| आह वो बचपन |
| गर्मी की छुट्टियों की |
| घमासान मस्ती भरे |
| नानी के घर के दो महीने |
| दिनभर शरारतें धमाचौकड़ी |
| रात खुले आकाश तले छत पर |
| भूतों की कहानियाँ |
| आस पड़ोस के लोगों का मिलने आना |
| अक्सर पूछते वे |
| कब तक हो |
| तीस जून की वापसी का रेल टिकट |
| उतर आता आँखों में |
| और मन में निराशा का एक पल |
| बरसों बाद अब |
| जब आता है जन्म दिन |
| याद आ जाता है तीस जून का टिकट |
| और जब कहते हैं लोग मुझसे |
| जन्म दिन मुबारक हो |
| मुझे लगता है कोई पूछ्ता हो जैसे |
| कब तक हो |
Tuesday, 8 November 2011
कब तक हो
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