल मे और भर लेंगे कुछ लोग
पहले से ही भरी तिजोरियाँ
मीडिया ने भी खूब मचा रखा है खेल
बारिश तुली हुई है
खेल खराब करने को
और कुछ गाँधीवादियों की प्रार्थनायें भी
क्या गजब का चल रहा है खेल
एक भी टीम में दिखता नहीं मेल
कुछ हैं जो बिना खेले
और पहले से ही लगें हैं बटोरने में ईनाम
जो नहीं पा रहें हैं कुछ
लगें हैं बिगाड़ने में खेल
इतनी भी क्या आफ़त है भाई
खेल ही तो हैं आखिर
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