Thursday, 10 March 2011

हो रहा भारत निर्माण

रोटी के जिन टुकड़ों को
तुम्हारे बदन का खून बनना था
किसी शोख के होठों पर लाली बन
कर रहे हैं
शामे सुहानी उनकी
वो बोतलें दवाओं की
जिनसे बचनी थी जान
नन्हे बच्चे की तुम्हारे
दो एक्स्ट्रा पैग बनकर
सर का दर्द होकर बैठीं हैं
उन साहब का
कपड़े का वो टुकड़ा
जो ढांकने को था इज़्ज़त
तुम्हारी जवान होती बेटी की
टंगा है बन के पर्दा छुपाने को
शायद कुछ घिनौना
सफ़ेद अम्बेसडर में उनकी
जिन लकडियों के टुकडों को
बनके छप्पर रोकना थी बारिश
कि जल सके ठीक से चूल्हा
चटक के जल रही हैं फ़ार्म हाउस के
बोन फायर में उनके
तुमको आज तक तुम्हारे राजा महान
दे सके नहीं रोटी कपड़ा दवा मकान
और कहते हैं कि हो रहा भारत निर्माण

No comments:

Post a Comment