Tuesday, 8 November 2011

कब तक हो

आह वो बचपन
गर्मी की छुट्टियों की
घमासान मस्ती भरे 
नानी के घर के दो महीने
दिनभर शरारतें धमाचौकड़ी
रात खुले आकाश तले छत पर
भूतों की कहानियाँ
आस पड़ोस के लोगों का मिलने आना
अक्सर पूछते वे
कब तक हो
तीस जून की वापसी का रेल टिकट
उतर आता आँखों में
और मन में निराशा का एक पल
बरसों बाद अब 
जब आता है जन्म दिन
याद आ जाता है तीस जून का टिकट
और जब कहते हैं लोग मुझसे
जन्म दिन मुबारक हो
मुझे लगता है कोई पूछ्ता हो जैसे
कब तक हो

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