Thursday 6 November, 2008

एक दिया छोटा सा

कहते हैं कि वेदों में ब्रह्म को परिभाषित करने वाले चार महावाक्य हैं यानि सत्य के शुद्धतम वक्तव्य। एक है "अहम् ब्रह्मास्मि", जो कि जगत विख्यात है। सामवेद के छान्दोग्य उपनिषद में ऐसा ही एक और महावाक्य है "तत्वमसि"। इसका हिन्दी अनुवाद है - "तू वह है" ।

तो... मैं ब्रह्म हूँ , तू ब्रह्म है। यह ब्रह्म है, वह ब्रह्म है। मैं और तू, यह और वह, सब एक है - और सब ब्रह्म है। यहाँ उसके सिवा और कुछ है ही नहीं, कुछ और होने का उपाय ही नहीं है। मजा ये है कि ब्रह्म को ही नहीं पता कि वह ब्रह्म है। मुझे लगता है कि कि ये जान लेना कि यहाँ सब ब्रह्म है, बहुत सुकून की बात होगी। लेकिन मान लेने से बचना होगा। और बहुत कोशिश करनी होगी क्योंकि ये मान लेने का मन तो बहुत करता है।

जाना गया है या कि माना गया, इसकी कसौटी क्या है? मै समझता हूँ कि सुकून कसौटी है। यानि अगर जीवन में सुकून हो तो ही समझना होगा कि जान लिया गया है।

मेरी प्रार्थना है इस अस्तित्व से कि सब के जीवन में सुकून हो। मेरा विश्वास है कि ये हो सकता है क्योंकि मै अस्तित्व के प्रति पूर्ण आश्वस्त हूँ और ब्रह्म में श्रद्धा रखता हूँ।

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