डूबती आशाओं को बेधती |
सन्नाटों की छुरियाँ |
छवियों से पूर्णतया रिक्त |
आसमान और आँखें |
अपनी ही छाया में विश्राम को उत्सुक |
संघर्ष रत एक ठूंठ |
काटने को दौड़ते एकांत में |
प्रतिबिम्ब देखने को तरसता दर्पण |
निद्रा से बोझिल पलकें लिए |
अँधेरों की तलाश में व्यस्त सूरज..................... |
...............अद्भुत बिम्बों और मुहावरों |
की खोज में गोते लगाता |
रचना की प्रसव पीड़ा में |
शब्द जाल बुनता |
बंद पलकों और खुले प्रज्ञा चक्षुओं से |
पंक्तियाँ पकाता |
वो जो कवि कहलाता है भीतर |
जब भी कभी खोलेगा आँखें |
खोलेगा यदि कभी तो |
अफ़सोस करेगा शायद |
कि उसके हाथ में कलम की जगह |
तलवार क्यों नहीं है |
Tuesday, 16 April 2013
स्याही और खून
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