Saturday, 5 June 2010

गीता सार

यहीं था यहीं हूँ अब यहाँ से किधर जाऊँगा

घुल जायेगा मचलती हवाओं मे कुछ मेरा
थोड़ा माटी मे मिलेगा अन्न उपजाने को
हो रहूँगा सुर्ख लाल रंग किसी ओढ़नी मे
बेला की मदमस्त खुशबू मे बिखर जाऊँगा

रसीले आम में मीठा एक हिस्सा मेरा बनेगा
कुछ लहरायेगा गेंहू की सुनहरी बालियों मे
सूर्य की पहली किरन बन इठलाऊँगा लहरों पर
पूस मे दोपहर की धूप बन पसर जाऊँगा

किन्ही मासूम आँखों से झाँकेगा हिस्सा मेरा
एक दिये की झिलमिलाती लौ में काँपा करूँगा
उस बंजर पहाड़ी के नुकीले पत्थर में छूना मुझे
किसी होठ पर ढलकती बूँद बन सिहर जाऊँगा

किसी मन्दिर की आरती हो गूँजा करूँगा
नन्हे बच्चे की करधनी का एक धागा बनूँगा
राग होकर गले से किसी के करूँगा मुग्ध
गहरी उदासी बन कभी आँसू मे उतर जाऊँगा

यहीं था यहीं हूँ अब यहाँ से किधर जाऊँगा

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